जिस तरह देश की रक्षा में, मरना जरूरी है। काम करो या ना करो, काम का दिखावा करना जरूरी है। अपने अच्छे दिन लाने के लिए, अपनी जेबें भरना जरूरी है। ईमानदार बनने के लिए, भ्रष्टाचार करना जरूरी है। ठीक वैसे ही देश के विकास के लिए, जनता-मीडिया-संस्थानो का, सरकार से डरना जरूरी है। हमारे देश की जनता, वैसे भी ड…
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Blog posts : "General"
सर्वे की मारी, जनता बेचारी .... (व्यंग्य)
हे कलियुगी पाठकों, इस कलयुग में अगर कुछ सत्य है, तो वो है सिर्फ और सिर्फ खबरिया सर्वे। अभी-अभी बादामगिरी खाकर दिमाग पर ज़ोर दिया तो यह दर्शन समझ में आया, कि इस क्षणभंगुर संसार में सर्वेगीरी के अलावा, सारा जगत मिथ्या है। जनता मिथ्या है, उसके मुद्दे मिथ्या हैं। समाज मिथ्या है, देश मिथ्या है, लोकतन्त्र …
आया देख रफाल .......(व्यंग्य, सामयिक कविता)
थरथर कांपे पाक अब, चीन और नेपाल ।
गर्व करो, नारे गढ़ो, आया देख रफाल ।।
रोजगार भी छिन रहा, क्राइम से बेहाल।
शिक्षा मिले न स्वास्थ्य ही, छोड़…
निर्भरता में आत्मनिर्भर ... (व्यंग्य)
मानव जब से इस पृथ्वी पर अवतरित होता है, तब से लेकर मरने तक बस आत्मनिर्भर बनने की कोशिश में लगा रहता है। क्योंकि पुरखों की जमात हमेशा से, आने वाली पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनने के मंत्र देती रही है। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उकसाती रही है। लेकिन मनुष्य बचपन में माँ-बाप पर निर्भर रहता है, तो जवानी म…
विकास हो रहा है..... (व्यंग्य)
हमारा देश विकास के आकाश में, गोते लगा रहा है। हर तरफ, बस विकास ही विकास नजर आ रहा है। अगर देश का विकास नहीं दिख रहा, तो नजर का विकास करिए, या फिर पाकिस्तान जाने का प्रयास करिए। आज विकास का वो जलवा है कि, अगर पुलिस, विकास को पकड़ने जाती है, तो पुलिस का एनकाउंटर हो जाता है। और अगर विकास, पुलिस की पकड़ म…
चना की अर्चना (व्यंग्य)
भक्त : ऋषिवर ये अचानक चाइना चाइना से चना चना कैसे होने लगा? गेंहू-चावल के साथ चना बांटने की सूचना देने के लिए प्रभू को टीवी पर क्यों अवतरित होना पड़ा? ये प्रभु ने जनता को चने बांटने का वादा क्यों किया है ऋषिवर? इस चने का क्या महात्म्य है?…
इन सम कोउ ज्ञानी जग नाहीं !! (व्यंग्य)
यूँ तो हम भारतवासी, सदियों से विश्वगुरु रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में हमारी विशेषज्ञता में चार चाँद लग गए है। अब तो हाल ये है कि हमें हर महीने, कभी-कभी तो हर हफ्ते, विशेषज्ञता के दौरे पड़ने लगे हैं। हालत यह हो गई है कि जब तक दो चार लोगों पर ज्ञान की बौछार न कर ली जाये, पेट साफ ही नहीं होता। हमारे …
जनता की आह यूँ ही, बेकार नहीं होती ....
जनता की आह यूँ ही, बेकार नहीं होती ।
केवल फतह, फरेब से, हर बार नहीं होती।
खुद पे हो भरोसा और, जज्बा बुलंद हो,
उसको किसी मदद की, दरकार न…
लोग मरते रहे ....
लोग मरते रहे, छटपटाते रहे।
अपने-अपने मसीहा, बुलाते रहे।
वक्त ही ना मिला, उन मसीहाओं को,
और दरिंदे तो, लाशें बिछाते रहे।…
हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं।
एक दूसरे को हिंदू, मुस्लिम जला रहे हैं।
हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं।
है कौन बड़ा दोषी, और कौन मसीहा है?
