ये दिल तो बेकरार, बहुत देर तक रहा।
उनका भी इंतजार, बहुत देर तक रहा।
हम बेखुदी में ही रहे, जब वो चले गए,
ख़ुद पर न अख़्तियार, बहुत देर तक रहा।
मिलने का करके वादा, आए नहीं मगर,
मिलने को मैं तैयार, बहुत देर तक रहा।
झूठी है उनकी फितरत, मालूम थी मगर,
वादों का मैं शिकार, बहुत देर तक रहा।
मर भी गया तो अपने, मसीहा को देखकर,
वैसे तो वो बीमार, बहुत देर तक रहा।
यूं तो कदम-कदम पर, नादानियाँ हुईं,
कहने को होशियार, बहुत देर तक रहा।
जिसको चुकाने के लिए, ये उम्र कम लगे,
माँ-बाप का उधार, बहुत देर तक रहा।
ये लोग, ये समाज, नजर आए तो मगर,
जुल्फों में गिरफ्तार, बहुत देर तक रहा।
उसका बढा मिला, कभी हिसाब जो हुआ,
लेकिन वो कर्जदार, बहुत देर तक रहा।
उसकी दगाओं की मुझे, आहट भी ना हुई,
उससे मैं खबरदार, बहुत देर तक रहा।
उसके फरेब झूठ की, आई नहीं खबर,
बगलों में पत्रकार, बहुत देर तक रहा।
उसकी बुराइयों को, भला कैसे मैं कहूँ,
वो मेरा राजदार, बहुत देर तक रहा।
ये रूठना - मनाना, नाराजगी तो है,
अपनों से न तकरार, बहुत देर तक रहा।
जब मिल नहीं सके तो, ख़्वाहिश ही छोड़ दी,
जिसका वो तलबगार, बहुत देर तक रहा।
उसने ही चलाया है, खंजर वो आख़िरी,
जिसका वो मददगार, बहुत देर तक रहा।
नफरत का वो खुमार, बहुत देर तक रहा।
धर्मों से नफ़रतों को, दिलों में उतारकर,
'जानी' मैं शर्मसार, बहुत देर तक रहा।