चुनाव खत्म हो गए। जीतने वाले तो राज कर रहे हैं, हारने वाले हार की समीक्षा। वैसे भी जब से हारे हैं, नेता जी मीडिया से भी दूर दूर ही रहते हैं। पता नहीं कब कौन हार का कारण पूँछने लगे। इसलिए हार के काफी दिनों बाद नेताजी बाहर निकले हैं। हार की समीक्षा करने के लिए। आनन फानन सभी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की बैठक बुला ली। ब्रेन स्टार्मिंग शुरू हुई। सभी उपस्थित छोटे बड़े नेताओं ने अपना अपना अनुभव और कारण बताया।
पहला कार्यकर्ता बोला- हमारे बड़े नेता आपसी टाँग खिंचाई और बड़बोले पन में चूर थे। उन्होने कभी जनता से जुडने या उनकी समस्याओं पर ध्यान देने की कोशिश ही नहीं किया। मन मर्जी प्रत्याशी बाहर से लाकर खड़ा कर दिया, जिसे जनता जानती भी नहीं थी। जिसने जनता के लिए कुछ किया भी नहीं था। तुरन्त एक हारे हुये बड़े नेता, जो आलाकमान तक की पहुंचवाले थे, ने इसका विरोध किया। बोले- जीतने वाले प्रत्याशी ने भी जनता के लिए कौन सा काम किया है। वह भी तो इस क्षेत्र के बाहर का है। हमारे कार्यकर्ताओं ने ठीक से जनता तक अपनी बात ही नहीं पहुंचाई। नहीं तो आलाकमान ने कितने गरीबों के घर खाना खाया और रात बिताई, जनता सब भूल थोड़े ही जाती।
दूसरे कार्यकर्ता ने दूसरा कारण बताया- हमने जनता को भिखारी कहा। उसके आत्म सम्मान को ठेस लगी। उसे मजदूर और दूसरे प्रदेशों पर आश्रित कहा। इससे वह नाराज हो गयी। और हमको हरा दिया। हम खुद ही वोट की भींख मांग रहे थे। और जिससे वोट की भींख मांग रहे थे, उसे ही भिखारी कह रहे थे। एक दूसरे हारे हुए बड़े नेता ने टोका- तो हमारे आलाकमान ने गलत क्या कहा? बाईस सालों में दूसरी पार्टी के लोगों ने जनता को भिखारी बना दिया है, जनता को यह बात जाननी चाहिए। जिससे की वह हमारे कामों को याद कर सके।
तीसरे कार्यकर्ता ने बीच में ही बात काटी। कौन से कामों को याद करे? घोटालों को? सच तो यह है कि हमने जनता से सिर्फ मांगा। उसे देने का कोई वादा नहीं किया। हमने पाँच साल मांगे। मगर बिजली दस साल बाद देने की बात की। लोग गुजारा भत्ता दे रहे थे, लैप टाप दे रहे थे, कंप्यूटर दे रहे थे, टैबलेट दे रहे थे, हमने मोबाइल तक भी देने का वादा नहीं किया। हमने सिर्फ सोचने के लिए कहा कि, सोचो हमारे आने से और क्या क्या हो सकता है? जनता कैसे हमें वोट देती ? उसने सोच लिया की हमारे आने से सीडबल्यूजी, कामनवेल्थ, और टू जी जैसे और क्या क्या हो सकता है। इसलिए जनता ने हमें वोट नहीं दिया। एक बड़े नेता ने उसे रोका- तुम क्या जनता को लालची समझते हो ? हमने पहली बार सही बात कही। जनता ने नकार दिया। जनता सच सुनना ही नहीं चाहती।
एक दूसरे बड़े नेता ने कहा, ‘हमने तो जीतने पर भगवान का मंदिर बनाने को कहा था। गाय देने की बात की थी। बाहर से नेता भी इम्पोर्ट किया, फिर भी जनता ने वोट नहीं दिया’। एक कार्यकर्ता ने टोका- ‘लेकिन जब हम सरकार में थे, तब हमने राम मंदिर बनाया नहीं। फिर जनता कैसे हमारा भरोसा करे। काठ की हाण्डी तो एक बार ही चढ़ती है। आप बार बार उसी को चढ़ाएँगे तो कैसे सरकारी खिचड़ी पकेगी ?’
एक अन्य नेता ने कहा, ‘लेकिन हमने तो जनता के लिए पार्क बनवाया। जनता के स्वागत में हाथियाँ लगवाई। फिर भी जनता ने वोट नहीं दिया। एक कार्यकर्ता बोला- लेकिन आपने जनता को पार्कों में जाने लायक तो नहीं छोड़ा। सड़कों की हालत इतनी खराब हो गयी की पार्कों तक कोई जा ही नहीं पाया। ऊपर से दूसरी पार्टियों ने हल्ला मचा दिया की आपने सारा पैसा पार्कों में ही लगवाया।
इसका मतलब जनता मूर्ख है जो हमारे कामों को नहीं देखती। सिर्फ प्रोपोगण्डा पर ही चलती है। एक बड़े नेता ने कहा तो सभी बड़े नेताओं ने एक साथ सहमति में सिर हिलाया कि जनता नासमझ है। हमको समझ नहीं पायी। वह हमारे कामों को देखती है, हमारी बातें नहीं सुनती। जनता अब लालची हो गयी है। लैप टाप और टैबलेट पर बिक गयी। बेगारी भत्ते के पीछे उसने अपना ईमान छोड़ दिया। इसलिए अब जनता हमारे काबिल नहीं रह गयी है। हमें अब नयी जनता ढूंढनी चाहिए। सभी नेताओं ने एक मत से निर्णय किया की अगले चुनाव में हर प्रत्याशी का चुनाव क्षेत्र बदल दिया जाएगा। हाँ प्रत्याशी नहीं बदलेंगे, क्योंकि कमी जनता में है। नेताओं में नहीं।