हम भारतीयों में एक खास किस्म की अंतरराष्ट्रीय आत्मा पायी जाती है। हम अमेरिका की स्वास्थ्य नीति, फ्रांस के किसान आंदोलन, इजराइल-गाजा संघर्ष, यूक्रेन-रूस युद्ध, और यहां तक कि अफ्रीका के जंगलों में मर रहे गैंडे तक पर इतनी गहराई से चर्चा कर लेते हैं, कि CNN और BBC वाले भी जल-भुन जाते होंगे। असल बात ये ह…
मनोज जानी॰ काम
मनोज जानी
![]() | मनोज जानी ड़ाट काम पर आपका स्वागत है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में घट रही घटनाएँ उसे कुछ ना कुछ सोचने को विवश करती रहती हैं। हर मुद्दे पर सभी अपनी राय अलग अलग तरह से ब्यक्त करते हैं। कोई भाषण देता है, कोई कविता या गजल कहता है, कोई ब्यंग्य या कालम लिखता है। यह वेबसाइट भी अपने विचार ब्यक्त करने और आप लोगों से संवाद करने का एक माध्यम है। लेकिन बिना आपकी राय के यह संवाद पूरा नहीं हो सकता। अत: आप सब, किसी भी मुद्दे पर, या मेरी किसी भी रचना पर अपनी बेबाक राय अवश्य लिखें। जिससे मुझे लेखन में सुधार करने का मौका मिलेगा और अपना संवाद भी कायम होगा। |
लेटेस्ट पोस्ट
लीक तंत्र का लोकतंत्र (व्यंग्य)
हमारे किसी महापुरुष ने कहा था कि हमारा देश, लोकतंत्र की जननी है। लेकिन आजकल हमारा प्यारा देश लीक- तंत्र का पप्पा बना हुआ है। देश में हर तरफ खटाखट- खटाखट पेपर लीक हो रहे हैं। पेपर लीक में हम लोग दुनिया में नंबर वन बन गए हैं। हमारे पप्पा युद्ध भले ही रुकवा लें, लेकिन एक भी पेपर लीक नहीं रोक पा रहे। हम…
बाबा फूले ने राह दिखाई है.........
बाबा फूले ने राह दिखाई है।
गुलामगीरी सबकी छुड़ाई है।
राष्ट्रीयता आए ना सब में,
जब ना जाति का भेद मिटे।
होगा ना संघर्ष सफल भी,…
जालिम किसान और मासूम सरकार !! (व्यंग्य)
ये जालिम किसान! दिनरात सरकार को करते रहते हैं परेशान। ये जालिम किसान! जो सरकार की शान पर बट्टा लगा देते हैं। रोज सरकार की कनपट्टी पर नई नई मांगों का कट्टा लगा देते हैं। बेचारी मासूम सरकार दो चार साल आराम से राज भी नहीं कर सकती इनके मारे। दो चार कानून भी नहीं बना सकती अपनी पसंद से। कोई मंत्री आजादी स…
अबकी बार ! बस कर यार ! (व्यंग्य)
जब से घोषित हुआ है चुनाव। वोटरों के बढ़ गए हैं भाव। वोटरों के लिए हर दिन त्योहार है। चारों ओर नारों की बौछार है। अबकी बार, फलां सरकार। अबकी बार, फलां सौ पार। बहुत हुआ बेरोजगारी की मार, अबकी बार फलाने की सरकार। बहुत हुआ महंगाई की मार, अबकी बार फला पार्टी की सरकार। ये सब सुन-सुन कर मैं हो गया था लाचार…
जोगीरा सा रा रा रा रा … (होली स्पेशल) - 2024
निकल रही है महंगाई से, फाग में मुंह से झाग
डीजल गैस के दाम ने देखो, पकड़ लिया है आग
जोगीरा सा रा रा रा रा …
बेगारी सुरसा के मुंह सी, बढ़े यह…
बुरा न मानो...
होली में, बुरा न मानने की बोली, दिल में गोली की तरह लगती है। 'बुरा न मानो', हमारे देश में सदियों से चली आ रही बड़ी प्यारी धमकी है कि 'भइया, हम तो तुम्हारे साथ बुरा करेंगे, लेकिन तुम बुरा मत मानना’। यानी, मारेंगे भी और रोने भी नहीं देंगे। आजकल तो यह हालत हो गयी है कि अगर सरकार की किसी भी बात का बुरा …
गुनहगार भी तुम्हीं..
