मुंसिफ भी हो तुम्ही, और गुनहगार भी तुम्हीं।
तुम ही हो कार्पोरेट, और सरकार भी तुम्हीं।
जनता को कौन राह, दिखाएगा आजकल,
तुम ही तो हो मशाल, अन्धकार भी तुम्हीं।
नफरत हो, फेक न्यूज़ हो, मुद्दों को दबाना,
मीडिया हो चौथा खंभा,अखबार भी तुम्ही।
कितना भी पाप, जुल्म बढ़े, राज में मगर,
मेरे तो विष्णु, राम के, अवतार भी तुम्हीं।
मंदिर बना के गोड़से का, मान खुब करो,
और गाँधी बध करे तो, शर्मसार भी तुम्हीं।
हर रोज नया स्वांग धरो, करो मन की बात,
तुमही हो हुनरमंद और फनकार भी तुम्हीं।
ये ज्ञान हो, विज्ञान हो, इतिहास या कला,
दुर्घटना तुम्ही जानी, चमत्कार भी तुम्हीं।