जला पसीना ईंट पकाया,
छेनी से भगवान बनाया।
मन्दिर मस्जिद बन जाने पर,
जो अंदर भी ना जा पाया।
किसके छूने पर भगवन को,
बहुत छूत का रिस्क है।
कौन दलाली से उनकी,
जेब भरेगा फिक्स है।
बहा पसीना अन्न उगाया
भले कभी भरपेट न खाया
और मंडियों में जब पहुंचा,
सही दाम जो कभी न पाया
सर्दी लू बरसात में किसका
जीवन हरदम रिस्क है।
पर मंडी में कौन है जो,
जेब भरेगा फिक्स है।
कौन है जिसने पांच किलो,
चावल मुफ्त दिलाए।
खुद काजू मशरूम मिला,
सत्ता की मलाई खाए।
कौन है जो नफरत भरके,
एक दूजे को काटे।
किसके बच्चे मालिक बनते,
किसके जेल में जाते।
किसे मिलेगी सत्ता और,
किसका जीवन रिस्क है।
सदा नफरती दंगे से,
कौन मरेगा फिक्स है।
किसका बेटा सीमा पर,
सीना तान खड़ा है।
और जुगाड में सत्ता के,
किसका लाल पड़ा है।
देश धर्म की रक्षा में,
कौन अपनों को मारे।
दूर सुरक्षित खड़ा-खड़ा,
कौन उन्हें ललकारे।
सीमा पर हो या घर में,
किसका जीवन रिस्क है।
लेकिन सत्ता की खातिर,
कौन मरेगा फिक्स है।
अपना खून पसीना देकर,
मिल को रोज चलाये।
और लेबर की मेहनत पर,
बस पूंजीपति कमाए।
करखानों के पाल्यूशन से,
किसका जीवन रिस्क है।
औरों की मेहनत से तिजोरी
कौन भरेगा फिक्स है।
कौन विदेशों में अपने,
बच्चों को भेज, पढ़ाये।
कौन यहाँ हिन्दी-संस्कृत को,
धक्के खाके बचाए।
संस्कृति रक्षा के गर्व में,
किसकी शिक्षा का रिस्क है।
कौन उच्च शिक्षा पाकर,
करेगा शासन फिक्स है।
देश धर्म की रक्षा में,
कौन मरेगा, फिक्स है।
कौन आपदा में अवसर से,
जेब भरेगा फिक्स है।
अनपढ़, दंगाई, बेगार से,
जब मरना ही तय है।
फिर हकमारों से लड़ने में,
आखिर कैसा भय है?
जाति धर्म का गर्व छोड़ जब,
गरिमा पर ना रिस्क है।
तब बदलेगा चक्र ये जानी
अब तक जो भी फिक्स है।