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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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बुरा न मानो...

होली में, बुरा न मानने की बोली, दिल में गोली की तरह लगती है। 'बुरा न मानो', हमारे देश में सदियों से चली आ रही बड़ी प्यारी धमकी है कि 'भइया, हम तो तुम्हारे साथ बुरा करेंगे, लेकिन तुम बुरा मत मानना’। यानी, मारेंगे भी और रोने भी नहीं देंगे। आजकल तो यह हालत हो गयी है कि अगर सरकार की किसी भी बात का बुरा माना, तो पाकिस्तानी का, गद्दार का, देशद्रोही आदि का सर्टीफिकेट तुम्हारे नाम जारी कर दिया जाएगा। सरकार भले पाकिस्तान को 'मोस्ट फेवरेबल नेशन' में रखे, लेकिन अगर तुमने पाकिस्तान का नाम भी लिया तो तुम्हें गद्दारों के सरदारों में शामिल कर दिया जाएगा।

होली में जब हम 'बुरा न मानो...' के मंत्रोच्चार के साथ आपके गालों पर पवित्र गोबर का लेप करें, तो आप बिल्कुल बुरा मत मानना, क्योंकि गोबर होली, हमारी पुरातन संस्कृति है। हम हमेशा एक-दूसरे पर गोबर ही मलते रहते हैं। चुनाव का मदमस्त महीना आ जाए तो पूरा माहौल ही गोबरमय हो जाता है। बड़े-बड़े विरोधियों के मुँह पर किस्म-किस्म के गोबर मले जाते हैं। सबके चेहरे इतने गोबरमय हो जाते हैं कि कोई किसी का बुरा मानने लायक ही नहीं रह जाता, बल्कि सभी और अधिक उत्साह से एक-दूसरे पर गोबर वर्षा करने लग जाते हैं।

बुरा न मानना हमारे डीएनए में है । जब गोडसे का मंदिर बनाकर गांधी और देश के ऊपर गोबर डाला गया, तो क्या गांधी बाबा, देशवासी, या सरकार किसी ने बुरा माना ? तो भाई, तुम क्यों बुरा मान रहे हो ? जब जवाहरलाल पर कीचड़ फेंका गया, क्या किसी ने बुरा माना ? बहुत से नेताओं पर भ्रष्टाचारी होने का कीचड़ फेंका गया, तब भी किसी ने बुरा माना क्या ? हाँ, जय शाह पर फेंका गया, तो वो बुरा मान गए और मानहानि का मुकदमा कर दिये। लेकिन वो नेता थोड़े ही हैं कि हर कीचड़ को 'फेयर एण्ड लवली' समझकर अपने चेहरे पर सजा लेंगे और बुरा नहीं मानेंगे ? वैसे भी वो 'शाह' हैं, जनता थोड़े ही हैं। 'बुरा न मानो' का नारा केवल जनता के लिए होता है, 'टर्म्स एण्ड कंडीशन्स अप्लाई' के साथ !

जनता को तो बुरा मानने का रत्ती भर भी अधिकार नहीं है। हमारे नेताओं ने जनता की गरीबी मिटाने के नाम पर, अपनों की खूब गरीबी मिटाई । लेकिन जनता ने बुरा नहीं माना। जनता के अच्छे दिन लाने के नाम पर अपनों के जमकर अच्छे दिन लाये । जनता ने फिर भी बुरा नहीं माना। नेताओं ने तरह-तरह के नारों और जुमलों से जनता को लूटा, लेकिन जनता ने कभी भी 'मन की बात' तक नहीं की । जनता लाइनों में खड़ी होकर जान दे सकती है, पर बुरा कभी भी नहीं मानती । वह मानती है सिर्फ नेताओं की बात। वो भी बिना बुरा माने ! हमारे देश की जनता तो इतनी सहिष्णु है कि नेताओं के साथ-साथ गुंडों का भी बुरा नहीं मानती । करणी सेना, गौरक्षक दल टाइप के लोग चाहे जितने उत्पात मचाएँ, पर हमारे देशवासी कभी बुरा नहीं मानते । क्रिसमस या वैलेंटाइन के नाम पर कितना भी ताण्डव करें, फिर भी जनता बुरा नहीं मानती ।

बेचारी जनता भी क्या करे ? उसको सदियों से 'बुरा न मानो' कह कह कर इतना गोबर खिलाया गया है और गौमूत्र पिलाया गया है कि उसे चाहे जितना चूसो, लूटो, प्रताड़ित करो... लेकिन उसके सामने पाकिस्तान, राम-रहीम, सभ्यता-संस्कृति का नाम ले लो, तो वह अपने ऊपर हुए किसी भी अत्याचार को भूल जाती है। दिवाली में सरयू में लाखों दीपक जला दो, तो अस्पतालों में ऑक्सीजन के बिना बुझे लाखों चिरागों को भूल जाती है । अटके हुए राम मंदिर की याद करा दो, तो लटके हुए लाखों किसानो को भूल जाती है। कुंभ का मेला दिखा दो, तो बेरोजगारी का कुंभ भूल जाएगी । 'परम प्रिय' चीन से 'सबसे बड़ी' मूर्ति बनवा दो, तो शिक्षा - स्वास्थ्य भूल जाती है। वैसे, अगर जनता किसी बात का बुरा मान भी ले, तो क्या बिगाड़ लेगी ? 

देखा जाए तो बुरा न मानने का कॉपीराइट सिर्फ जनता के ही पास है। नेता इसके दायरे के बाहर हैं। जैसे प्यार में इनकार को भी इकरार माना जाता है, वैसे ही नेताओं में 'बुरा न मानो' कहने पर भी बुरा मानने का रिवाज है । ममता दी कार्टून बनाने पर बुरा मान जाती हैं और कार्टूनिस्ट को जेल भेज देती हैं। योगी बाबा, फेसबुक कमेन्ट पर बुरा मानकर जेल भिजवा देते हैं। बाकी बड़ी-बड़ी पार्टियाँ बुरा मानने के लिए बाकायदा ट्रोल सेन्टर खोल रखी हैं। गठबंधन सरकारों के दौर में तो गठबंधन की हर पार्टी को बुरा मानने का दौरा पड़ता ही रहता था। चुनावों में मनचाहे टिकट न मिलने पर तो नेता लोग बुरा मानकर घर वापसी करते ही रहते हैं।

कुल मिलाकर लब्बोलुआब ये है कि बुरा मानना या न मानना, आदमी की औकात पर निर्भर करता है । बुरा मानने का लाइसेंस सिर्फ दबंगों, रसूखदारों, सरकारों और नेताओं के पास है । 'आम आदमी', चाहे वो वोट देने वाला हो (जनता), या वोट लेने वाला (पार्टी), बुरा मानने की योग्यता से परे है। इसीलिए कहा है कि-

बुरा जो मानन मैं चला, लगी बड़न की हाय । 

बुरा मान गए बड़न जो, दियो जेल पहुंचाय।

 

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Comment

आपकी राय

फटाफट पेपर लीक हो रहे हैं और झटपट लोगों तक पहुंच जा रहे हैं खटाखट जनप्रति निधि माला माल हो रहे हैं निश्चित ही विश्व गुरू बनने से भारत को कोई माई का लाल रोक नहीं सकता।

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...