निकल रही है महंगाई से, फाग में मुंह से झाग
डीजल गैस के दाम ने देखो, पकड़ लिया है आग
जोगिरा सा रा रा रा रा …
बेगारी सुरसा के मुंह सी, दिन …
निकल रही है महंगाई से, फाग में मुंह से झाग
डीजल गैस के दाम ने देखो, पकड़ लिया है आग
जोगिरा सा रा रा रा रा …
बेगारी सुरसा के मुंह सी, दिन …
हमारे देश के लोग बहुत ही मतलबी होते हैं। अरे आप गलत मतलब निकाल रहे हैं, मतलबी का मतलब है, मतलब निकालने वाले ! यानि किसी बात का अर्थ समझने वाले। हमारे देश वासी, हर बात, हर घटना, हर चीज का अपना-अपना मतलब निकाल लेते हैं। केवल जनता ही नहीं, हमारे नेता, पत्रकार, बाबा, गुरु हो या गुरु घंटाल, सब अपना अपना …
अपना संविधान है....
सबको गरिमा से जीने का,
हक देता संविधान है।
वर्ण-लिंग या जाति-धर्म सब,
उसके लिए समान है।
वैज्ञानिक चेतना बढ़ाए…
ये दिल तो बेकरार, बहुत देर तक रहा।
उनका भी इंतजार, बहुत देर तक रहा।
हम बेखुदी में ही रहे, जब वो चले गए,
ख़ुद पर न अख़्तियार, बहुत देर तक रहा।…
आप सभी को नए साल की बहुत बहुत बधाई। आखिर आपने साल भर कड़ी मेहनत मशक्कत करके देश को भ्रष्टाचार के ऊपरी पायदानों पर रोके रखा। इतने सारे उतार चढ़ावों के बावजूद किसी भी तरह के भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आने दिया। कालाधन - कालाधन करने वालों का मुँह काला कर दिया। हम सभी ने इसके लिए जान लगा दिया। अब हम लो…
आदमी एक भावना प्रधान जीव होता है। उसमें भर भरके भावनाएं पायी जाती हैं, और ये भावनाएं भी बड़ी नाजुक, बड़ी भावुक, बड़ी कमजोर होती हैं। कब किस बात पर आहत हो जाएँ, पता ही नहीं चलता। बिल्कुल सावधानी हटी दुर्घटना घटी टाईप की ! भावनाएं आजकल ऐसी छुई मुई सी, नाजुक हो चली हैं कि आपने कुछ कहा नहीं कि ये आहत हुई !…
एक चुटकी गाँजे की कीमत आप क्या जानो, पाठक बाबू! एक चुटकी गाँजा, पीने वाले को जेल की सजा दिला सकता है, तो रोकने वाले अधिकारी को विदेश घूमने का मजा भी दिला सकता है। अगर सिस्टम ने एक चुटकी गांजे का दम मार लिया हो, तो तीन हजार किलो हाथ आए ड्रग को छोड़कर, 3 ग्राम गांजे की तलाश में दर-दर भटकने लगता है।…
हिन्दी में दो मशहूर कहवाते हैं, पहली, पेट भारी, तो बात भारी। और दूसरी, पेट भारी, तो मात भारी। दोनों कहवातें आजकल सोलह आने सच हो रही हैं। पहली का अर्थ है की अगर पेट भरा हो, खाये अघाए हो तो, बड़ी -बड़ी बातें निकलती हैं। दूसरी कहावत का मतलब है कि ज्यादा खाए-अघाए होने से पेट ख़राब होने से बीमारी पै…
सारे मसले, बारी बारी लिया करो।
बस चुनावकी ही, तैयारी किया करो।
देशभक्ति कब तक बस, चमचागीरी से,
नेताओं से कुछ, गद्दारी किया करो।…
हमारा देश लोकतन्त्र की एबी'सीडी' सीखते हुये 'एमएमएस' काण्ड से आगे बढ़कर 'लीक'तंत्र तक पहुँच गया है। हमारा 'गण'तन्त्र तो पहले ही तांत्रिक नेताओं के चमत्कार से 'गन'तंत्र हो चुका है । 'लोक'तंत्र के शैशवकाल में नेताओं के सीडी लीक्स से ही काम चल जाता था, सीएजी रिपोर्ट लीक से ही सरकारें हिल जाया करती थी, क…
पिछले दशकों में जब से बाजार ने फला ही फला वाला विज्ञापन शुरू किया है, सब तरफ फला ही फला छाया हुआ है. बाजार में किधर से भी गुजर जाइये, रजाई ही रजाई, गद्दे ही गद्दे, तकिया ही तकिया, चद्दर ही चद्दर आदि फलाने ही फलाने के पोस्टर छाये रहते हैं. आजकल तो वैवाहिक साइटों पर, दूल्हे ही दूल्हे के विज्ञापन भी खू…
गप्प लड़ाना हमारी महान सनातनी परम्परा रही है। आदिकाल से हमलोगों का गप्प लड़ाने में कोई सानी नहीं रहा है। अमीर हो या गरीब, कमजोर हो या पहलवान, गप्प लड़ाने में सब एक से बढ़कर एक। कहा जाए तो गप्प की एक संवृद्ध परंपरा हमारे देश में रही है, जो आजकल विदेशों तक फैल रही है। सास हो या पतोहू, ससुर हो या दामाद, जी…
