यह कैसा है लोकतन्त्र?
कैसा यह जनता का राज
सहमी-सहमी जनता सारी
कैसा है ये देश आजाद ?
जनमों के दुश्मन कुर्सी हित
पल में, बन जाते हैं मीत
गुण्डे तो, नेता बन घूमें,
सज्जन हैं, घर में भयभीत
धर्म-जाति में भेद बढाकर
सिखलाते आपस में प्रीति
नेता आज वही बन बैठा
छोड दिया है जिसने नीति
राजनीति तो बनी है साधन
केवल, पाने को अब राज!
यह कैसा है लोकतन्त्र ?
कैसा यह जनता का राज ?
लूट रहे हैं सभी, देश को
देश -प्रेम, बस नारों से !
जाति,धर्म ही जनता देखे
परखे ना, ब्यवहारों से !
कर्तब्यों को, कोई न देखे
मतलब बस, अधिकारों से !
पार्टी की पहचान आजकल
होती है, परिवारों से !
ऐसा क्यूं अंजाम हो रहा?
जबकि अच्छा था आगाज
यह कैसा है लोकतन्त्र ?
कैसा यह जनता का राज?
आजादी, इतनी क्यूं है कि
जितना चाहो, लूटो देश ?
नयी नस्ल को, आज दे रहे
जाने हम कैसा परिवेश ?
सत्ता पर कब्जा है जिनका
समझ रहे, खुद को सर्वेश !
करें देशहित, देश बेंचकर
देते इसको नाम, निवेश !
बस चुनाव में ही, आती है,
‘जानी’ क्यों जनता की याद?
यह कैसा है लोकतन्त्र ?
कैसा यह जनता का राज ?
लोकतन्त्र की सरकारें अब
जनता से, हो रही हैं दूर
भ्रष्टाचार, दमन, घोटाले
सहने को, जनता मजबूर
जुल्म और बेईमानी, चुप हो
देख रहा है, सभ्य समाज !!
यह कैसा है लोकतन्त्र ?
कैसा यह जनता का राज ?
पाक साफ अब केवल वो ही,
जिनके पास है पावर-पैसा,
जो कमजोर, विपक्ष में है जो,
भ्रष्ट नहीं है, उसके जैसा ।
जो विपक्ष में, दागी-खूनी,
मिलते ही हो जाता पाक ।
सत्ता हित, दुश्मनी –दोस्ती,
जनता रह जाती है अवाक।
चुप विपक्ष, नतमस्तक मीडिया,
कौन बने जन की आवाज ?
यह कैसा है लोकतंत्र ?
कैसा यह जनता का राज ?