माहौल मुल्क का, ठण्डा तो है,
पर इस कदर ठण्डा भी नहीं है ।
कहीं हाथों में, कत्ल को बन्दूक तो है
कहीं,चलने के लिये हाथ में डण्डा भी नहीं है
कितने गरीब, अनपढ, अब तक हैं देश में
होती है इसपे चर्चा, जाकर विदेश में
त्रिशूल है, तलवार है, रोजगार नहीं है !
नारे हैं, पर पेट का, आधार नहीं है !
मंदिर के चढावे पर, हैं बहुत से पण्डे !
पर,मुल्क की पूजा को,पण्डा ही नहीं है
कहीं हाथों में, कत्ल को बन्दूक तो है
कहीं,चलने के लिये हाथ में डण्डा भी नहीं है
लूटें वतन को लेकिन, प्रहरी के वेश में,
खाते हैं अब कमीशन, पूंजी निवेश में
आतंकी हैं, गुण्डे हैं, सरकार नहीं है !
‘जानी’ क्या इसकी जनता,जिम्मेदार नहीं है
ताबूत और कफ़न की, हद तक है दलाली
महफ़ूज तो अब मुल्क का,झण्डा भी नहीं है
कहीं हाथों में, कत्ल को बन्दूक तो है
कहीं,चलने के लिये हाथ में डण्डा भी नहीं है