कलियुगी बाबा लोग प्रवचन ठेलते हैं कि मन बावरा है। सारे सांसारिक गलत कामों के लिए मन ही उकसाता है। बुजुर्ग लोग हर चीज में नकारात्मक सलाह देते हैं। ये मत करो। वो मत करो। यहाँ मत जाओ। वहाँ मत जाओ। मनमानी मत करो। इस महान भारतभूमि पर एसे बहुत से खलिहर महानुभाव वास करते हैं, जो आपको ‘मन’ और ‘मत’ पर घंटो प्रवचन दे सकते हैं। कई तो घंटों सिर्फ मन की बातें कर लेते हैं। चुनावों के मौसम में, चुनाव आयोग और प्रबुद्ध नागरिक लोग दिन भर में हजारों बार टीवी, अख़बार, रेडियो, पर्चो और आते-जाते सड़कों पर मत दो, मत दो, मतदान करो आदि उवाचते रहते हैं।
देश का हर बच्चा माइनर से मेजर (वयस्क) होते-होते, मन और मत के चक्कर में एसा पड़ता है कि पूरी जिन्दगी इससे निकल नहीं पाता। किशोरावस्था से जवानी तक ‘मन’ के कंट्रोल में ज्यादा रहता है तो उसके बाद ‘मत’ के कंट्रोल में। मन का कंट्रोलर एक बार मिल गया तो पूरी जिन्दगी झेलना पड़ता है। जबकि मत के कंट्रोलर को हम पाँच साल में बदल सकते है। इसीलिए सयाने लोग हमेशा मत दो, मत दो या मतदान करो, मतदान करो टेरते रहते हैं। लोग इसका गलत मतलब निकाल कर मत देने, वोट देने चले जाते हैं। जबकि सयाने लोग वोट देने से मना कर रहे होते हैं।
चतुर लोग मत देने की अपील को वोट ना देने की अपील समझ लेते हैं, तो इसके कुछ कारण भी होते हैं। मुख्य कारण होता है मीडिया के तरह तरह के सर्वे और उनके नतीजे। मार्केट में तरह तरह के सर्वे लोगों के मन को कंट्रोल करने के लिए घूमते रहते हैं। जिस पार्टी से प्रायोजित सर्वे, वही पार्टी जीतती है और उसकी विरोधी पार्टी हारती है। अब अगर आप की पसंदीदा पार्टी सर्वे में हार रही है, तो फिर आपका वोट बेकार जाएगा। अगर आपकी पार्टी सर्वे में जीत रही है तो फिर आपके वोट की जरूरत ही क्या है? क्योंकि इस क्षणभंगुर संसार में अगर कुछ साश्वत है तो वो है पार्टियों के सर्वे। इसलिए लोगों को समझाया जाता है कि तुम तो मत दो। सर्वे तो जिता या हरा ही रहा है।
दूसरा कारण जिसके लिए गुरुघंटाल लोग कहते हैं कि मत दो, यानि वोट न करो, वो है ईवीएम मशीन। क्योंकि ईवीएम मशीने अपने मन के हिसाब से काम करती हैं। हमेशा विपक्ष में रहने वाला यही कहता है कि जब भी ईवीएम का मूड खराब होता है तो वह एक विशेष पार्टी को मत देने लगती हैं। विपक्ष में रहते हुये बीजेपी वाले बाबा सुब्रमण्यम स्वामी ने एक पोथी लिखी थी, ‘एलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन : अन- कान्स्टीट्यूशनल एंड टेम्परेबल’ यानि की ईवीएम असंवैधानिक और छेड़छाड़ लायक है। विपक्ष में ही रहते हुये दूसरे बीजेपी वाले श्री जीवीएल नरसिंहा राव जी ने ‘डेमोक्रैसी एट रिस्क: कैन वी ट्रस्ट आवर एलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन्स?’ लिखकर बेचारी ईवीएम मशीनों की खूब इज्जत उछाली थी। ईवीएम को असंवैधानिक और लोकतंत्र के लिए ख़तरा तक बता दिया था।
लेकिन सत्ता में आते ही एसा हृदय परिवर्तन हुआ कि अब खुद तो छोड़िए, क्या मजाल कि कोई विपक्षी भी किसी ईवीएम की ओर आँख उठाकर देख ले। खुद विपक्ष में रहते हुये जितनी कमियां गिनाई, अब का विपक्ष अगर उसी को याद करा दे तो उसे देशद्रोही घोषित करके पाकिस्तान बिना वीजा के ही भेज दें। अब एसे हालत में अगर लोकतांत्रिक नागरिक के भ्रम में तुम अपना मत ईवीएम को दे भी आते हो, तो ये ईवीएम का मन है कि वो आपका मत किसको देगा।
तीसरा कारण जिसके लिए ज्ञानी लोग कहते हैं कि मत दो, या वोट मत दो, वो है हमारे नेता। मान लो आपने मत दे भी दिया अपने पसंदीदा नेता को, पार्टी को, विचारधारा वाले कंडीडेट को। ईवीएम ने भी उसी को मत दे कर जिता भी दिया। लेकिन जीतने के बाद वह कंडीडेट, अपना मन या हृदय परिवर्तन कर उस विचारधारा वाली पार्टी में मिल जाए जिसके खिलाफ आपने वोट किया था तो क्या कर लोगे पाँच साल तक?
लेकिन फिर भी मेरे जैसे गधों को यही समझ में आता है कि अपने मन के हिसाब से वोट जरूर करना चाहिए। हमारे हाथ में यही है, जिससे हम देश में लोकतंत्र को मजबूत कर सकते हैं। अपने हिसाब से देश के लिए अच्छे लोक सेवक चुन सकते हैं। इसलिए सबसे मेरी यही अपील है कि मेरे देशवासियों, इस चुनाव में अपने मन के मत पे, मत जरूर करिये।