फिर से.........
इलेक्शन आ रहे हैं।
जिन अछूतों को कभी,
मानव नहीं समझा गया।
कुम्भ में उन भंगियों के,
पाँव धोये जा रहे हैं।
फिर से.........
जो दलित-शोषित रहे हैं,
जाति से भी, धर्म से भी,
वोट की खातिर वो अब,
हिन्दू बनाये जा रहे हैं।
फिर से........
भूंख, बेगारी कोई मुद्दा
नहीं सरकार का।
रैलियों में, चीन-पाक,
फिर डराए जा रहे हैं।
फिर से.........
सिर जवानों के कटे तो,
बस कड़ी निन्दा करें।
वोट की खातिर सहादत,
को भुनाये जा रहे हैं।
फिर से......
रैलियों में रो दिये,
पैर भी अब धो दिये,
पाँच सालों से तो बस,
रोये-धोये जा रहे हैं।
फिर से इलेक्शन आ रहे है।
फिर से इलेक्शन आ रहे है।