हम अपने देश के हालात ! क्या कहें साहब !!
दिल में जलते हुये जज़्बात! क्या कहें साहब !!
इतने सालों की, जम्हूरियत का, हासिल क्या?
झूठे वादों की है सौगात ! क्या कहें साहब !!
इतने सालों में, बस मोहरे सी बनी है जनता,
ये सियासत की है बिसात! क्या कहें साहब !!
बच्चियाँ गर्भ में ही मार कर, नौरात्रि मनाएँ,
चढ़ती दहेज से बारात ! क्या कहें साहब !!
सिमट चुकी है शहर तक ही, तरक्की की चमक,
और गांवों की सियह-रात ! क्या कहें साहब !!
भूंख, महँगाई, भ्रष्टाचार, हर तरफ फैले,
ये सुलगते से सवालात! क्या कहें साहब !!
कहीं तो कर्ज तले, दब के किसान मरते हैं,
कहीं पैसों की है बरसात! क्या कहें साहब !!
अब शहीदों के तो, सब घर भी हड़प जाते हैं,
नेता, बाबाओं की औकात! क्या कहें साहब !!
आज भी योग्यता को, जातियों से हम मापें,
सबकी पहचान बनी जात! क्या कहें साहब !!
सुनाऊँ चीख किसे, ‘जानी’ सभी बहरों में,
ना करें देश की हम बात! चुप रहें साहब !!
हम अपने देश के हालात ! क्या कहें साहब !!
दिल में जलते हुये जज़्बात! क्या कहें साहब !