बंगारु लक्ष्मण एक लाख की घूस लेते कैमरे पर आजतक चर्चा के मुख्य विषय हैं, जबकि उसी पार्टी के दिलीप सिंह जुदेव को नौ लाख की घूस लेते हुये कैमरे पर लोग (उच्च वर्ग) कभी भूले से भी याद नहीं करते। अकेले 71.36 अरब का घोटाला करने वाले सत्यम कंपनी के रामलिंगम राजू की जमानत कब हो गयी इसे मीडिया ने समाचार में भी नहीं दिखाया। कनिमोझी आदि के साथ में उससे कम की रकम के कथित 2 जी घोटाले में ए राजा अभी तक जेल में हैं, जब कि कनिमोझी भी बाहर आ चुकी हैं।
अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में पेट्रोल पंप घोटाला जो की कोर्ट में सिद्ध हुआ था, पर बाजपेयी ईमानदार थे। कफ़न, ताबूत और कई घोटाले भले बाजपेयी के राज में चर्चित रहे, परंतु फिर भी बाजपेयी ईमानदार थे। 2जी घोटाला, कामन वेल्थ घोटाले आदि बड़े बड़े घोटालों के बाद भी मनमोहन सिंह बहुत ईमानदार हैं। मायावती पर केवल घोटालों के आरोप होने से वह बहुत बड़ी भ्रष्ट हो गयी। क्यों? क्या भ्रष्टाचार भी केवल जाति के आधार पर तय होगा। आज जब अंकल सैम बैकवर्ड जाति के निकल चुके हैं, तो काश कोई भ्रष्टाचार की भी जाति बताता?