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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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इस आशिकी में....

इस आशिकी में हाल जो, दिल का हुआ, हुआ।
मत पूँछिये मुझसे कि, मुहब्बत में क्या हुआ।

ताउम्र चलेगी ये, गमे इश्क की दौलत;
खायेंगे सारी उम्र, तुम्हारा दिया हुआ।

हमने दुआ सलाम में, यूँ सर झुका दिया;
उसने समझ लिया कि, हमारा खुदा हुआ।

मिलने से पहले उनसे, थी खुशहाल जिन्दगी;
डूबा गमों में जब से वो, मिलकर जुदा हुआ ।

मदहोश थे मिलन में, जुदाई में बदहवास;
जाने वो हमसे कब मिला, और कब जुदा हुआ।

कहें गर वो तो अपनी जान भी, ये सोचकर दे दूँ;
कि 'जानी' आज हक उनका, कुछ तो अदा हुआ।

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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