हम बहरोंको तान, सुनाने बैठ गये।
कौवों को हम गान, सुनाने बैठ गये ।
देश बेंचनें-वाले, सत्ताधीशों को,
संसद का सम्मान, सुनाने बैठ गये।
गांधी छाप पे, मरने-वाले लोगों को,
गांधी का बलिदान, सुनाने बैठ गये।
भ्रष्टाचार घोटालों से, देश लूटते आये जो,
उनको देश महान, सुनाने बैठ गये।
हिंदी की खाने वाले, अंग्रेजी भक्तों को,
हिंदी देश की शान, सुनाने बैठ गये।
अर्थब्यवस्था पर, रोती सरकारों को,
टूजी, कोयले की खान, सुनाने बैठ गये।
मंदिर-मस्जिद की, खाने वाले को ‘जानी’,
एक राम-रहिमान, सुनाने बैठ गये।