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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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जालिम किसान और मासूम सरकार !! (व्यंग्य)

ये जालिम किसान! दिनरात सरकार को करते रहते हैं परेशान। ये जालिम किसान! जो सरकार की शान पर बट्टा लगा देते हैं। रोज सरकार की कनपट्टी पर नई नई मांगों का कट्टा लगा देते हैं। बेचारी मासूम सरकार दो चार साल आराम से राज भी नहीं कर सकती इनके मारे। दो चार कानून भी नहीं बना सकती अपनी पसंद से। कोई मंत्री आजादी से गाड़ी चलाकर, दो चार को मार भी नहीं सकता इन जालिम किसानों का बस चले तो। वो तो भला हो कि हमारी सरकार इतनी मासूम है कि उसे जनता फनता से कोई लगाव नहीं है। नहीं तो इनके चक्कर में ही परेशान रहती। अभी तो बस छोटे-मोटे,  बेचारे गरीब गुरबे उद्योगपतियों के लिए ही दिन-रात हलकान रहती है। उस पर अगर जनता की भी फिक्र हो जाएगी तो बेचारी सरकार का क्या होगा।

लेकिन ये जालिम किसान, बेचारी मासूम सरकार को ना बोलने देते हैं, ना कानून बनाने देते हैं, ना बैरियर लगाने देते हैं। अब ये क्या कि सरकार ने बोल दिया कि एमएसपी मिलेगी, तो बात पकड़ के बैठ गए। सरकार जो भी बोलती है, उसी बात को पकड़ के बैठ जाते हैं। कभी पंद्रह लाख की बात तो कभी दो करोड़ रोजगार। अरे भाई सरकार ने ही तो यह भी बोला था कि ये सब चुनावी जुमले होते हैं। इस पर मत जाओ। फिर इस बात को क्यों नहीं सुनते? अरे ज़ालिमों, क्या अब कोई जुमला भी नहीं छोड़ सकता? पहले की सरकारों ने गरीबी हटाने का नारा दिया तो क्या गरीबी हट गई? पहले तो तुम लोग सरकार की बातों का गलत अर्थ लगाते हो। फिर उस अर्थ लो पकड़ के सरकार का अनर्थ करने चले आते हो।

भाई जब सरकार ने बोला था कि गरीबी हटेगी, तो ये कब बोला कि किसकी गरीबी हटेगी? जब सरकार ने बोला कि अच्छे दिन आएंगे, तो कब बोला कि जनता के अच्छे दिन आएंगे? जिसके अच्छे दिन आने थे, पाँच साल में पाँच हजार करोड़ एलेक्टोरल बांड से आ गए। तुम नाहक बीच में अपने को समझ लेते हो। वैसे ही जिसकी गरीबी मिटनी थी, मिट गई, तुम खामखा अपने लिए सोचकर खुश हो जाते हो तो बेचारी सरकार का इसमे क्या दोष ?

अब सरकार आपके लिए भी इतनी सारी गारंटियाँ लेकर घूम रही है। भूख से ना मरने की गारंटी। हेल्थ इन्स्युरेंस की गारंटी (अस्पताल और दवाइयाँ मत समझना)। शौचालय कि गारंटी (रोजगार मत समझना)। पक्के घर की गारंटी (2024 में मत समझना)। तुम्हारी आय 2022 तक दुगना करने कि गारंटी (कौन सा 2022 ये मत पूंछना। अरे कुछ तुम भी तो समझो)। लेकिन तुम हो कि मैया मै तो चन्द्र खिलौना लईहों, की तरह एमएसपी की गारंटी मांग रहे हो। अरे ज़ालिमों, सरकार 400 सीट लाने की गारंटी भी तो दे रही है। उसी से काम चला लो....

अब तुम्हें क्या पता कि एमएसपी गारंटी देने पर सरकार का कितने हजार करोड़ खर्च हो जाएगा। क्या कहा? बिजनेसमैनो के लाखों करोड़ माफ कर दिये? अरे ज़ालिमों, बेचारे गरीब गुरबे व्यापारियों से अपनी तुलना करते हो? वो तो बेचारे गरीब सुदामा की तरह हैं। चुनावमें दो सौ करोड़ का चन्दा.....सॉरी, दो मुट्ठी चावल लेकर कलियुगी कृष्ण से मिलने को आतुर रहते हैं। सुदामा ने तो सबके बीच में चावल दिया था, लेकिन आज के धन्नासेठी सुदामाओं ने कभी किसी को पता ही नहीं चलने  दिया। तुमने कितने करोड़ का चंदा.....सॉरी, कितने मुट्ठी चावल दिया इलेक्शन में? उल्टा पाँच किलो हर महीने सरकार से ही लेते रहते हो। और वो बेचारे अपना पेट काट काट कर, घाटे में होकर भी करोड़ों के चुनावी चंदे....सॉरी, चावल देते हैं, और अब सरकार उनके लिए इतना भी नहीं कर सकती? देशद्रोही कहीं के...  

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
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