Menu

मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

header photo

अरमान बहुत है......

नेता बनूँ मैं देश का, अरमान बहुत है।
पर क्या करूँ मैं दिल मेँ, ईमान बहुत है।

संसद हो या तिहाड़, कोई फर्क नहीं ज्यादा
चोरों, लुटेरों का यहाँ, सम्मान बहुत है।

भूंखी, बेगार जनता, रोटी को तरसती
और इनके सारे नेता, धनवान बहुत हैं।

मेहनत बिना कमाए जो, दौलत फरेब से
वो शख्स ही तो देते, अब दान बहुत हैं।

जनता की पीर हर सके, अवतार ना बाबा,
सत्संग से कमाते, भगवान बहुत हैं।

शिक्षित ना कर सकीं हैं, बिकती जो डिग्रियाँ,
शिक्षा की हर गली मेँ, दूकान बहुत हैं।

अन्याय हो या जुर्म, ना उठती कोई आवाज,
कहने को तो शहर मेँ, इन्सान बहुत हैं।

जनता नहीं समझती, ये बात नहीं ‘जानी’
सब जानकर भी जनता, अनजान बहुत हैं।

Go Back



Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

450;460;fe332a72b1b6977a1e793512705a1d337811f0c7450;460;9cbd98aa6de746078e88d5e1f5710e9869c4f0bc450;460;427a1b1844a446301fe570378039629456569db9450;460;dc09453adaf94a231d63b53fb595663f60a40ea6450;460;f8dbb37cec00a202ae0f7f571f35ee212e845e39450;460;f702a57987d2703f36c19337ab5d4f85ef669a6c450;460;946fecccc8f6992688f7ecf7f97ebcd21f308afc450;460;1b829655f614f3477e3f1b31d4a0a0aeda9b60a7450;460;cb4ea59cca920f73886f27e5f6175cf9099a8659450;460;7bdba1a6e54914e7e1367fd58ca4511352dab279450;460;69ba214dba0ee05d3bb3456eb511fab4d459f801450;460;d0002352e5af17f6e01cfc5b63b0b085d8a9e723450;460;7329d62233309fc3aa69876055d016685139605c450;460;eca37ff7fb507eafa52fb286f59e7d6d6571f0d3450;460;6b3b0d2a9b5fdc3dc08dcf3057128cb798e69dd9450;460;60c0dbc42c3bec9a638f951c8b795ffc0751cdee450;460;0d7f35b92071fc21458352ab08d55de5746531f9

आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

400;300;b6bcafa52974df5162d990b0e6640717e0790a1e400;300;611444ac8359695252891aff0a15880f30674cdc400;300;f5c091ea51a300c0594499562b18105e6b737f54400;300;133bb24e79b4b81eeb95f92bf6503e9b68480b88400;300;321ade6d671a1748ed90a839b2c62a0d5ad08de6400;300;0db3fec3b149a152235839f92ef26bcfdbb196b5400;300;a5615f32ff9790f710137288b2ecfa58bb81b24d400;300;f4a4682e1e6fd79a0a4bdc32e1d04159aee78dc9400;300;2d1ad46358ec851ac5c13263d45334f2c76923c0400;300;7b8b984761538dd807ae811b0c61e7c43c22a972400;300;6b9380849fddc342a3b6be1fc75c7ea87e70ea9f400;300;e167fe8aece699e7f9bb586dc0d0cd5a2ab84bd9400;300;9180d9868e8d7a988e597dcbea11eec0abb2732c400;300;f7d05233306fc9ec810110bfd384a56e64403d8f400;300;497979c34e6e587ab99385ca9cf6cc311a53cc6e400;300;24c4d8558cd94d03734545f87d500c512f329073400;300;7a24b22749de7da3bb9e595a1e17db4b356a99cc400;300;02765181d08ca099f0a189308d9dd3245847f57b400;300;dc90fda853774a1078bdf9b9cc5acb3002b00b19400;300;aa17d6c24a648a9e67eb529ec2d6ab271861495b400;300;648f666101a94dd4057f6b9c2cc541ed97332522400;300;08d655d00a587a537d54bb0a9e2098d214f26bec400;300;52a31b38c18fc9c4867f72e99680cda0d3c90ba1400;300;40d26eaafe9937571f047278318f3d3abc98cce2400;300;ba0700cddc4b8a14d184453c7732b73120a342c5400;300;3c1b21d93f57e01da4b4020cf0c75b0814dcbc6d400;300;bbefc5f3241c3f4c0d7a468c054be9bcc459e09d400;300;76eff75110dd63ce2d071018413764ac842f3c93400;300;b158a94d9e8f801bff569c4a7a1d3b3780508c31400;300;e1f4d813d5b5b2b122c6c08783ca4b8b4a49a1e4400;300;dde2b52176792910e721f57b8e591681b8dd101a400;300;0fcac718c6f87a4300f9be0d65200aa3014f0598

हमसे संपर्क करें

visitor

897489

चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

400;300;6600ea27875c26a4e5a17b3943eefb92cabfdfc2400;300;acc334b58ce5ddbe27892e1ea5a56e2e1cf3fd7b400;300;639c67cfe256021f3b8ed1f1ce292980cd5c4dfb400;300;1c995df2006941885bfadf3498bb6672e5c16bbf400;300;f79fd0037dbf643e9418eb6109922fe322768647400;300;d94f122e139211ea9777f323929d9154ad48c8b1400;300;4020022abb2db86100d4eeadf90049249a81a2c0400;300;f9da0526e6526f55f6322b887a05734d74b18e66400;300;9af69a9bc5663ccf5665c289fc1f52ae6c1881f7400;300;e951b2db2cbcafdda64998d2d48d677073c32c28400;300;903118351f39b8f9b420f4e9efdba1cf211f99cf400;300;5c086d13c923ec8206b0950f70ab117fd631768d400;300;71dca355906561389c796eae4e8dd109c6c5df29400;300;b0db18a4f224095594a4d66be34aeaadfca9afb3400;300;dfec8cfba79fdc98dc30515e00493e623ab5ae6e400;300;31f9ea6b78bdf1642617fe95864526994533bbd2400;300;55289cdf9d7779f36c0e87492c4e0747c66f83f0400;300;d2e4b73d6d65367f0b0c76ca40b4bb7d2134c567

अन्यत्र

आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...