Menu

मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

header photo

बहुत देर तक रहा.....

ये दिल तो बेकरार, बहुत देर तक रहा।
उनका भी इंतजार, बहुत देर तक रहा।

हम बेखुदी में ही रहे, जब वो चले गए,
ख़ुद पर न अख़्तियार, बहुत देर तक रहा।

मिलने का करके वादा, आए नहीं मगर,
मिलने को मैं तैयार, बहुत देर तक रहा।

झूठी है उनकी फितरत, मालूम थी मगर,
वादों का मैं शिकार, बहुत देर तक रहा।

मर भी गया तो अपने, मसीहा को देखकर,
वैसे तो वो बीमार, बहुत देर तक रहा।

यूं तो कदम-कदम पर, नादानियाँ हुईं,
कहने को होशियार, बहुत देर तक रहा।

जिसको चुकाने के लिए, ये उम्र कम लगे,
माँ-बाप का उधार, बहुत देर तक रहा।

ये लोग, ये समाज, नजर आए तो मगर,
जुल्फों में गिरफ्तार, बहुत देर तक रहा।

उसका बढा मिला, कभी हिसाब जो हुआ, 
लेकिन वो कर्जदार, बहुत देर तक रहा।

उसकी दगाओं की मुझे, आहट भी ना हुई,
उससे मैं खबरदार, बहुत देर तक रहा।

उसके फरेब झूठ की, आई नहीं खबर,
बगलों में पत्रकार, बहुत देर तक रहा।

उसकी बुराइयों को, भला कैसे मैं कहूँ,
वो मेरा राजदार, बहुत देर तक रहा।

ये रूठना - मनाना, नाराजगी  तो  है,
अपनों से न तकरार, बहुत देर तक रहा।

जब मिल नहीं सके तो, ख़्वाहिश ही छोड़ दी,
जिसका वो तलबगार, बहुत देर तक रहा। 

उसने ही चलाया है, खंजर वो आख़िरी,
जिसका वो मददगार, बहुत देर तक रहा।

उसने जो सियासत में, बोया है रात-दिन,
नफरत का वो खुमार, बहुत देर तक रहा।

धर्मों से नफ़रतों को, दिलों में उतारकर,
'जानी' मैं शर्मसार, बहुत देर तक रहा।

Go Back



Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

450;460;d0002352e5af17f6e01cfc5b63b0b085d8a9e723450;460;eca37ff7fb507eafa52fb286f59e7d6d6571f0d3450;460;6b3b0d2a9b5fdc3dc08dcf3057128cb798e69dd9450;460;69ba214dba0ee05d3bb3456eb511fab4d459f801450;460;1b829655f614f3477e3f1b31d4a0a0aeda9b60a7450;460;fe332a72b1b6977a1e793512705a1d337811f0c7450;460;427a1b1844a446301fe570378039629456569db9450;460;7329d62233309fc3aa69876055d016685139605c450;460;60c0dbc42c3bec9a638f951c8b795ffc0751cdee450;460;9cbd98aa6de746078e88d5e1f5710e9869c4f0bc450;460;cb4ea59cca920f73886f27e5f6175cf9099a8659450;460;7bdba1a6e54914e7e1367fd58ca4511352dab279450;460;f8dbb37cec00a202ae0f7f571f35ee212e845e39450;460;946fecccc8f6992688f7ecf7f97ebcd21f308afc450;460;f702a57987d2703f36c19337ab5d4f85ef669a6c450;460;dc09453adaf94a231d63b53fb595663f60a40ea6450;460;0d7f35b92071fc21458352ab08d55de5746531f9

आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

400;300;76eff75110dd63ce2d071018413764ac842f3c93400;300;2d1ad46358ec851ac5c13263d45334f2c76923c0400;300;f5c091ea51a300c0594499562b18105e6b737f54400;300;7b8b984761538dd807ae811b0c61e7c43c22a972400;300;7a24b22749de7da3bb9e595a1e17db4b356a99cc400;300;0db3fec3b149a152235839f92ef26bcfdbb196b5400;300;aa17d6c24a648a9e67eb529ec2d6ab271861495b400;300;9180d9868e8d7a988e597dcbea11eec0abb2732c400;300;40d26eaafe9937571f047278318f3d3abc98cce2400;300;611444ac8359695252891aff0a15880f30674cdc400;300;648f666101a94dd4057f6b9c2cc541ed97332522400;300;b158a94d9e8f801bff569c4a7a1d3b3780508c31400;300;ba0700cddc4b8a14d184453c7732b73120a342c5400;300;24c4d8558cd94d03734545f87d500c512f329073400;300;e1f4d813d5b5b2b122c6c08783ca4b8b4a49a1e4400;300;f4a4682e1e6fd79a0a4bdc32e1d04159aee78dc9400;300;f7d05233306fc9ec810110bfd384a56e64403d8f400;300;133bb24e79b4b81eeb95f92bf6503e9b68480b88400;300;dde2b52176792910e721f57b8e591681b8dd101a400;300;0fcac718c6f87a4300f9be0d65200aa3014f0598400;300;321ade6d671a1748ed90a839b2c62a0d5ad08de6400;300;497979c34e6e587ab99385ca9cf6cc311a53cc6e400;300;52a31b38c18fc9c4867f72e99680cda0d3c90ba1400;300;08d655d00a587a537d54bb0a9e2098d214f26bec400;300;a5615f32ff9790f710137288b2ecfa58bb81b24d400;300;3c1b21d93f57e01da4b4020cf0c75b0814dcbc6d400;300;b6bcafa52974df5162d990b0e6640717e0790a1e400;300;bbefc5f3241c3f4c0d7a468c054be9bcc459e09d400;300;02765181d08ca099f0a189308d9dd3245847f57b400;300;6b9380849fddc342a3b6be1fc75c7ea87e70ea9f400;300;e167fe8aece699e7f9bb586dc0d0cd5a2ab84bd9400;300;dc90fda853774a1078bdf9b9cc5acb3002b00b19

हमसे संपर्क करें

visitor

897865

चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

400;300;6600ea27875c26a4e5a17b3943eefb92cabfdfc2400;300;acc334b58ce5ddbe27892e1ea5a56e2e1cf3fd7b400;300;639c67cfe256021f3b8ed1f1ce292980cd5c4dfb400;300;1c995df2006941885bfadf3498bb6672e5c16bbf400;300;f79fd0037dbf643e9418eb6109922fe322768647400;300;d94f122e139211ea9777f323929d9154ad48c8b1400;300;4020022abb2db86100d4eeadf90049249a81a2c0400;300;f9da0526e6526f55f6322b887a05734d74b18e66400;300;9af69a9bc5663ccf5665c289fc1f52ae6c1881f7400;300;e951b2db2cbcafdda64998d2d48d677073c32c28400;300;903118351f39b8f9b420f4e9efdba1cf211f99cf400;300;5c086d13c923ec8206b0950f70ab117fd631768d400;300;71dca355906561389c796eae4e8dd109c6c5df29400;300;b0db18a4f224095594a4d66be34aeaadfca9afb3400;300;dfec8cfba79fdc98dc30515e00493e623ab5ae6e400;300;31f9ea6b78bdf1642617fe95864526994533bbd2400;300;55289cdf9d7779f36c0e87492c4e0747c66f83f0400;300;d2e4b73d6d65367f0b0c76ca40b4bb7d2134c567

अन्यत्र

आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...