मुंसिफ भी हो तुम्ही, और गुनहगार भी तुम्हीं।
तुम ही हो कार्पोरेट, और सरकार भी तुम्हीं।
जनता को कौन राह, दिखाएगा आजकल,…
गांधी के तीन बंदर !! (व्यंग्य)
वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्यों के पूर्वज बंदर थे। लेकिन बहुत से मनुष्यों की हरकतें देखकर लगता है कि आदमी ही बंदरों का पूर्वज रहा होगा। हालांकि बंदरों का राजनीति, समाज और साहित्य में बहुत ही महत्व रहा है। बंदरों के ऊपर बने मुहावरे इसका प्रमाण हैं। बन्दर के हाथ में उस्तरा। बन्दर क्या जाने अदरक का…
गांधीछाप की आशा ! सब मिल करें तमाशा !!
गांधी जयंती का वार्षिक तमाशा, एक ऐसा दिन है जब भारत सामूहिक रूप से महात्मा गांधी के सिद्धांतों, शांति, सादगी और अहिंसा का सम्मान करने का दिखावा करता है. जबकि शेष वर्ष में उनका दैनिक जीवन गांधी जी के सिद्धांतों के उलट ही रहता है. वास्तव में यह पाखंड और प्रतीकात्मकता का एक उल्लेखनीय दिन है, क्योंकि रा…
फिर इलेक्शन आ रहे हैं…
फिर ......
इलेक्शन आ रहे हैं…
जिन अछूतों को कभी,
मानव नहीं समझा गया।
कुम्भ में उन भंगियों के,
पाँव धोये जा रहे हैं।
फि…
कौन मरेगा, फिक्स है............
जला पसीना ईंट पकाया,
छेनी से भगवान बनाया।
मन्दिर मस्जिद बन जाने पर,
जो अंदर भी ना जा पाया।
किसके छूने पर भगवन को,
…
अब तो जाग ससुर के नाती...
अब तो जाग ससुर के नाती।
निकला सूरज, रात है भागी।
अब तो जाग, ससुर के नाती।
पांच किलो गेहूं चावल की,
तुम मरते हो लाइन में।…
ठंडा मतलब..... (व्यंग्य)
हमारे देश के लोग बहुत ही मतलबी होते हैं। अरे आप गलत मतलब निकाल रहे हैं, मतलबी का मतलब है, मतलब निकालने वाले ! यानि किसी बात का अर्थ समझने वाले। हमारे देश वासी, हर बात, हर घटना, हर चीज का अपना-अपना मतलब निकाल लेते हैं। केवल जनता ही नहीं, हमारे नेता, पत्रकार, बाबा, गुरु हो या गुरु घंटाल, सब अपना अपना …
अपना संविधान है.... (संविधान दिवस पर )
अपना संविधान है....
सबको गरिमा से जीने का,
हक देता संविधान है।
वर्ण-लिंग या जाति-धर्म सब,
उसके लिए समान है।
वैज्ञानिक चेतना बढ़ाए…
बहुत देर तक रहा.....
