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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं।

एक दूसरे को हिंदू,  मुस्लिम  जला  रहे  हैं।
हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं।

है कौन बड़ा दोषी, और  कौन  मसीहा  है?
जब मिलके साथ दोनों, बस मुस्कुरा रहे हैं।
हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं।

जिस मीडिया-पुलिस को, विश्वास जगाना था,
वो नफ़रतों की आग में, बस घी गिरा रहे हैं।
हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं।

नेतृत्व    छोड़   नेता,  नेपथ्य   में    गए   सब,
और चमचे, सबको धर्म की रक्षा सिखा रहे हैं।
हम आदमी ही आदमी का, मांस  खा रहे  हैं।

अब दे कहाँ पे जनता, इंसाफ की दुहाई ?
इंसाफ देने वाले भी  तारीख बता रहे  हैं।
हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं

“जानी” समझना अब तो, जनता को पड़ेगा,
बच्चों  के  लिए  कैसा,  भारत  बना  रहे  हैं?
हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं।

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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