अपना संविधान है....
सबको गरिमा से जीने का,
हक देता संविधान है।
वर्ण-लिंग या जाति-धर्म सब,
उसके लिए समान है।
वैज्ञानिक चेतना बढ़ाए…
मनोज जानी
![]() | मनोज जानी ड़ाट काम पर आपका स्वागत है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में घट रही घटनाएँ उसे कुछ ना कुछ सोचने को विवश करती रहती हैं। हर मुद्दे पर सभी अपनी राय अलग अलग तरह से ब्यक्त करते हैं। कोई भाषण देता है, कोई कविता या गजल कहता है, कोई ब्यंग्य या कालम लिखता है। यह वेबसाइट भी अपने विचार ब्यक्त करने और आप लोगों से संवाद करने का एक माध्यम है। लेकिन बिना आपकी राय के यह संवाद पूरा नहीं हो सकता। अत: आप सब, किसी भी मुद्दे पर, या मेरी किसी भी रचना पर अपनी बेबाक राय अवश्य लिखें। जिससे मुझे लेखन में सुधार करने का मौका मिलेगा और अपना संवाद भी कायम होगा। |
अपना संविधान है....
सबको गरिमा से जीने का,
हक देता संविधान है।
वर्ण-लिंग या जाति-धर्म सब,
उसके लिए समान है।
वैज्ञानिक चेतना बढ़ाए…
ये दिल तो बेकरार, बहुत देर तक रहा।
उनका भी इंतजार, बहुत देर तक रहा।
हम बेखुदी में ही रहे, जब वो चले गए,
ख़ुद पर न अख़्तियार, बहुत देर तक रहा।…
आप सभी को नए साल की बहुत बहुत बधाई। आखिर आपने साल भर कड़ी मेहनत मशक्कत करके देश को भ्रष्टाचार के ऊपरी पायदानों पर रोके रखा। इतने सारे उतार चढ़ावों के बावजूद किसी भी तरह के भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आने दिया। कालाधन - कालाधन करने वालों का मुँह काला कर दिया। हम सभी ने इसके लिए जान लगा दिया। अब हम लो…
आदमी एक भावना प्रधान जीव होता है। उसमें भर भरके भावनाएं पायी जाती हैं, और ये भावनाएं भी बड़ी नाजुक, बड़ी भावुक, बड़ी कमजोर होती हैं। कब किस बात पर आहत हो जाएँ, पता ही नहीं चलता। बिल्कुल सावधानी हटी दुर्घटना घटी टाईप की ! भावनाएं आजकल ऐसी छुई मुई सी, नाजुक हो चली हैं कि आपने कुछ कहा नहीं कि ये आहत हुई !…
एक चुटकी गाँजे की कीमत आप क्या जानो, पाठक बाबू! एक चुटकी गाँजा, पीने वाले को जेल की सजा दिला सकता है, तो रोकने वाले अधिकारी को विदेश घूमने का मजा भी दिला सकता है। अगर सिस्टम ने एक चुटकी गांजे का दम मार लिया हो, तो तीन हजार किलो हाथ आए ड्रग को छोड़कर, 3 ग्राम गांजे की तलाश में दर-दर भटकने लगता है।…
हिन्दी में दो मशहूर कहवाते हैं, पहली, पेट भारी, तो बात भारी। और दूसरी, पेट भारी, तो मात भारी। दोनों कहवातें आजकल सोलह आने सच हो रही हैं। पहली का अर्थ है की अगर पेट भरा हो, खाये अघाए हो तो, बड़ी -बड़ी बातें निकलती हैं। दूसरी कहावत का मतलब है कि ज्यादा खाए-अघाए होने से पेट ख़राब होने से बीमारी पै…
सारे मसले, बारी बारी लिया करो।
बस चुनावकी ही, तैयारी किया करो।
देशभक्ति कब तक बस, चमचागीरी से,
नेताओं से कुछ, गद्दारी किया करो।…
हमारा देश लोकतन्त्र की एबी'सीडी' सीखते हुये 'एमएमएस' काण्ड से आगे बढ़कर 'लीक'तंत्र तक पहुँच गया है। हमारा 'गण'तन्त्र तो पहले ही तांत्रिक नेताओं के चमत्कार से 'गन'तंत्र हो चुका है । 'लोक'तंत्र के शैशवकाल में नेताओं के सीडी लीक्स से ही काम चल जाता था, सीएजी रिपोर्ट लीक से ही सरकारें हिल जाया करती थी, क…
