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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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Blog posts : "गजल "

गुनहगार भी तुम्हीं..

मुंसिफ भी हो तुम्ही, और गुनहगार भी तुम्हीं।

तुम ही हो कार्पोरेट, और सरकार भी तुम्हीं।

 

जनता को कौन राह, दिखाएगा आजकल,…

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बहुत देर तक रहा.....

ये दिल तो बेकरार, बहुत देर तक रहा।
उनका भी इंतजार, बहुत देर तक रहा।

हम बेखुदी में ही रहे, जब वो चले गए,
ख़ुद पर न अख़्तियार, बहुत देर तक रहा।…

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हिसाब क्या देंगे ?

हम अपने प्यार का, उनको हिसाब क्या देंगे ?
सवाल ही जो गलत है,  जवाब  क्या  देंगे ?

पिलाते हैं जो खुशी, नाप के पैमानों   से,…

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सारे मसले, बारी बारी लिया करो......

सारे मसले, बारी बारी लिया करो।
बस चुनावकी ही, तैयारी किया करो।

देशभक्ति कब तक बस, चमचागीरी से,
नेताओं से कुछ, गद्दारी किया करो।…

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जनता की आह यूँ ही, बेकार नहीं होती ....

जनता की आह यूँ ही, बेकार नहीं होती ।
केवल फतह, फरेब से, हर बार नहीं होती।

खुद पे हो भरोसा और, जज्बा बुलंद हो,
उसको किसी मदद की, दरकार न…

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लोग मरते रहे ....

लोग मरते रहे, छटपटाते रहे।
अपने-अपने मसीहा, बुलाते रहे।

वक्त ही ना मिला, उन मसीहाओं को,
और दरिंदे तो, लाशें बिछाते रहे।…

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हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं....

एक दूसरे  को  हिंदू , मुस्लिम  जला रहे हैं।
हम आदमी ही आदमी का, मांस खा रहे हैं।

है कौन बड़ा दोषी, और  कौन  मसीहा  है?
जब मिलक…

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चन्द चेहरे जो, तमतमाए हैं...

चन्द चेहरे जो, तमतमाए हैं।
आइने शाह को, दिखाये हैं।        (1)

साजिशें देखना, हवाओं की,
आंधियों में, दिये जलाए हैं।          (2)…

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हर कीमत पर जो बिकने को...

हर कीमत पर जो बिकने को, बैठे हैं बाजारों में।
भ्रस्टाचार वो ढूंढ रहे हैं, औरों के किरदारों में। 

जिनको  हम समझे थ…

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हम उनका कहना तो, हर बार मान लेते हैं.

हम उनका कहना तो, हर बार मान लेते हैं.
जो झूठे वादों से, हम सबकी जान लेते हैं.

कहा था जनता के, खाते में पैसे आयेंगे,
वो नोट बन्द…

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…मुद्दों पे बातें, मना है।

आजकल के मुद्दों पे, बातें मना है 
क्योंकि ये सरकार की, आलोचना है। 

मर गये सैनिक, तो जी डी पी घटेगी?, 
कृषकों के मरने से…

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वादों का कभी, हिसाब नहीं मिलता

उनके वादों का कभी, हिसाब नहीं मिलता।
सवाल तो बहुत हैं, पर जबाब नहीं मिलता।

जो भी विपक्ष में हैं, बस वो ही भ्रष्टाचारी,…

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यूँ तो मयखाने से हम दूर बहुत रहते हैं

यूँ तो मयखाने से, हम दूर बहुत रहते हैं।
तेरे नशे में मगर, चूर बहुत रहते हैं।

हम तो फौलाद को भी, मोम बना सकते हैं,
इश्क की राह म…

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फिरता है...

वो मेरे कत्ल का, सामान लिए फिरता है।
सिर्फ हिंदू, या मुसलमान किए फिरता है।

जवानियों में, वो ढूँढे हसीन कातिल को ।
अपने …

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उनकी नजरों का.......

उनकी नजरों का जब से, इशारा हुआ।
दिल मुहब्बत का तब से, है मारा हुआ।

बस यही एक दौलत, कमाई थी जो,
अब ये दिल बेवफा भी, तुम्हारा हुआ।…

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इस आशिकी में....

इस आशिकी में हाल जो, दिल का हुआ, हुआ।
मत पूँछिये मुझसे कि, मुहब्बत में क्या हुआ।

ताउम्र चलेगी ये, गमे इश्क की दौलत;
खायें…

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किसानों पे सियासत

लाचार सी , मायूस, नजर देख रही है।
मिलती जिधर मदद है,उधर देख रही है।

एक दूसरे पे थोप के, इल्जाम पे इल्जाम;
हर मुद्दे से

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वो है ईमानदार, जो, पकड़ा ना गया हो.......

किस काम जवानी है, जो ज़ुल्फों में ना उलझे,
और हुस्न के फंदे में जो, जकड़ा ना गया हो।

पानी से भी कमतर है, वो खून जिस्म का
से…

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आँखों में नहीं......

आँखों में नहीं, दिल में, उतर जाएँ कभी तो
दरवाजे खुले हैं, वो इधर आयें, कभी तो ।।

मुमकिन नहीं है, मंजिले पाना तो क्या हुआ?…

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सियासत की फसल

लाशों पे, सियासत की फसल, बो रहा है वो ।
जलते शहर में भी, सकूँ से, सो रहा है वो ॥

किलकारियाँ भरते थे जो, आबाद गली में ,
बस्ती मे…

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20 blog posts

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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अन्यत्र

आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...