जब मिल…
मन के मत पे मत करियो..... (व्यंग्य)
कलियुगी बाबा लोग प्रवचन ठेलते हैं कि मन बावरा है। सारे सांसारिक गलत कामों के लिए मन ही उकसाता है। बुजुर्ग लोग हर चीज में नकारात्मक सलाह देते हैं। ये मत करो। वो मत करो। यहाँ मत जाओ। वहाँ मत जाओ। मनमानी मत करो। इस महान भारतभूमि पर एसे बहुत से खलिहर महानुभाव वास करते हैं, जो आपको ‘मन’ और ‘मत’ पर घंटो प…
मन के मत पे मत करियो..... (व्यंग्य)
कलियुगी बाबा लोग प्रवचन ठेलते हैं कि मन बावरा है। सारे सांसारिक गलत कामों के लिए मन ही उकसाता है। बुजुर्ग लोग हर चीज में नकारात्मक सलाह देते हैं। ये मत करो। वो मत करो। यहाँ मत जाओ। वहाँ मत जाओ। मनमानी मत करो। इस महान भारतभूमि पर एसे बहुत से खलिहर महानुभाव वास करते हैं, जो आपको ‘मन’ और ‘मत’ पर घंटो प…
फिर से इलेक्शन आ रहे है।
फिर से.........
इलेक्शन आ रहे हैं।
जिन अछूतों को कभी,
मानव नहीं समझा गया।
कुम्भ में उन भंगियों के,
पाँव धोये जा रहे हैं। …
निंदा है, तो जिंदा है... (व्यंग्य)
निन्दा रस का मजा सोमरस से भी ज्यादा आता है। यह एक सर्व सुलभ, सर्व ब्यापी, महंगाई से परे, सर्व ग्राही चीज है। निन्दा का आविष्कार हमारे देश में कब हुआ, यह तो परम निंदनीय ब्यक्ति ही बता सकता है। लेकिन आजकल इसका प्रयोग हमारे परम आदरणीय लोग खूब कर रहे हैं।…
आँकड़ों पर रार..., पब्लिक बेरोजगार ! (व्यंग्य)
आजकल जिसे देखो जनता को रोजगार देने के लिए दुखी हुआ पड़ा है। खुद भले नौकरीशुदा हो, लेकिन बेरोजगारों की चिंता उसे खाये जा रही है। चिंता करना भी आजकल फैशन हो गया है। और यह फैशन चुनावों के समय कुछ ज्यादा ही महामारी का रूप ले लेता है। नेता लोग, जनता की तरह-तरह की चिंताओं में खुद को डुबो लेते है। किसी को ज…
कैसे हम गणतन्त्र मनायें?????
कैसे हम गणतन्त्र मनायें? कैसे हम गणतन्त्र मनायें?
संविधान की, लाज नहीं है
गांधी,नेहरू, आज नहीं हैं
जनता का भी, राज नहीं है…
सोच बदलो, देश बदलेगा .... (व्यंग्य)
सर्दी के इस चिलचिलाते मौसम में भी आजकल देश में बदलाव की लू चल रही है। जब से मोदी जी ने कहा है, सोच बदलो, देश बदलेगा। तब से शायद ही कोई इस बदलाव की चपेट में आने से बचा हो। क्या जनता, क्या नेता, क्या डाक्टर, क्या मरीज, क्या अमीर, क्या गरीब, सब बदलाव से ग्रसित हैं। बदलाव भी एक तरह का नहीं, तरह तरह का। …
... और रावण जल गया।
मुझे सबसे ज्यादा डर धार्मिक लोगों से लगता है। सभी धार्मिक लोगों से नहीं , बल्कि जो किसी श्री श्री . . . पूजा समिति का सदस्य हो। पूजा समिति के लोगों से मुझे उतना ही डर लगता है, जितना कि कांग्रेस को अन्ना हज़ारे से। भाजपा को किए गए चुनावी वादों से। अकबर को मी टू अभियान से। जनता को चुनाव से। देश को देश …
हाथों में क्या है? (व्यंग्य)
हाथ हमारे शरीर का सबसे उपयोगी और सबसे उपेक्षित अंग है। जैसे भारत में दलितों की हालत है, वैसे ही शरीर में हाथ की हालत होती है। पैदा होने से लेकर मरने तक हर जगह हाथ का काम होता है, लेकिन आदमी आता भी खाली हाथ है और जाता भी खाली हाथ है। आदमी जीवन में हाथों का तरह तरह के उपयोग करके, उम्र बिता देता है, फि…
(व्यंग्य) महानता हमारा, जन्मसिद्ध अधिकार है....
आजकल हमारा देश महान हो गया है। चार साल पहले तक महान नहीं था, नहीं तो मेरे जैसे फालतू लोग, अदने लोग कैसे पैदा हो पाते? यह बात तो हमारे प्रधान सेवक भी विदेशों में जाकर कन्फ़र्म कर चुके हैं कि उनके प्रधानसेवक बनने से पहले, देशवासियों को, खुद को भारतीय कहने में शर्म महसूस होती थी। लेकिन आजकल मेरा भारत मह…
आपकी राय
Very nice 👍👍
Jabardast
Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up
बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष
अति सुंदर
व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!
Amazing article 👌👌
व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....
Excellent analogy of the current state of affairs
#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन
एकदम कटु सत्य लिखा है सर।
अति उत्तम🙏🙏
शानदार एवं सटीक
Niraj
अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।
अति उत्तम रचना।🙏🙏
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