Menu

मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

header photo

... फिर भी हम चुप रहते हैं

लावा दिल में फूट रहा है,

बांध सब्र का टूट रहा है

देश को नेता लूट रहा है

साथ सत्य का छूट रहा है

पर आँख बंद किए रहते है।

... फिर भी हम चुप रहते हैं

 

गर्मी, लू,  बरसात से मरते

रेल और आतंकवाद से मरते

कर्ज, गरीबी, भूंख से  मरते

अन्न  गोदामों मे ही सड़ते

अफसर लूट के जेब को भरते

भूंख, गरीबी सहते हैं

.... फिर भी हम चुप रहते हैं।

 

घोटालो पर घोटाले हो,

जाँच से ही, पर्दा डाले हों

सत्ता मद में मतवाले हों

घोड़े घास के रखवाले हो,

सबकुछ सभी समझते हैं

..... फिर भी हम चुप रहते हैं

 

 जाति पांति में फंसे हुये

धर्म के नाम पर चूसे हुये

राजनीति से लूटे हुये

महंगाई में पिसे हुये,

सबकुछ तो हम सहते हैं।

...... फिर भी हम चुप रहते हैं...

 

नारी, सुरक्षित आज नहीं है

भयमुक्त, देश–समाज नहीं है

नेताओं में लाज नहीं है

जनता का अभी राज नहीं है

 भ्रष्ट ब्यवस्था के विरोध पर,

लाठी- डंडे सहते हैं

...... फिर भी हम चुप रहते हैं...

Go Back



Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

450;460;1b829655f614f3477e3f1b31d4a0a0aeda9b60a7450;460;d0002352e5af17f6e01cfc5b63b0b085d8a9e723450;460;cb4ea59cca920f73886f27e5f6175cf9099a8659450;460;7329d62233309fc3aa69876055d016685139605c450;460;6b3b0d2a9b5fdc3dc08dcf3057128cb798e69dd9450;460;f702a57987d2703f36c19337ab5d4f85ef669a6c450;460;7bdba1a6e54914e7e1367fd58ca4511352dab279450;460;69ba214dba0ee05d3bb3456eb511fab4d459f801450;460;946fecccc8f6992688f7ecf7f97ebcd21f308afc450;460;eca37ff7fb507eafa52fb286f59e7d6d6571f0d3450;460;9cbd98aa6de746078e88d5e1f5710e9869c4f0bc450;460;60c0dbc42c3bec9a638f951c8b795ffc0751cdee450;460;fe332a72b1b6977a1e793512705a1d337811f0c7450;460;f8dbb37cec00a202ae0f7f571f35ee212e845e39450;460;dc09453adaf94a231d63b53fb595663f60a40ea6450;460;0d7f35b92071fc21458352ab08d55de5746531f9450;460;427a1b1844a446301fe570378039629456569db9

आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

400;300;2d1ad46358ec851ac5c13263d45334f2c76923c0400;300;76eff75110dd63ce2d071018413764ac842f3c93400;300;08d655d00a587a537d54bb0a9e2098d214f26bec400;300;a5615f32ff9790f710137288b2ecfa58bb81b24d400;300;b6bcafa52974df5162d990b0e6640717e0790a1e400;300;b158a94d9e8f801bff569c4a7a1d3b3780508c31400;300;02765181d08ca099f0a189308d9dd3245847f57b400;300;aa17d6c24a648a9e67eb529ec2d6ab271861495b400;300;7b8b984761538dd807ae811b0c61e7c43c22a972400;300;0fcac718c6f87a4300f9be0d65200aa3014f0598400;300;3c1b21d93f57e01da4b4020cf0c75b0814dcbc6d400;300;133bb24e79b4b81eeb95f92bf6503e9b68480b88400;300;f4a4682e1e6fd79a0a4bdc32e1d04159aee78dc9400;300;ba0700cddc4b8a14d184453c7732b73120a342c5400;300;321ade6d671a1748ed90a839b2c62a0d5ad08de6400;300;611444ac8359695252891aff0a15880f30674cdc400;300;dde2b52176792910e721f57b8e591681b8dd101a400;300;40d26eaafe9937571f047278318f3d3abc98cce2400;300;f7d05233306fc9ec810110bfd384a56e64403d8f400;300;e1f4d813d5b5b2b122c6c08783ca4b8b4a49a1e4400;300;bbefc5f3241c3f4c0d7a468c054be9bcc459e09d400;300;6b9380849fddc342a3b6be1fc75c7ea87e70ea9f400;300;24c4d8558cd94d03734545f87d500c512f329073400;300;f5c091ea51a300c0594499562b18105e6b737f54400;300;e167fe8aece699e7f9bb586dc0d0cd5a2ab84bd9400;300;0db3fec3b149a152235839f92ef26bcfdbb196b5400;300;9180d9868e8d7a988e597dcbea11eec0abb2732c400;300;497979c34e6e587ab99385ca9cf6cc311a53cc6e400;300;648f666101a94dd4057f6b9c2cc541ed97332522400;300;7a24b22749de7da3bb9e595a1e17db4b356a99cc400;300;dc90fda853774a1078bdf9b9cc5acb3002b00b19400;300;52a31b38c18fc9c4867f72e99680cda0d3c90ba1

हमसे संपर्क करें

visitor

900737

चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

400;300;6600ea27875c26a4e5a17b3943eefb92cabfdfc2400;300;acc334b58ce5ddbe27892e1ea5a56e2e1cf3fd7b400;300;639c67cfe256021f3b8ed1f1ce292980cd5c4dfb400;300;1c995df2006941885bfadf3498bb6672e5c16bbf400;300;f79fd0037dbf643e9418eb6109922fe322768647400;300;d94f122e139211ea9777f323929d9154ad48c8b1400;300;4020022abb2db86100d4eeadf90049249a81a2c0400;300;f9da0526e6526f55f6322b887a05734d74b18e66400;300;9af69a9bc5663ccf5665c289fc1f52ae6c1881f7400;300;e951b2db2cbcafdda64998d2d48d677073c32c28400;300;903118351f39b8f9b420f4e9efdba1cf211f99cf400;300;5c086d13c923ec8206b0950f70ab117fd631768d400;300;71dca355906561389c796eae4e8dd109c6c5df29400;300;b0db18a4f224095594a4d66be34aeaadfca9afb3400;300;dfec8cfba79fdc98dc30515e00493e623ab5ae6e400;300;31f9ea6b78bdf1642617fe95864526994533bbd2400;300;55289cdf9d7779f36c0e87492c4e0747c66f83f0400;300;d2e4b73d6d65367f0b0c76ca40b4bb7d2134c567

अन्यत्र

आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...