हमारा देश लोकतन्त्र की एबी'सीडी' सीखते हुये 'एमएमएस' काण्ड से आगे बढ़कर 'लीक'तंत्र तक पहुँच गया है। हमारा 'गण'तन्त्र तो पहले ही तांत्रिक नेताओं के चमत्कार से 'गन'तंत्र हो चुका है । 'लोक'तंत्र के शैशवकाल में नेताओं के सीडी लीक्स से ही काम चल जाता था, सीएजी रिपोर्ट लीक से ही सरकारें हिल जाया करती थी, क…
व्यंग्यों की सूची
- लोकतन्त्र का 'लीक'तंत्र !!
- न्याय ही न्याय !
- चलो गप्प लड़ायें, चलो गप्प लड़ायें….
- जब तक कमाई नहीं, तब ढिलाई नहीं।
- किसान कौन?
- जिम्मेदार की तलाश...
- एक चुटकी चरस .... ! (व्यंग्य)
- सर्वे की मारी, जनता बेचारी .......
- निर्भरता में आत्मनिर्भर ...
- विकास हो रहा है.....
- चना की अर्चना !
- इन सम कोउ ज्ञानी जग नाहीं !!
- मन के मत पे मत करियो.....
- आँकड़ों पर रार..., पब्लिक बेरोजगार !
- सोच बदलो, देश बदलेगा ....
- ... और रावण जल गया।
- हाथों में क्या है? (व्यंग्य)
- महानता हमारा, जन्मसिद्ध अधिकार है....
- डरना जरूरी है...... !!!
- समस्या हैप्पी न्यू ईयर की ....
- . . . हैप्पी न्यू ईयर !! 2018
- समस्या, एक ‘राष्ट्रीय समस्या’ की !
- टेक्निकल लोचा.......
- हार की समीक्षा।
- मुद्दे हजार, वोटर लाचार
- देश बचाने का मौसम.....
- खुश है जमाना आज.....
- जनता उम्मीद से है........
- पहली नजर में.....
- मुबारक नया साल। पुराने का नहीं मलाल।
- कोई भी पाल्यूशन ! आड-ईवन साल्यूशन।
- सेवलान का धुला
- चलने भी दो यारों....
- बुलट की स्पीड....
- सर्वे का मारा, वोटर बेचारा !!
- जजन्त्रम्, ममन्त्रम्, गणतन्त्रम् !!
- बच्चे कितने अच्छे???
- बनो जुगाड़ू, लगाओ झाड़ू !!
- बाढ़ मुबारक !!!!
- लौट के बुद्धू घर को आए.......
- गर्व से कहो, हम नेता हैं.....
- दिल्ली के बन्दर... (ब्यंग्य)
- सबहि नचावत – करत बगावत
- बागी नेता का इंटरव्यू
- संतई-सेवकई-और सैफई
- बीते का मलाल! मुबारक नया साल !!
- इमला लिख!
- तलाश एक मुद्दे की !!
- तारीख पे तारीख..
- यत्र उलूकस्य पूज्यन्ते..... ....
ब्यंग्य
न्याय ही न्याय !
पिछले दशकों में जब से बाजार ने फला ही फला वाला विज्ञापन शुरू किया है, सब तरफ फला ही फला छाया हुआ है. बाजार में किधर से भी गुजर जाइये, रजाई ही रजाई, गद्दे ही गद्दे, तकिया ही तकिया, चद्दर ही चद्दर आदि फलाने ही फलाने के पोस्टर छाये रहते हैं. आजकल तो वैवाहिक साइटों पर, दूल्हे ही दूल्हे के विज्ञापन भी खू…
चलो गप्प लड़ायें, चलो गप्प लड़ायें….
गप्प लड़ाना हमारी महान सनातनी परम्परा रही है। आदिकाल से हमलोगों का गप्प लड़ाने में कोई सानी नहीं रहा है। अमीर हो या गरीब, कमजोर हो या पहलवान, गप्प लड़ाने में सब एक से बढ़कर एक। कहा जाए तो गप्प की एक संवृद्ध परंपरा हमारे देश में रही है, जो आजकल विदेशों तक फैल रही है। सास हो या पतोहू, ससुर हो या दामाद, जी…
जब तक कमाई नहीं, तब ढिलाई नहीं।
इस कोरोना ने, भारतीय बिजनेस-मैनो और सत्ताधारी नेताओं के लिए, आपदा में अवसर बना दिया है। व्यापारी हों या सत्ताधारी, सबको आपदा में अवसर दे रही है कोरोना महामारी। लोगों की नौकरियां खाकर, काम-धंधा छुडवाकर, कर्मचारियों की छटनी करवाकर, वर्क फ्रॉम होम के नाम पर काम के घंटे बढ़वाकर, दफ्तरों को मेंटेन करने के…
किसान कौन?
आजकल आर्यावर्त में एक यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है कि किसान कौन है। बड़ा- बड़ा माइक उठाए, बहसोत्पादी लोग, इस सवाल का हल ढूँढने में लगे हैं कि किसान कौन है। यूं तो जिनके पास हल होता है, वही किसान प्रजाति का माना जा सकता है, लेकिन आजकल किसान के कंधों पर हल की जगह सवाल है, वो हल तो क्या ट्रैक्टर-…
जिम्मेदार की तलाश...