इस कोरोना ने, भारतीय बिजनेस-मैनो और सत्ताधारी नेताओं के लिए, आपदा में अवसर बना दिया है। व्यापारी हों या सत्ताधारी, सबको आपदा में अवसर दे रही है कोरोना महामारी। लोगों की नौकरियां खाकर, काम-धंधा छुडवाकर, कर्मचारियों की छटनी करवाकर, वर्क फ्रॉम होम के नाम पर काम के घंटे बढ़वाकर, दफ्तरों को मेंटेन करने के…
आजकल आर्यावर्त में एक यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है कि किसान कौन है। बड़ा- बड़ा माइक उठाए, बहसोत्पादी लोग, इस सवाल का हल ढूँढने में लगे हैं कि किसान कौन है। यूं तो जिनके पास हल होता है, वही किसान प्रजाति का माना जा सकता है, लेकिन आजकल किसान के कंधों पर हल की जगह सवाल है, वो हल तो क्या ट्रैक्टर…
जब से खबरिया चैनलों का ‘रिपब्लिक’ हुआ है, तब से पब्लिक का ज्ञान, देश की ‘जीडीपी’ जैसा हो गया है। ‘व्हाट्सप्प’ यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कालरों ने, ‘जी’तोड़ मेहनत कर के सालों में दो जिम्मेदारों को ढूंढ निकाला है। एक हैं पूर्व प्रधानमंत्री, श्री जवाहरलाल नेहरू, और दूसरे हैं देश में कार्यरत पाकिस्तानी आतं…
एक चुटकी चरस की कीमत आप क्या जानो पाठक बाबू? भाषणबाजों के लिए ईश्वर का वरदान होती है एक चुटकी चरस... वोटरों को रोटी-पानी भुलवाकर, भावुक मुद्दों पे मतदान होती है एक चुटकी चरस... जनता को उसकी परेशानियाँ भुलवाकर, सम्मोहित करने वाली जादू की छड़ी होती है एक चुटकी चरस.... इज्जत से जीने की चाह रखने वालों के…
जिस तरह देश की रक्षा में, मरना जरूरी है। काम करो या ना करो, काम का दिखावा करना जरूरी है। अपने अच्छे दिन लाने के लिए, अपनी जेबें भरना जरूरी है। ईमानदार बनने के लिए, भ्रष्टाचार करना जरूरी है। ठीक वैसे ही देश के विकास के लिए, जनता-मीडिया-संस्थानो का, सरकार से डरना जरूरी है। हमारे देश की जनता, वैसे भी ड…
हे कलियुगी पाठकों, इस कलयुग में अगर कुछ सत्य है, तो वो है सिर्फ और सिर्फ खबरिया सर्वे। अभी-अभी बादामगिरी खाकर दिमाग पर ज़ोर दिया तो यह दर्शन समझ में आया, कि इस क्षणभंगुर संसार में सर्वेगीरी के अलावा, सारा जगत मिथ्या है। जनता मिथ्या है, उसके मुद्दे मिथ्या हैं। समाज मिथ्या है, देश मिथ्या है, लोकतन्त्र …
थरथर कांपे पाक अब, चीन और नेपाल ।
गर्व करो, नारे गढ़ो, आया देख रफाल ।।
रोजगार भी छिन रहा, क्राइम से बेहाल।
शिक्षा मिले न स्वास्थ्य ही, छोड़…
मानव जब से इस पृथ्वी पर अवतरित होता है, तब से लेकर मरने तक बस आत्मनिर्भर बनने की कोशिश में लगा रहता है। क्योंकि पुरखों की जमात हमेशा से, आने वाली पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनने के मंत्र देती रही है। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उकसाती रही है। लेकिन मनुष्य बचपन में माँ-बाप पर निर्भर रहता है, तो जवानी म…
Dignified india ,youtube par aapka song _shiksha hame saman chahiye,dhoom machaya raha hai
Dignified India , youtube par aapkaa song _ dhoom macha rahaa hai.
Great bhai
बहुत ही सुंदर और सटीक व्यंग है
Very nice Explained by you the real Scenario of our Nation in such beautiful peom by Sh.Manoj Jani Sir. Hat's off to you.
Nice
Sir you are great..
Very well written
एकदम सटीक और relevant व्यंग, बढ़िया है भाई बढ़िया है,
आपकी लेखनी को salute भाई
Kya baat hai manoj ji aap ke vyang bahut he satik rehata hai bas aise he likhate rahiye
हम अपने देश की हालात क्या कहें साहब
आँखो में नींद और रजाई का साथ है फ़िर भी,
पढ़ने लगा तो पढ़ता बहुत देर तक रहा.
आप का लेख बहुत अच्छा है
Zakhm Abhi taaja hai.......
अति सुंदर।
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