अम्बर के आंसू सूख गये
तारो ने हंसना बंद किया
पुष्प गंध प्रेमी उधौ ने
अब तो बारूदी गंध पिया
कलियों ने घुंघट तोड दिये
अब उनमें लज्जा वास नहीं
मानवता प्रेमी भौंरे को
अब मधुर मधुप की आस नहीं
अब बिन दहेज के बहुओ की
तो, माँग भरी ना जाती है
जिस माँ ने बेटी जन्म दिया
सिर धुन-धुन कर पछताती है
है कोयल का अपमान आज
कौओं की पूजा होती है
इस कंप्यूटर वाले युग मे
उत्कोच ज्ञान की ज्योति है
दो चार उठे तो क्या होगा
तुम, सबको साथ उठाओ गर
“जानी” फिर हम भी मानेंगे
आदमी आज पहुचा शशि पर ……..