नहीं खाद पानी, न उपजाऊ मिट्टी
पौधे- पे- पौधे, लगा क्यूँ रहे हो?
न आंधी पे काबू, न बरखा पे काबू
सरस को कंटीला, बना क्यूं रहे हो?
अगर पेड़ कम हो, तो बनता है उपवन
अधिक हो अगर तो, वो बन जाए जंगल
उपवन में मिलता, सदा खाद -पानी
मगर जंगलों में, तो होती है दंगल
ये सच है तुम्हारी, करेंगे ए सेवा
बिना खाद–पानी, नहीं देंगे मेवा
सुखी चाहते हो, अगर अपना जीवन
जंगल नहीं बस, लगाना तू उपवन
मिले खाद पानी, तो खिलता है फूल
बिना सेवा के ही, वो बनता है शूल
सुमन को भी कांटे, बना क्यूं रहे हो
पौधे –पे –पौधे, लगा क्यूं रहे हो ?