पिछले दशकों में जब से बाजार ने फला ही फला वाला विज्ञापन शुरू किया है, सब तरफ फला ही फला छाया हुआ है. बाजार में किधर से भी गुजर जाइये, रजाई ही रजाई, गद्दे ही गद्दे, तकिया ही तकिया, चद्दर ही चद्दर आदि फलाने ही फलाने के पोस्टर छाये रहते हैं. आजकल तो वैवाहिक साइटों पर, दूल्हे ही दूल्हे के विज्ञापन भी खू…
गप्प लड़ाना हमारी महान सनातनी परम्परा रही है। आदिकाल से हमलोगों का गप्प लड़ाने में कोई सानी नहीं रहा है। अमीर हो या गरीब, कमजोर हो या पहलवान, गप्प लड़ाने में सब एक से बढ़कर एक। कहा जाए तो गप्प की एक संवृद्ध परंपरा हमारे देश में रही है, जो आजकल विदेशों तक फैल रही है। सास हो या पतोहू, ससुर हो या दामाद, जी…
इस कोरोना ने, भारतीय बिजनेस-मैनो और सत्ताधारी नेताओं के लिए, आपदा में अवसर बना दिया है। व्यापारी हों या सत्ताधारी, सबको आपदा में अवसर दे रही है कोरोना महामारी। लोगों की नौकरियां खाकर, काम-धंधा छुडवाकर, कर्मचारियों की छटनी करवाकर, वर्क फ्रॉम होम के नाम पर काम के घंटे बढ़वाकर, दफ्तरों को मेंटेन करने के…
आजकल आर्यावर्त में एक यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है कि किसान कौन है। बड़ा- बड़ा माइक उठाए, बहसोत्पादी लोग, इस सवाल का हल ढूँढने में लगे हैं कि किसान कौन है। यूं तो जिनके पास हल होता है, वही किसान प्रजाति का माना जा सकता है, लेकिन आजकल किसान के कंधों पर हल की जगह सवाल है, वो हल तो क्या ट्रैक्टर…
जब से खबरिया चैनलों का ‘रिपब्लिक’ हुआ है, तब से पब्लिक का ज्ञान, देश की ‘जीडीपी’ जैसा हो गया है। ‘व्हाट्सप्प’ यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कालरों ने, ‘जी’तोड़ मेहनत कर के सालों में दो जिम्मेदारों को ढूंढ निकाला है। एक हैं पूर्व प्रधानमंत्री, श्री जवाहरलाल नेहरू, और दूसरे हैं देश में कार्यरत पाकिस्तानी आतं…
एक चुटकी चरस की कीमत आप क्या जानो पाठक बाबू? भाषणबाजों के लिए ईश्वर का वरदान होती है एक चुटकी चरस... वोटरों को रोटी-पानी भुलवाकर, भावुक मुद्दों पे मतदान होती है एक चुटकी चरस... जनता को उसकी परेशानियाँ भुलवाकर, सम्मोहित करने वाली जादू की छड़ी होती है एक चुटकी चरस.... इज्जत से जीने की चाह रखने वालों के…
जिस तरह देश की रक्षा में, मरना जरूरी है। काम करो या ना करो, काम का दिखावा करना जरूरी है। अपने अच्छे दिन लाने के लिए, अपनी जेबें भरना जरूरी है। ईमानदार बनने के लिए, भ्रष्टाचार करना जरूरी है। ठीक वैसे ही देश के विकास के लिए, जनता-मीडिया-संस्थानो का, सरकार से डरना जरूरी है। हमारे देश की जनता, वैसे भी ड…
हे कलियुगी पाठकों, इस कलयुग में अगर कुछ सत्य है, तो वो है सिर्फ और सिर्फ खबरिया सर्वे। अभी-अभी बादामगिरी खाकर दिमाग पर ज़ोर दिया तो यह दर्शन समझ में आया, कि इस क्षणभंगुर संसार में सर्वेगीरी के अलावा, सारा जगत मिथ्या है। जनता मिथ्या है, उसके मुद्दे मिथ्या हैं। समाज मिथ्या है, देश मिथ्या है, लोकतन्त्र …
थरथर कांपे पाक अब, चीन और नेपाल ।
गर्व करो, नारे गढ़ो, आया देख रफाल ।।
रोजगार भी छिन रहा, क्राइम से बेहाल।
शिक्षा मिले न स्वास्थ्य ही, छोड़…