जब से खबरिया चैनलों का ‘रिपब्लिक’ हुआ है, तब से पब्लिक का ज्ञान, देश की ‘जीडीपी’ जैसा हो गया है। ‘व्हाट्सप्प’ यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कालरों ने, ‘जी’तोड़ मेहनत कर के सालों में दो जिम्मेदारों को ढूंढ निकाला है। एक हैं पूर्व प्रधानमंत्री, श्री जवाहरलाल नेहरू, और दूसरे हैं देश में कार्यरत पाकिस्तानी आतं…
एक चुटकी चरस .... ! (व्यंग्य)
एक चुटकी चरस की कीमत आप क्या जानो पाठक बाबू? भाषणबाजों के लिए ईश्वर का वरदान होती है एक चुटकी चरस... वोटरों को रोटी-पानी भुलवाकर, भावुक मुद्दों पे मतदान होती है एक चुटकी चरस... जनता को उसकी परेशानियाँ भुलवाकर, सम्मोहित करने वाली जादू की छड़ी होती है एक चुटकी चरस.... इज्जत से जीने की चाह रखने वालों के…
सर्वे की मारी, जनता बेचारी .......
हे कलियुगी पाठकों, इस कलयुग में अगर कुछ सत्य है, तो वो है सिर्फ और सिर्फ खबरिया सर्वे। अभी-अभी बादामगिरी खाकर दिमाग पर ज़ोर दिया तो यह दर्शन समझ में आया, कि इस क्षणभंगुर संसार में सर्वेगीरी के अलावा, सारा जगत मिथ्या है। जनता मिथ्या है, उसके मुद्दे मिथ्या हैं। समाज मिथ्या है, देश मिथ्या है, लोकतन्त्र …
निर्भरता में आत्मनिर्भर ...
मानव जब से इस पृथ्वी पर अवतरित होता है, तब से लेकर मरने तक बस आत्मनिर्भर बनने की कोशिश में लगा रहता है। क्योंकि पुरखों की जमात हमेशा से, आने वाली पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनने के मंत्र देती रही है। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उकसाती रही है। लेकिन मनुष्य बचपन में माँ-बाप पर निर्भर रहता है, तो जवानी म…
विकास हो रहा है.....
हमारा देश विकास के आकाश में, गोते लगा रहा है। हर तरफ, बस विकास ही विकास नजर आ रहा है। अगर देश का विकास नहीं दिख रहा, तो नजर का विकास करिए, या फिर पाकिस्तान जाने का प्रयास करिए। आज विकास का वो जलवा है कि, अगर पुलिस, विकास को पकड़ने जाती है, तो पुलिस का एनकाउंटर हो जाता है। और अगर विकास, पुलिस की पकड़ म…
कैसी लगी रचना आपको ? जरूर बताइये ।
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आपकी राय
Very nice Sir, you always highlight important point of the country.
भाई रावण कब तक जलाएंगे लाखों खुले आम घूम रहे हैं उनका क्या होगा और कब होगा??
Wha kya baat hain.
एकदम झन्नाटेदार थप्पड़ की तरह रसीद किया है भाई आपने ये जागरूकता चरस भरा व्यंग्यात्मक लेख। उम्मीद है कि hard-core चरसीयों पर भी भारी पड़े आपका ये जागरूक करने वाला चरस।
आप का व्यंग्य बहुत अच्छा है ,एक चुटकी चरस का असर बहुत है।
Jara saa vyngy roopi charas bhii chakh lenaa chahiye .Dil khush ho jaataa hai.bahut khoob kaha......
सटीक व्यंग्य। फ़िल्म में किसी महा पुरूष या स्त्री का किरदार निभाकर क्या वास्तविक जीवन में भी वैसा होने का दावा कर सकता/सकती है। इसके नकारात्मक पहलू को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । डायन/ चुड़ैल/ वेश्या / चोर/ डकैत/ बलात्कारी का किरदार निभाने वालों के बारे में केवल कल्पना करें तो...
Bahut khub sir
वास्तविकता यही है। सम्मान की भावना नहीं है कहीं भी।
Good analysis sir, amazing
Waw that's so funny but to the point
Bahut badia samman
Ati uttam sir
उचित कहा, यह हमारी विडंबना है कि हमें हिन्दी पखवाड़ा मनाना पड़ता है |
बहुत सुंदर प्रस्तुति। वास्तव में ये बड़ी विपरीत धारणा हमारे देश मे है कि हिन्दी भाषी लोग पिछड़े होते है शायद इसी कारण अंग्रेजी में बात करना लोग अपनी शान और अग्रिम पंक्ति में बने रहना मानते है। आपको बहुत बधाई। आगे भी आपकी व्यग्य यात्रा और विकसित स्तर पर पहुचे। शुभकामनाये
Kavi Sammelan
Leh Kavi Sammelan
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