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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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जिम्मेदार की तलाश ! (व्यंग्य)

आजकल देश के सामने सबसे बड़ी समस्या आन पड़ी है, जिम्मेदार आदमी ढूँढने की। इस वजह से सबसे ज्यादा परेशानी अगर किसी को हो रही है, तो वे हैं, हमारे खबरिया चैनल। सभी को तलाश है एक जिम्मेदार आदमी की। क्योंकि समस्या है तो मुद्दा है। मुद्दा है तो खबर है। खबर है तो खबरिया चैनल हैं। अब समस्या की वजह से ही तो चैनल जिंदा हैं। इसलिए उस समस्या को पैदा करने वाले, जिम्मेदारी लेने वाले की तलाश में, बेचारे चैनल दिन-रात मारे मारे फिर रहे हैं।

उधर केदारनाथ में बादल फटा। इधर चैनलों में होड़ लग गयी। जिम्मेदार कौन? जिम्मेदार कौन? हर चैनल पर एक से बढ़कर एक स्वयंभू ज्ञानी प्रकट हो चुके हैं। सब एह दूसरे को जिम्मेदार ठहराने में माहिर। हर विशेषज्ञ अपनी ओर से एक एक जिम्मेदार पकड़कर लाये हैं। पहले ने कहा- इस घटना के लिए सरकार जिम्मेदार है। दूसरे ने कहा- इसके लिए विपक्ष भी उतना ही जिम्मेदार है। तीसरे ने कहा- एसी घटनाओं के लिए अंधाधुंध विकास(?) जिम्मेदार है। चौथे ने कहा- इसके लिए भगवान जिम्मेदार है। लोग भगवान को भूल गए थे, भगवान ने अपनी याद दिलाई है सबको। पाँचवे ने कहा- हमारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं इस घटना के लिए। छठे ने कहा- इसके लिए भू माफिया जिम्मेदार है। अब हिस्सेदारी भले ही सब लेते हों, जिम्मेदारी हमेशा दूसरों के कंधों पर ही डालते हैं।

इतना हो-हल्ला मचने पर सरकार को अपनी जिम्मेदारी की याद आई और उसने फटाफट अपनी जिम्मेदारी निभाई। एक जाँच समिति बनाई। जिसे जाँच कर के इस घटना का जिम्मेदार ढूँढना था। आखिर जिम्मेदार सरकार इससे ज्यादा और क्या जिम्मेदारी निभाती? समिति में सभी पक्षों के लोग यानि सभी स्वयंभू ज्ञानी शामिल थे। वैसे भी हिस्सेदारी तो सबकी बराबर होती है, जिम्मेदारी सब नि:स्वार्थ भाव से दूसरों को दे देते हैं। समिति की बैठक शुरू हुई।

पहले ने कहा- इस बादल फटने का सरकार जिम्मेदार है। उसकी गलत नीतियों के कारण बादल फटा है। सरकारी मेंबर ने कहा- इसके लिए विपक्ष जिम्मेदार है। उसके कार्यकाल में गलत नीतियाँ बनी थी। हमने तो उसे लागू किया है। जिसके कारण ये घटना हुई है। पक्ष–विपक्ष दोनों चुप। तीसरे सदस्य ने कहा- इसके लिए विकास योजनायें जिम्मेदार हैं। इसके लिए सभी ने हामी भरी। सरकारी मेंबर ने कहा- जी हाँ, इसके लिए सरकार नहीं, विकास ही जिम्मेदार है। और विकास माँगने के लिए जनता जिम्मेदार है। ना जनता बिजली-पानी-सड़क माँगती, ना हम पहाड़ों को काटते। ना ही नदियों से छेड़छाड़ करते। ना सड़क बनाते (कौन सी सड़क?), ना बांध बनाते। ना ही विकास के लिए बड़ी-बड़ी योजनायें बनाते। इसलिए इस त्रासदी की जिम्मेदार तो जनता ही है। समिति ने सर्व सम्मति से यह निष्कर्ष निकाला- इस हादसे के लिए जिम्मेदार जनता है।

जनता चिल्लाई- हुजूर माई-बाप ! इंग्लैंड-अमेरिका-चीन-जापान में भी तो विकास हुआ है। स्विटजर लैंड तो पहाड़ों में ही शहर बसाकर बनाया गया है, जहाँ सैर करने आप-लोग हरदम जाते हो। वहाँ तो एसे हादसे नहीं होते। विकसित देशों में नदिया भी साफ हैं और समुद्र के किनारे बड़े बड़े शहर भी बसे हैं, वहाँ तो लोग नहीं मरते?  विकास नहीं होगा तो क्या बादल नहीं फटेंगे? बादल तो हर साल फटते हैं, कभी हिमाचल में, कभी कश्मीर में, कभी उत्तराखंड में। उससे बचाने के लिए आपकी आपदा प्रबंधन योजनायें कभी कागजों से बाहर क्यों नहीं आयी? आपदा प्रबंधन के नाम पर विदेशों की सैर करने वाले आपके अफसर कहाँ हैं? वही एसी त्रासदी के लिए जिम्मेदार है।

लेकिन जनता तो सालों से बोलती है, उसकी सुनता कौन है? चैनलों ने माइक इंडिया क्रिकेट टीम की तरफ घुमा दिया। फिर से चिल्लाने लगे। आज की इस हार (या जीत) का जिम्मेदार कौन? टीम मैनेजमेंट या खिलाड़ी? यकीन मानिए, हारने पर तो कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेगा। चैनल चिल्लाते रह जाएँगे। जिम्मेदार ढूँढते रह जायेंगे, लेकिन मिलेगा नहीं। क्योंकि इस देश में जनता-नेता-अफसर कभी  किसी घटना की जिम्मेदारी नहीं लेते। हमेशा अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ते हैं। इनसे तो लाख गुना जिम्मेदार आतंकवादी होते हैं, जो हर दुर्घटना की खुलेआम, चैनलों पर जाकर जिम्मेदारी तो लेते हैं। 

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...