मानव जब से इस पृथ्वी पर अवतरित होता है, तब से लेकर मरने तक बस आत्मनिर्भर बनने की कोशिश में लगा रहता है। क्योंकि पुरखों की जमात हमेशा से, आने वाली पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनने के मंत्र देती रही है। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उकसाती रही है। लेकिन मनुष्य बचपन में माँ-बाप पर निर्भर रहता है, तो जवानी म…
हमारा देश विकास के आकाश में, गोते लगा रहा है। हर तरफ, बस विकास ही विकास नजर आ रहा है। अगर देश का विकास नहीं दिख रहा, तो नजर का विकास करिए, या फिर पाकिस्तान जाने का प्रयास करिए। आज विकास का वो जलवा है कि, अगर पुलिस, विकास को पकड़ने जाती है, तो पुलिस का एनकाउंटर हो जाता है। और अगर विकास, पुलिस की पकड़ म…
भक्त : ऋषिवर ये अचानक चाइना चाइना से चना चना कैसे होने लगा? गेंहू-चावल के साथ चना बांटने की सूचना देने के लिए प्रभू को टीवी पर क्यों अवतरित होना पड़ा? ये प्रभु ने जनता को चने बांटने का वादा क्यों किया है ऋषिवर? इस चने का क्या महात्म्य है?…
यूँ तो हम भारतवासी, सदियों से विश्वगुरु रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में हमारी विशेषज्ञता में चार चाँद लग गए है। अब तो हाल ये है कि हमें हर महीने, कभी-कभी तो हर हफ्ते, विशेषज्ञता के दौरे पड़ने लगे हैं। हालत यह हो गई है कि जब तक दो चार लोगों पर ज्ञान की बौछार न कर ली जाये, पेट साफ ही नहीं होता। हमारे …
जनता की आह यूँ ही, बेकार नहीं होती ।
केवल फतह, फरेब से, हर बार नहीं होती।
खुद पे हो भरोसा और, जज्बा बुलंद हो,
उसको किसी मदद की, दरकार न…
लोग मरते रहे, छटपटाते रहे।
अपने-अपने मसीहा, बुलाते रहे।
वक्त ही ना मिला, उन मसीहाओं को,
और दरिंदे तो, लाशें बिछाते रहे।…
एक दूसरे को हिंदू, मुस्लिम जला रहे हैं।
हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं।
है कौन बड़ा दोषी, और कौन मसीहा है?
जब मिल…
कलियुगी बाबा लोग प्रवचन ठेलते हैं कि मन बावरा है। सारे सांसारिक गलत कामों के लिए मन ही उकसाता है। बुजुर्ग लोग हर चीज में नकारात्मक सलाह देते हैं। ये मत करो। वो मत करो। यहाँ मत जाओ। वहाँ मत जाओ। मनमानी मत करो। इस महान भारतभूमि पर एसे बहुत से खलिहर महानुभाव वास करते हैं, जो आपको ‘मन’ और ‘मत’ पर घंटो प…
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Very well written
एकदम सटीक और relevant व्यंग, बढ़िया है भाई बढ़िया है,
आपकी लेखनी को salute भाई
Kya baat hai manoj ji aap ke vyang bahut he satik rehata hai bas aise he likhate rahiye
हम अपने देश की हालात क्या कहें साहब
आँखो में नींद और रजाई का साथ है फ़िर भी,
पढ़ने लगा तो पढ़ता बहुत देर तक रहा.
आप का लेख बहुत अच्छा है
Zakhm Abhi taaja hai.......
अति सुंदर।
अति सुन्दर
Very good
हमेशा की तरह उच्च कोटि की लेखनी....बहुत गहराई से, बहुत अर्थपूर्ण ढंग से व्यंग्य के साथ रचना की प्रस्तुति!
Bahut khoob bhai👏👏👏👌💐
Aur hamesha prasangik rahega…..very well written
हर समय यही व्यंग्य चुनाव पर सटीक बैठता है ❤️❤️❤️
असली नेता वही, जो जनता को पसंद वही बात कही , करे वही जिसमें खुद की भलाई , खुद खाये मलाई, जनता को दे आश्वासन की दुहाई