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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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चलो गप्प लड़ायें, चलो गप्प लड़ायें….(व्यंग्य)

गप्प लड़ाना हमारी महान सनातनी परम्परा रही है। आदिकाल से हमलोगों का गप्प लड़ाने में कोई सानी नहीं रहा है। अमीर हो या गरीब, कमजोर हो या पहलवान, गप्प लड़ाने में सब एक से बढ़कर एक। कहा जाए तो गप्प की एक संवृद्ध परंपरा हमारे देश में रही है, जो आजकल विदेशों तक फैल रही है। सास हो या पतोहू, ससुर हो या दामाद, जीजा हो या साली, घराती हों या बाराती, बुआ हो या मौसी, सभी गप्प परम्परा के ध्वज वाहक होते हैं। गप्प करना तो हमलोगों में कूट-कूट के भरा होता है।

गप्प दो तरह से किया जाता है, पहला मोनोलाग (यानी एकल संवाद) और दूसरा डायलाग (यानी दोतरफा संवाद)। मोनोलाग हमेशा बड़े और ताकतवर, देवता या राजा महाराजा टाइप लोग करते हैं। इसमें सिर्फ अपनी बात सुनानी होती है, सुनने वाले को कुछ कहने का प्रावधान नहीं होता। जैसे सतयुग और द्वापर में देवताओं की आकाशवाणियाँ होती थी। वैसे ही कलयुग में भी मोनोलाग, अधिकतर आकाशवाणी से ही की जाती है। कलयुगी देवता, राजा, अपने 'मन की बात' आकाशवाणी के चैनलों से करते हैं। कहने वाला जो भी कहता है, वही सार्वकालिक, सार्वभौमिक सत्य हो जाता है। और जो श्रोता इसे सत्य नहीं मानता, उसे कंट्रोल करने के लिए वक्ता के ट्रोल होते, जो बात मनवाने में पण्डित होते हैं।

आजकल आमतौर पर सभी पार्टियों के नेता, चुनावी रैलियों में, मोनोलाग टाइप गप्प करते हैं। जनता उनसे कभी कोई सवाल नहीं पूंछ सकती। सवाल भी वही बताते हैं और जबाब भी। हिन्दू खतरे में है ये भी वही बताते हैं और उसके जबाब में मन्दिर वहीं बनाएँगे भी वही बताते हैं। आप उनसे कुछ पूंछ नहीं सकते। जैसे अगर नेता ने बोला कि देश की गरीबी मिटानी है। तो आप नेता से कभी भी ये नहीं पूंछ पाओगे कि कितने लोगों की गरीबी मिटी आपके गरीबी मिटाने के अभियान के बाद। अगर नेता ने कह दिया कि 100 स्मार्टसिटी बनाना है, तो आप सालों बाद भी यह नहीं पूंछ पाओगे कि इतने सालों में कितनी स्मार्टसिटी बनी? उल्टे किसी दिन पुराने शहरों के नाम बदलकर स्मार्ट सिटी कर देंगे और, सुनने वाले को मानना पड़ेगा। मोनोलाग टाइप गप्प में वक्ता की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती।

इसलिए जिस तरह म्यूचुअल फंड के ऍड के बाद डिस्क्लेमर आता है कि म्यूचुअल फंड इनवेस्टमेंट बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं। निवेश करने से पहले कृपया स्कीम की जानकारी और दूसरे ऑफर डॉक्युमेंट्स ध्यान से पढ़ें। उसी तरह मोनोलाग सुनने वाले श्रोता को भी मोनोलाग गप्प पर भरोसा करने के पहले, वक्ता के इतिहास-भूगोल को ठीक से जान लेना चाहिए।

डायलाग गप्प इसके उलट होता है। इसमें वक्ता को श्रोता भी बनना पड़ता है। यह एक दूसरे के आमने सामने होती है। डायलाग गप्प में दोनों बराबर भी हो सकते हैं और गैर-बराबर भी। इसमें अपनी बात सुनाने के साथ साथ दूसरे की बात सुनना भी पड़ता है। इसलिए वक्ता के झूठ-मूठ कुछ भी कहकर निकल जाने के चांस कम होते हैं, क्योकि सामने वाला तुरंत ही उसका जबाब दे देगा। इसलिए बड़े लोग अकसर डायलाग करना पसंद नहीं करते। डायलाग टाइप गप्प हमेशा जनता करती है, रिश्तेदार आपस में करते हैं। लेकिन हर कोई, मोनोलाग हो या डायलाग, अपनी औकात और अपने स्वभाव के अनुसार गप्प जरूर करता है। 

इधर किसानों ने किसान क़ानूनों का विरोध शुरू किया, तो दोनों तरह की गप्पें शुरू हो गयी। टीवी के बड़े बड़े चैनलों और सत्तापक्ष के नेताओं ने किसानों को आतंकवादी, माओवादी, खालिस्तानी आदि की मोनोलाग गप्पें शुरू कर दीं। और जनता में डायलाग टाइप गप्पें, बहसें शुरू हो गई। मुद्दा गरम हुआ तो सरकार ने बात करने के लिए किसानों को बुलाया। एक दौर की बातें हुई, दूसरे, तीसरे, चौथे दौर से होते हुए आठ दौर की बातचीत को चुकी और नतीजा ढाक के तीन पात। कारण क्या है इतनी दौर की बातचीत में कुछ हासिल ना होने का? बहुत सिम्पल है, सरकार मोनोलाग की आदी है, और किसान डायलाग के। इसलिए अगाहे बगाहे, हफ्ते में एकाध बार सरकार किसानों को गप्प के लिए बुला लेती है कि चलो गप्प लड़ाये, लेकिन होता कुछ नहीं है, क्योकि दोनों अपने-अपने स्वभाव और औकात के हिसाब से मोनोलाग और डायलाग करते हैं। तो छोड़िए इन मुद्दों को, आसपास ढूंढिए किसी को गप्प लड़ाने के लिए। क्योंकि इससे कुछ और हो ना हो, टाइम तो कट ही जाता है। और इस टाइम को काटने के लिए चलो गप्प लड़ाये... चलो गप्प लड़ाएँ... 

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आपकी राय

Dignified india ,youtube par aapka song _shiksha hame saman chahiye,dhoom machaya raha hai

Dignified India , youtube par aapkaa song _ dhoom macha rahaa hai.

बहुत ही सुंदर और सटीक व्यंग है

Very nice Explained by you the real Scenario of our Nation in such beautiful peom by Sh.Manoj Jani Sir. Hat's off to you.

एकदम सटीक और relevant व्यंग, बढ़िया है भाई बढ़िया है,
आपकी लेखनी को salute भाई

Kya baat hai manoj ji aap ke vyang bahut he satik rehata hai bas aise he likhate rahiye

हम अपने देश की हालात क्या कहें साहब

आँखो में नींद और रजाई का साथ है फ़िर भी,
पढ़ने लगा तो पढ़ता बहुत देर तक रहा.

आप का लेख बहुत अच्छा है

Zakhm Abhi taaja hai.......

अति सुंदर।

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...