तम दूर देश का करने को
भेद, बींच का, हरने को
देश प्रकाशित, करने को
मातृ-भूमि हित, मरने को
धरा समान, धीर चाहिए
बोस-भगत सा वीर चाहिए
आजादी मिल गयी हमें पर
शासन उनका अभी हृदय पर
हम सब एक नहीं हो पाए
खाईं दिल की, मिटा न, पाए
अलगाव वाद, मिटाने को
देश अखंड बनाने को
ज्योति दिखाए दीपक जैसा
जलने वाला, वीर चाहिए
बोस-भगत सा वीर चाहिए
लोलुपता हम छोड़ ना पाए
पंच- दशक के वर्षो में
मानवता से, गिरे जा रहे
भौतिकता सघर्षों में
छोटे – छोटे देश कहाँ से
आज कहाँ तक आए है।
लेकिन हमने , कर्म-हीन
घोटालों में नाम कमाए है
गीता फिर याद दिलाने को
युवा- शक्ति जगाने को
नव हिन्द सृजन कराने को
‘जानी’ बने, ईंट नींव की
ऐसा कर्म - वीर चाहिए
बोस-भगत सा वीर चाहिए