छिपकर के दुश्मनों से, कब तक रहोगे घर में
कुछ हम भी हैं दुनिया को, दिखा क्यो नहीं देते
बीमार को अब जहर, पिला क्यों नहीं देते?
है तुमको अगर देश को, अब शान्त बनाना
तो पाक को फिर खाक, बना क्यों नही देते?
बीमार को अब जहर, पिला क्यों नहीं देते?
है देश से गर तुमको, गरीबी को मिटाना
सिर धड़ से गरीबो का, उड़ा क्यूँ नही देते?
बीमार को अब जहर, पिला क्यों नहीं देते?
बनने का धनी तुमको, अगर है कोई सपना
बीबी-बहन को घर मे, जला क्यों नहीं देते?
बीमार को अब जहर, पिला क्यों नहीं देते?
है देश की जनसंख्न्या, अगर देश की दुश्मन
आतंकवाद को भी, बढ़ा क्यों नही देते?
बीमार को अब जहर, पिला क्यों नहीं देते?
वोटों की फसल बोनी है, मजहब से अगर तो,
फिर चर्च या मस्जिद को, गिरा क्यों नही देते?
बीमार को अब जहर, पिला क्यों नहीं देते?
करना हो कभी राज, अगर देश मे तुमको
भाई-से फिर भाई को, लड़ा क्यों नही देते?
बीमार को अब जहर, पिला क्यों नहीं देते?
सुनने की सच्ची बात, अगर है नही शक्ति
‘जानी’ की जुबां को ही, कटा क्यों नहीं देते?
बीमार को अब जहर पिला, क्यों नही देते ?
बीमार को अब जहर, पिला क्यों नहीं देते?