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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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दम मारो दम.. .. मिट जाए गम .. (व्यंग्य)

एक चुटकी गाँजे की कीमत आप क्या जानो, पाठक बाबू! एक चुटकी गाँजा, पीने वाले को जेल की सजा दिला सकता है, तो रोकने वाले अधिकारी को विदेश घूमने का मजा भी दिला सकता है। अगर सिस्टम ने एक चुटकी गांजे का दम मार लिया हो, तो तीन हजार किलो हाथ आए ड्रग को छोड़कर, 3 ग्राम गांजे की तलाश में दर-दर भटकने लगता है।

दम मारना और दम मरवाना, देश हित के लिए बहुत ही जरूरी होता है। क्योंकि बिना दम मारे, गड्ढे वाली सड़कों के भी टोल तो जनता चुकाएगी नहीं। एक बार लाखों का रोड टैक्स देकर गाड़ी खरीदने के बाद, फिर रोड पर चलने के लिए भारी टोल भी नहीं चुकाएगी। दम लगाई हुई जनता, अपना पेट काटकर भी नेताओं के एश में कोई कमी नहीं होने देती। देश हित में 200 रु में खाने का तेल, तो 100 रु में पेट्रोल -डीजल खरीद कर जश्न मना लेगी।  

दम लगाने के बाद, किसी नेता ने खुद जीतने पर 5 साल में जनता के लिए क्या किया सब भूल जाता है, लेकिन तीस साल पहले विरोधी ने जीतकर क्या नहीं किया यह बखूबी याद आ जाता है। वह विपक्षी से चालीस साल, पचास साल या सत्तर साल का हिसाब तो मांगने लगता है, लेकिन खुद अपना 5 साल का हिसाब याद करना तो दूर, कोई और भी याद करा दे तो उस पर एनएसए लगा कर जेल भेज दे।

जिस तरह शरीफ़ों के बीच में कोई गंजेड़ी घुस जाए तो शरीफ़ों को परेशानी होने लगती है, उसी तरह जब सब दम मारे हुए हों तो उनके बीच कोई शरीफ आदमी फंस जाए तो उसका जीना मुहाल हो जाता है।

दम मारने के बाद आदमी खुमारी में आ जाता है। उसे अपनी सारी तकलीफें भूल जाती हैं। इसीलिए कवि ने कहा है कि दम मारो दम, मिट जाए गम। दम मारने से गम मिटता भले ना हो, भूल जरूर जाता है और आदमी, गर्व करने और जश्न मनाने के लिए तैयार हो जाता है।

आजकल दम मारने वालों ने, जनता को गर्व करवा कर और जश्न मनवाकर बेदम कर रखा है। हर बात में गर्व करो और जश्न मनाओ। सांस ली तो गर्व करो और जश्न मनाओ। हवा छोड़ी तो भी गर्व करो और जश्न मनाओ। दो ही लोगों की प्रतियोगिता में भी अगर द्वितीय आओ तो भी गर्व करो और जश्न मनाओ। सौ करोड़ से अधिक आबादी वाले दुनिया में सिर्फ दो देश हैं, एक चीन दूसरा हम। लेकिन हमारा कोई जोड़ नहीं है कि दुनिया में हमने चीन से  6 महीने बाद भी सौ करोड़ टीके लगाकर गर्व और जश्न मना लेते हैं।

दम मारने की बात ही अलग है। दम मारने के बाद ‘उनको’ टाइट करने के चक्कर में ‘हम’ खुद टाइट होकर भी, गर्व कर लेते हैं, जश्न मना लेते हैं। उनकी बिरयानी बंद कराने के चक्कर में अपनी खिचड़ी भी मुहाल हो जाए, फिर भी आनंदित होकर गर्व कर लेते हैं और जश्न भी मना लेते हैं।

दम मारने के बाद बच्चों के प्राइवेट स्कूल की फीस, तेल की आसमानी कीमतों या जेबें निचोड़ते प्राइवेट अस्पताल, कुछ याद नहीं रहता, बल्कि इसपर भी गर्व कर लेते हैं, जश्न मना लेते हैं। जैसे कवि ने कहा था ‘दुनिया ने हम को दिया क्या? दुनिया से हम ने लिया क्या? हम सब की परवाह करें क्यूँ,  सब ने हमारा किया क्या?’..  दम लगाने के बाद पूरा गीता का ज्ञान बाहर छलकने लगता है।  

गाँजा या नशा कोई भी हो सकता है, सब बराबर कारगर या असरदार  होता है। बाबा मार्क्स ने कहा था कि धर्म एक अफीम है। अब इससे सस्ता और सर्व-सुलभ दूसरा क्या होगा। और धर्म का नशा कोई अपराध भी नहीं है। इसलिए आजकल लोग इस खूब दम मारे हुए हैं। इसके सबसे बड़े व्यापारी तो न्यूज चैनल्स हैं। दिन रात बांटते रहते हैं। बुद्धू बक्से पर बैठकर दिन रात धर्म खतरे में है, चिल्लाते रहते हैं। जनता की शिक्षा, स्वास्थ्य, काम-धंधा के खतरे पर कोई बात नहीं, लेकिन हिन्दू-मुसलमान और चीन-पाकिस्तान पर रात दिन छाती पीटते रहते हैं। तो छोड़िए अपनी समस्याएं और आप भी दम मारो और गम भूल जाओ..

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Comment

आपकी राय

फटाफट पेपर लीक हो रहे हैं और झटपट लोगों तक पहुंच जा रहे हैं खटाखट जनप्रति निधि माला माल हो रहे हैं निश्चित ही विश्व गुरू बनने से भारत को कोई माई का लाल रोक नहीं सकता।

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...