आँखों में नहीं, दिल में, उतर जाएँ कभी तो
दरवाजे खुले हैं, वो इधर आयें, कभी तो ।।
मुमकिन नहीं है, मंजिले पाना तो क्या हुआ?
हम-राही में ही, वक्त गुजर जाये, कभी तो।।
महंगाई - भ्रष्टाचार में, जो लोग पिस रहे,
उनकी भी जिन्दगी में, सहर आये कभी तो।।
माहौल अपने मुल्क का, अब वो बनाइये,
कि हर गुनाहगार भी, डर जाये कभी तो।।
ये सोच के, हर बार उन्हें, वोट किया है,
ये शख्स-सियासी भी, सुधर जाएँ कभी तो।।
ईमान बदलकर, जो दिए दूसरों को दर्द,
एकबार वो भी चाक-जिगर, पायें कभी तो।
जीने की ख्वाहिशें भी, होती जरुर हैं,
मिलते ही उनसे आँख जो, मर जाएँ कभी तो।
दिल की बुझेगी प्यास, औ छाएगी घटा भी,
जुल्फों को अपनी खोलके, लहराएँ कभी तो।
एक बार ही निगाह, वो हमपर भी डाल दें,
किस्मत भी अपनी ‘जानी’, संवर जाये कभी तो।