जब से घोषित हुआ है चुनाव। वोटरों के बढ़ गए हैं भाव। वोटरों के लिए हर दिन त्योहार है। चारों ओर नारों की बौछार है। अबकी बार, फलां सरकार। अबकी बार, फलां सौ पार। बहुत हुआ बेरोजगारी की मार, अबकी बार फलाने की सरकार। बहुत हुआ महंगाई की मार, अबकी बार फला पार्टी की सरकार। ये सब सुन-सुन कर मैं हो गया था लाचार। और अपनी मजबूरी लेकर पहुँच गया ऋषिवर के द्वार। ऋषिवर के चरणों में लंबलोट दंडवत होकर गुहार लगाई। अपनी मजबूरी ऋषिवर को बताई।
मैं : प्रभो ये अबकी बार, अबकी बार का क्या चक्कर है? वोटर तो सर्वे और विज्ञापनों के अबकी बार में घनचक्कर है। तबकी बार, उससे भी तबकी बार, जो वादों की हुई थी बौछार, उसमें कितने वादे हुए साकार। कोई बताने को नहीं है तैयार। उधर हर सर्वे-विज्ञापन में अबकी बार -अबकी बार। प्रभु कुछ राह दिखाएं। इस भक्त के ज्ञान दीप जलाएं।
ऋषिवर: वत्स, यह दुनिया मोह माया है। यहां चुनाव वही जीत पाया है, जिसने अपना मायाजाल फैलाया है। अबकी बार, तबकी बार, सबकी बार का जो उद्गार है। वो इसी चुनावी मायाजाल का विस्तार है। 'राम से बड़ा राम का नाम’ वाले इस सतयुगी कलयुग में, काम से बड़ा काम का नाम होता है बच्चा। जो काम नहीं उद्घाटन के फोटो शूट में अपना जीवन अर्पित कर दे, वही नेता होता है सच्चा।
सालों साल से वही घिसी-पिटी महंगाई की मार, सुन-सुन कर वोटर थक चुका है। भ्रष्टाचार और बेगारी की मार सुन-सुन कर पक चुका है। उसे अब चाहिए नए- नये रोमांचक नारे। जिसके पीछे छुप जाएँ जरूरी मुद्दे सारे। उसे भा रहा है, देशभक्ति, राष्ट्रवाद और रामराज्य का गान। शिक्षा-स्वास्थ्य-रोजगार से हट गया है ध्यान। भक्ति का भूत उसपे सवार है। इसलिए फलां पार्टी, अबकी बार चार सौ पार है।
मैं : ऋषिवर! तो क्या चुनावी बान्ड का मुद्दा ब्यर्थ है? बेगारी, गरीबी, शिक्षा-स्वास्थ्य के मुद्दे का भी कोई अर्थ है? विपक्ष के पैसे चुनाव में सील कर, सरकारी खाते में आ चुके हैं। आधे विपक्षी जेल में ठूँसे जा चुके हैं। मीडिया में विज्ञापन की सुपारी से, जनता के मुद्दों की एसी-तैसी है। और हम गर्व कर रहे हैं की हमारा देश, मदर ऑफ डेमोक्रेसी है।
ऋषिवर: प्रिय वत्स, सुनो। मेरी बातें गुनो। जनता, सांसद, अधिकारी, विपक्षी या मीडिया, सब पैसे पे मरता है। और ईडी सीबीआई से डरता है। इसलिए इसी से, इनका और चुनावी बांड का शिकार, जेम्स बॉन्ड करता है। इस तरह सौ कमाने वाला भी चंदा हजार का भरता है। ये गंदा है पर धंधा है। डेमोक्रेसी के लिए जरूरी चंदा है। जहां तक मदर की बात है। यह एक राज है। हमें जिसको करना होता है शोषित। उसे कर देते हैं, मदर घोषित। जब से गाय हमारी माता है, का नारा लगाया है। बीफ एक्सपोर्ट में भारत को, नंबर वन बनाया है। गाय माता की सेवा के लिए, बीफ निर्यातकों से, चंदा भी खाया है।
नौ दिन नौरात्री में, जिन महिलाओं को पूजते हैं माता के नाम पर। जबरन चन्दा वसूलते हैं, जगराता के नाम पर। फिर उन्ही कन्याओं को भ्रूण में ही मार देते हैं। पैदा भी हो गई तो पराया धन सा प्यार देते हैं। बड़ी होती बेटियाँ, लगने लगती हैं बोझ। ये होती है माता कहने वालों की सोच। तो वत्स! जिस चीज का, जितनी जोर से, नारा लगाया जाता है। उसके असली मुद्दे को, उतनी ही जोर से दबाया जाता है।
मैं : धन्य हो प्रभु ! आप की लीला अपरंपार है। अब मुझे ‘अबकी बार’ की महिमा भी सुना दें तो मैं इस चुनावी समय की वैतरणी के भव सागर को पार कर जाऊँ।
ऋषिवर: तो सुनो वत्स! ये ‘अबकी बार’ शब्द, बहुत ही पाजीटिव एनर्जी को छोड़ता है। पुराने किए गए वादों से जनता को मोड़ता है। जनता को यह उम्मीद दिलाता है कि तुम पिछली बार से अब तक जो जो चाह रहे थे। वो सब ‘अबकी बार’ होगा। सारा जोर उन वादों पर नहीं, ‘अबकी बार’ पर होता है। जैसे वकील अपने क्लाइंट को अदालत की हर तारीख पर समझाता है कि बस ‘अबकी बार’ विरोधी को सजा मिल ही जाएगी। और क्लाइंट तात्कालिक खुश होकर पिछली सैकड़ों एसी ही तारीखों पर, वकील के एसे ही वादों को भूलकर बस ‘अबकी बार’ की खुशी की कल्पनाओं में खो जाता है। ये अलग बात है कि उसे इस बार भी तारीख ही मिलती है। लेकिन अगली तारीख पर वही क्लाइंट एक बार फिर से ‘अबकी बार’ के झांसे में खुश हो जाता है। तो वत्स! ‘अबकी बार’ एसा मायाजाल है, कि इसमें उलझकर वोटर, आशान्वित होकर फिर से छला जाता है। इसलिए नेताओं द्वारा हर चुनाव में ‘अबकी बार’ का ब्रह्मास्त्र चला जाता है। वत्स! जितनी जोर से ‘अबकी बार’ का नारा लगाया जाता है। उतनी तेजी से तबकी (पिछली) बार का वादा भुलाया जाता है।
ऋषिवर के मुखारविंद से प्रवाहित इस अलौकिक ज्ञान गंगा से तृप्त होकर मैं, उनकी जय-जयकार करने लगा। ‘अबकी बार’ के महात्म्य को जानकर, मैं भी इसका जोर जोर से नारे लगाने लगा। ‘अबकी बार’ फलां सरकार! नहीं सहेंगे अत्याचार! ‘अबकी बार’...... तभी पिताजी ने झकझोरते हुए नींद से जगाया और थप्पड़ लगाते हुए बोले....बस कर यार!