अब तो जाग ससुर के नाती...
निकला सूरज, रात है भागी।
अब तो जाग, ससुर के नाती।
पांच किलो गेहूं चावल की,
तुम मरते हो लाइन में।
व्यापारी-नेता पीते हैं,
खून तुम्हारा, वाइन में।
ले उधार, मेहमान पिए घी,
कर्जदार सब भए घराती।
अब तो जाग ससुर के नाती।
महंगी शिक्षा, स्वास्थ्य भूल के,
खूब बजाया घंटा है।
अनपढ़ होंगी पीढ़ियां आगे,
और रोजगार का टंटा है।
तुम चुनाव में देखते केवल,
हिंदू मुस्लिम धरम औ जाती।
अब तो जाग ससुर के नाती।
भूल गए करना सवाल तुम,
तर्क और विज्ञान छोड़ के।
बाबाओं की गोंद में बैठे,
लूटें जो दिनभर गपोड़ के।
झूंठे गर्व के चक्कर में तुम,
बने भविष्य के आतमघाती।
अब तो जाग, ससुर के नाती।
डिग्रियां ले लो, सूट पहन लो,
या लिबरल का करो दिखावा।
ऊंच नीच बैठाकर दिल में,
समरसता से करो छलावा।
सभ्य नहीं हो सकता कोई,
जब तक पकड़े है जाती।
अब तो जाग, ससुर के नाती।
हंगर, शांति या लोकतंत्र हो,
हर इंडेक्स की वही कहानी।
प्रेस फ्रीडम हो, खाद्य सुरक्षा,
खुशहाली में पिछड़े 'जानी’
हर मानक सूचकांक में नीचे,
मगर शर्म ना तुमको आती।
अब तो जाग ससुर के नाती...