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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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न्याय ही न्याय ! (व्यंग्य)

पिछले दशकों में जब से बाजार ने फला ही फला वाला विज्ञापन शुरू किया है, सब तरफ फला ही फला छाया हुआ है. बाजार में किधर से भी गुजर जाइये, रजाई ही रजाई, गद्दे ही गद्दे, तकिया ही तकिया, चद्दर ही चद्दर आदि फलाने ही फलाने के पोस्टर छाये रहते हैं. आजकल तो वैवाहिक साइटों पर, दूल्हे ही दूल्हे के विज्ञापन भी खूब जोरों से धूम मचा रहे हैं. 

दरअसल इन फलाने ही फलाने से मतलब यह होता है कि अमुक चीज की बहुत वेरायटी है, आप अपनी औकात और जरूरत के हिसाब से खरीद लीजिये. जैसे गद्दे ही गद्दे के विज्ञापन से दुकानदार का यह मतलब है कि हर तरह के छोटे-बड़े, महंगे सस्ते गद्दे बिकने के लिए उपलब्ध हैं, ग्राहक अपनी जेब के वजन और जरूरत के हिसाब से अपनी पसंद का गद्दा खरीद सकता है. यही बात दूल्हे ही दूल्हे के विज्ञापन पर भी लागू होती है.

वैसे हर फलां ही फलां का खुला विज्ञापन किया जाए ये जरूरी नहीं होता है. बल्कि कुछ फलां ही फलां ऐसे भी होते हैं, जो आपको मिलते ही हैं, आपकी इच्छा हो या ना हो. जैसे, सड़कों पर गड्ढे ही गड्ढे. हर साइज, हर गहराई के. जिन्हें आप अपनी इच्छा या औकात के अनुसार नहीं चुन सकते. इस तरह की और बहुत सी चीजें आपको अनचाहे मिलती हैं, जिसे ना तो आप चाहते हो, ना आप बच सकते हो. जैसे महंगाई ही महंगाई. भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार. टैक्स ही टैक्स. जुमले ही जुमले. कानून ही कानून. 

तो आजकल सरकार जनता की भलाई के लिए कानून ही कानून बनाये जा रही हैं. और मुई जनता है कि विरोध ही विरोध किये जा रही है. किसानों की जबरन भलाई के लिए सरकार ने कानून क्या बनाया, दिल्ली की सीमाओं पर पिछले दो महीनों से किसान ही किसान, ट्रैक्टर ही ट्रैक्टर नजर आ रहे हैं. जिनको हटाने के लिए सरकार ने बहुत से कैम्पेन ही कैम्पेन चलाये. किसानों को कभी आतंकवादी, कभी खालिस्तानी कहा. उन पर जुल्म ही जुल्म किये. कभी ठण्ड में पानी की बौछारें किया, कभी आंसू गैस के गोले छोडे. लेकिन किसानों ने भी धैर्य ही धैर्य, हिम्मत ही हिम्मत दिखाई. 

अंत में सरकार, कोर्ट की शरण में पहुंची, जहां पर न्याय ही न्याय मिलता है. हर तबके को उसकी औकात के हिसाब से. दलितों के आरक्षण के बारे में तुरंत रोक, और सवर्णों के आरक्षण की चुनौती तुरंत खारिज. अर्णव गोस्वामी को तुरन्त जमानत, गौतम नौलखा, आनंद तेलतुंबड़े को जेल. मस्जिद तोड़ने वालों को ही मस्जिद की जमीन सौंप दी जाती है. सीएए, एनआरसी की वैधानिकता को चुनौती हो तो सड़क खाली करने का फैसला आता है. जम्मू कश्मीर में लोग दो साल से घरों में कैद हैं तो उसकी सुनवाई का समय ही नहीं मिलता. आजकल सरकारी भ्रष्टाचार की जांच किये बगैर ही सब चंगा सी हो जाता है. हर तरफ बस न्याय ही न्याय हो रहा है. 

इसी न्याय के चक्कर में सरकार किसानों को दिल्ली की सीमाओं से हटाने के लिए कोर्ट पहुंच गई, और कोर्ट ने किसान कानूनों की वैधानिकता जांचने की बजाय न्याय ही न्याय कर दिया. विवाद को समझने के लिए चार ऐसे लोगों की समिति बनाई, जो पहले से ही इन कानूनों पर सहमति ही सहमति और समर्थन ही समर्थन कर रहे हैं. तो इधर किसानों का विरोध ही विरोध हो रहा है, और उधर न्याय ही न्याय देने की तैयारी चल रही है.

 

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Comment

आपकी राय

Dignified india ,youtube par aapka song _shiksha hame saman chahiye,dhoom machaya raha hai

Dignified India , youtube par aapkaa song _ dhoom macha rahaa hai.

बहुत ही सुंदर और सटीक व्यंग है

Very nice Explained by you the real Scenario of our Nation in such beautiful peom by Sh.Manoj Jani Sir. Hat's off to you.

एकदम सटीक और relevant व्यंग, बढ़िया है भाई बढ़िया है,
आपकी लेखनी को salute भाई

Kya baat hai manoj ji aap ke vyang bahut he satik rehata hai bas aise he likhate rahiye

हम अपने देश की हालात क्या कहें साहब

आँखो में नींद और रजाई का साथ है फ़िर भी,
पढ़ने लगा तो पढ़ता बहुत देर तक रहा.

आप का लेख बहुत अच्छा है

Zakhm Abhi taaja hai.......

अति सुंदर।

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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