भक्त : ऋषिवर ये अचानक चाइना चाइना से चना चना कैसे होने लगा? गेंहू-चावल के साथ चना बांटने की सूचना देने के लिए प्रभू को टीवी पर क्यों अवतरित होना पड़ा? ये प्रभु ने जनता को चने बांटने का वादा क्यों किया है ऋषिवर? इस चने का क्या महात्म्य है?
ऋषिवर : चना नहीं वत्स ये प्रभु का चैन है, जो चाइना का काल बनेगा। चने से चाइना को वो टक्कर देंगे कि वो चक्कर खा जाएगा। वत्स मैं तुम्हें इस चने का महात्म्य बताता हूँ।
चना एक एसा खाद्य है जिसे सब खाते हैं, चाहे अमीर हो या गरीब। या यूं कह सकते हैं कि हर वोटर, चना खाता है। गरीब हो तो चना फाँकता है, अमीर हो तो उगाकर स्प्राउट बनाकर शौक फरमाता है। चने को भिगो कर भी खा सकते हैं, भून कर भी। छोले बनाकर भी खा सकते हैं, तो सत्तू बनाकर भी खा सकते हैं। चने से छप्पन इंची सीना….. सारी, छप्पन भोग तैयार किया जा सकता है। आपको चने के खेत में .... सारी चने के झाड पर नहीं चढ़ा रहा हूँ, बल्कि चने की महानता का गूढ ज्ञान दे रहा हूँ।
चने का महत्व इस भौतिक संसार में इतना व्यापक है कि साहित्य से लेकर टेक्नालोजी तक, सब चनामय है। ‘लोहे के चने चबाना’, ‘चने के झाड पर चढ़ाना’, ‘थोथा चना, बाजे घना’ और ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’ जैसे मुहावरे इसके साहित्यिक महत्व को बताते हैं। अब इस ‘चना’ के आगे ‘र’ लगा दो तो ‘रचना’ बन जाएगी और अगर इसके आगे सू-सू किया तो ‘सूचना’ बन जाएगी। इसके आगे अपने सहूलियत और जरूरत के हिसाब से अक्षर लगाते रहिए और ‘कूंचना, खींचना, जाँचना, मीचना, सींचना, खोंचना, नोचना, बचना, पचना... आदि क्रियाएँ सम्पन्न करते रहिए। इसलिए हर कर्मवीर के लिए ‘चना’ बहुत जरूरी है। इसके आगे ‘ना, ना’ करेंगे तो यह खुश होकर ‘नाचना’ शुरू कर देता है। ,
मित्रों s s ….. सारी भक्तों.... चना खाने से शक्ति मिलती है, यानि कि पावर आता है। चने को घोडा खाता है, तब अश्व-शक्ति यानि हार्स-पावर बनता है। हार्स-पावर से हार्स-ट्रेडिंग करके असली पावर यानी सत्ता मिलती है। इसीलिए प्रभू ने कहा है कि, ‘चना जोर गरम बाबू, मैं लाया मजेदार। चना ज़ोर गरम... मेरा चना बना है आला। इसको खाकर हो मतवाला। वोटर को कुछ और ना सूझे। नेता, चना की शक्ती बूझे... चना ज़ोर गरम...’ । अब कोई वोटर चने के धोखे में, मिर्ची फाँक जाये तो इसमें, ईवीएम बेचारी का क्या दोष?
चने से दुश्मनों के दाँत खट्टे किए जा सकते हैं, उनको नाकों चने चबवाकर। नाक से चने चबाकर ‘चीनी’ की भी ‘मिर्ची’ बन जाये। हमारे करुणावतर इतने दूर-दर्शी हैं कि पूरे देश में चने बाँट देंगे और दुश्मन जिधर से भी आए, हमारी जनता उसकी नाक में चने घुसेडकर नाकों चने चबवा देगी। इसके अलावा जनता खुद भी चना खाकर इतनी हार्स-पावर वाली बन जाएगी कि घोड़े की तरह काम करेगी और दारू- पेट्रोल- डीजल पर निष्काम भाव से दिल खोलकर टैक्स देगी और पुण्य कमाएगी। तुम ही सोचो वत्स, चने कि इतनी महत्ता है तो क्या इसे बाँटने से पुण्य नहीं मिलेगा? इसीलिए हमारे तत्वदर्शी और करुणावान नेता बंगाल में अगले साल तक और बिहार में छठ तक चना बांटेंगे, जिससे कि अपने अपने विरोधियों को छठी का दूध याद दिला सकें।
इस चने का महात्म्य, ब्रह्मर्षि योग गुरु लाले, अरे वही ‘कोरा’-‘निल’ वाले, सुबह सुबह दूर से दर्शन देने के लिए दूरदर्शन पर अवतरित होकर इस तरह उवाचते हैं कि सुबह खाली पेट भीगे हुये चने खाने से इम्यूनिटी पावर बढ़ता है। पेट की समस्याओं से निजात मिलती है। डायबिटीज़ कंट्रोल होता है। एनर्जी बढ़ती है। मोटापा घटाने में मददगार होता है यानी कि लोगों की चर्बी कम होती है।
वत्स, हम अपनी पुण्य भूमि को इसी ‘चना’ की ‘अर्चना’ से ही हम जगत गुरु बनायेंगे। ये मत सोचना कि ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’, ये अलग बात है कि ‘थोथा चना, बाजे घना’।
भक्त : अहो ऋषिवर, आप तो धन्य हैं, मैं तो निराश हुआ जा रहा था... इस निर्णय के पीछे छुपा हुआ महात्म्य मैं देख नहीं पा रहा था, अब मैं समझा... ऋषिवर... आपकी जय हो !