आजकल देश में नेताओं को संतई और सेवकई का दौरा पड़ा हुआ है। जिसे देखो संतगीरी या सेवकगीरी दिखा रहा है। चुनावी साल में जनता को अपनी सेवा और सादगी से लुभा रहा है। अभी तक संत धार्मिक काम करते थे। लेकिन जब से सन्त, आशाराम-गीरी करते हुये पकड़े जाने लगे हैं, तब से कुछ सन्त राजनीति में हाथ आजमाने लगे हैं। राजनीति में गज़ब का सन्त समागम हो रहा है। सत्संग झमाझम हो रहा है।
कोई लालबत्ती हटा रहा है। कोई कारों का काफिला घटा रहा है। बीएमडबल्यू छोड़ कर कोई वैगनआर चला रहा है। कोई सरकारी बंगले पर लात चला रहा है। कोई बिजली का बिल घटाने के लिए अपनी सरकार से लड़ रहा है। कोई फ्री दाना-पानी देने पे अड़ रहा है। ‘खास’,अब ‘आम’ होने को बेताब है, और ‘आम’, अब ‘खास’ हुआ जा रहा है। टीवी- अखबार में बस ‘आम’ ही ‘आम’ नजर आ रहा है। ‘खास’ बेचारा शर्म से मुंह छुपा रहा है। इस आईपी (इंडियन प्रोविन्स) में वीआईपी की, इतनी दुर्गति कभी नहीं थी। कभी गुंडई टिकट का आधार थी, आजकल राजनीति में संतई की बहार है।
इधर ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आ रहा है, कुछ लोग संतई से जीने और सेवकई करने पर उतारू हो रहे हैं। जिसे देखो जनता की फिक्र में अधमरा हुआ जा रहा है। कोई जनता के घर घर जाने की बात करता है, तो कोई दलित के घर खाने की बात करता है। कोई चावल फ्री दे रहा है कोई पानी। कोई बिजली फ्री दे रहा है, तो कोई सबकुछ फ्री देने के वादे कर रहा है। सब तरफ बस सत्संग हो रहा है।
एसे में बेचारे चोर और पुलिस अपनी किस्मत को रो रहे हैं। चोर, संतों की सदस्यता ले चुके हैं, जिसके कारण पुलिस बेचारी यूजलेस हो गयी है। पुलिसवाले खाली पड़े पड़े टायर होकर रिटायर हो रहे हैं। बड़े बड़े कार्पोरेट अपना रेट गिरा रहे हैं। अब तो गुंडो और पुलिस वालों को स’मौज’वादियों का ही सहारा रह गया है। क्योंकि आजकल स’मौज’वादियों को गीता का ज्ञान प्राप्त हो चुका है।
इसीलिए तो एक स’मौज’वादी उवाचते हैं कि जो पैदा हुआ है, वह मरेगा ही। चाहे वह महलों में रहे या मुजफ्फर नगर टेंट में। इसलिए हे पार्थ (मीडिया और विपक्षी)! तुम मुजफ्फर नगर दंगा पीड़ितों कि चिन्ता मत करो। वो क्या लेकर आए थे, क्या लेकर जाएँगे... एक दूसरे स’मौज’वादी अफसर उवाचते हैं कि ठण्ड से अगर कोई मरता तो साइबेरिया में कोई जीवित नहीं रहता। बेचारे साइबेरिया घूमने के चक्कर में मुजफ्फर नगर भी नहीं घूम पाये नहीं तो जान पते कि साइबेरिया में लोग टेंटों में नहीं रहते। वैसे जनता का दर्द तो स’मौज’वादी ही समझते हैं।
इस चिलचिलाती ठण्ड में, जनता को कड़कड़ाती धूप कि गर्मी का आनन्द देने के लिए ही सैफई में फिल्मी बालाओं के नृत्य का आयोजन कराते हैं। एसी ठण्ड में कम कपड़ों में नृत्य करती रूपसियों को देखकर भी जिसे ‘ठंडी में भी गर्मी का अहसास’ वाली फीलिङ्ग ना हो, एसी जनता को बारंबार धिक्कार है। धिक्कार है उन्हें जो सुंदरियों पर दस-पाँच करोड़ लूटाने कि बजाय मुजफ्फर नगर टेंट में सौ-दो सौ रूपल्ली के कम्बल बांटने की बात करते हैं। लानत है एसी टुच्चई सोच पर। करोड़ों को छोड़ सौ-दो सौ पर अटके हैं।
बेचारे स’मौज’वादी ही पुलिस और गुंडो की पीड़ा समझ रहे हैं। इसलिए इनको भरपूर काम दिलाने में लगे हैं। स’मौज’वादी राज में पुलिस वाले ओवर- टाइम कर रहे हैं। मर्द पुलिसवाले बेचारे रात में भी महिलाओं पर लाठी-लात-घूंसे चला रहे हैं। महिला पुलिस को कोई काम नहीं है। महिलाओं की इतनी फिक्र और किसी को क्या होगी। सैफई महोत्सव की सुरक्षा में बेचारों को खूब काम मिला है। इस समय जनता को संतई और सेवकई लुभा रही है, तो स’मौज’वादी लोगों को सैफई। जै हो संतई-सेवकई और सैफई की।