ये दिल तो बेकरार, बहुत देर तक रहा।
उनका भी इंतजार, बहुत देर तक रहा।
हम बेखुदी में ही रहे, जब वो चले गए,
ख़ुद पर न अख़्तियार, बहुत देर तक रहा।…
. . . हैप्पी न्यू ईयर !! 2022 (व्यंग्य)
आप सभी को नए साल की बहुत बहुत बधाई। आखिर आपने साल भर कड़ी मेहनत मशक्कत करके देश को भ्रष्टाचार के ऊपरी पायदानों पर रोके रखा। इतने सारे उतार चढ़ावों के बावजूद किसी भी तरह के भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आने दिया। कालाधन - कालाधन करने वालों का मुँह काला कर दिया। हम सभी ने इसके लिए जान लगा दिया। अब हम लो…
आहत है तो राहत है .... !! (व्यंग्य)
आदमी एक भावना प्रधान जीव होता है। उसमें भर भरके भावनाएं पायी जाती हैं, और ये भावनाएं भी बड़ी नाजुक, बड़ी भावुक, बड़ी कमजोर होती हैं। कब किस बात पर आहत हो जाएँ, पता ही नहीं चलता। बिल्कुल सावधानी हटी दुर्घटना घटी टाईप की ! भावनाएं आजकल ऐसी छुई मुई सी, नाजुक हो चली हैं कि आपने कुछ कहा नहीं कि ये आहत हुई !…
दम मारो दम.. .. मिट जाए गम .. (व्यंग्य)
एक चुटकी गाँजे की कीमत आप क्या जानो, पाठक बाबू! एक चुटकी गाँजा, पीने वाले को जेल की सजा दिला सकता है, तो रोकने वाले अधिकारी को विदेश घूमने का मजा भी दिला सकता है। अगर सिस्टम ने एक चुटकी गांजे का दम मार लिया हो, तो तीन हजार किलो हाथ आए ड्रग को छोड़कर, 3 ग्राम गांजे की तलाश में दर-दर भटकने लगता है।…
प्रचार और प्रोपोगंडा, पॉजिटिविटी का फंडा। (व्यंग्य)
हिन्दी में दो मशहूर कहवाते हैं, पहली, पेट भारी, तो बात भारी। और दूसरी, पेट भारी, तो मात भारी। दोनों कहवातें आजकल सोलह आने सच हो रही हैं। पहली का अर्थ है की अगर पेट भरा हो, खाये अघाए हो तो, बड़ी -बड़ी बातें निकलती हैं। दूसरी कहावत का मतलब है कि ज्यादा खाए-अघाए होने से पेट ख़राब होने से बीमारी पै…
सारे मसले, बारी बारी लिया करो......
सारे मसले, बारी बारी लिया करो।
बस चुनावकी ही, तैयारी किया करो।
देशभक्ति कब तक बस, चमचागीरी से,
नेताओं से कुछ, गद्दारी किया करो।…
लोकतन्त्र का 'लीक'तंत्र !! (व्यंग्य)
हमारा देश लोकतन्त्र की एबी'सीडी' सीखते हुये 'एमएमएस' काण्ड से आगे बढ़कर 'लीक'तंत्र तक पहुँच गया है। हमारा 'गण'तन्त्र तो पहले ही तांत्रिक नेताओं के चमत्कार से 'गन'तंत्र हो चुका है । 'लोक'तंत्र के शैशवकाल में नेताओं के सीडी लीक्स से ही काम चल जाता था, सीएजी रिपोर्ट लीक से ही सरकारें हिल जाया करती थी, क…
न्याय ही न्याय ! (व्यंग्य)
पिछले दशकों में जब से बाजार ने फला ही फला वाला विज्ञापन शुरू किया है, सब तरफ फला ही फला छाया हुआ है. बाजार में किधर से भी गुजर जाइये, रजाई ही रजाई, गद्दे ही गद्दे, तकिया ही तकिया, चद्दर ही चद्दर आदि फलाने ही फलाने के पोस्टर छाये रहते हैं. आजकल तो वैवाहिक साइटों पर, दूल्हे ही दूल्हे के विज्ञापन भी खू…
चलो गप्प लड़ायें, चलो गप्प लड़ायें….(व्यंग्य)
गप्प लड़ाना हमारी महान सनातनी परम्परा रही है। आदिकाल से हमलोगों का गप्प लड़ाने में कोई सानी नहीं रहा है। अमीर हो या गरीब, कमजोर हो या पहलवान, गप्प लड़ाने में सब एक से बढ़कर एक। कहा जाए तो गप्प की एक संवृद्ध परंपरा हमारे देश में रही है, जो आजकल विदेशों तक फैल रही है। सास हो या पतोहू, ससुर हो या दामाद, जी…
जब तक कमाई नहीं, तब ढिलाई नहीं। (व्यंग्य)
इस कोरोना ने, भारतीय बिजनेस-मैनो और सत्ताधारी नेताओं के लिए, आपदा में अवसर बना दिया है। व्यापारी हों या सत्ताधारी, सबको आपदा में अवसर दे रही है कोरोना महामारी। लोगों की नौकरियां खाकर, काम-धंधा छुडवाकर, कर्मचारियों की छटनी करवाकर, वर्क फ्रॉम होम के नाम पर काम के घंटे बढ़वाकर, दफ्तरों को मेंटेन करने के…
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