बड़े बुजुर्ग कहते थे कि सपने हमेशा सोने पर आते हैं। मगर आजकल की बात ही अलग है। आखिर कलयुग चल रहा है, इसलिए आजकल के संतों को सपने में सोना दिखाई दे रहा है। सोने पे सपना और सपने में सोना। वाह क्या जुगलबंदी है। आजकल एक संत शोभन सरकार को सपना आया है कि यूपी के उन्नाव के डौडिया खेड़ा गाँव में राजा राव राम बक्स के किले में एक हजार टन सोना गड़ा है। उन्होने एक केंद्रीय मंत्री जिनके नाम में महंत है को सपना बताया। यानी संत और महंत मिलकर देश कि गरीबी का अंत करने निकल पड़े।
फिर क्या था जनता को हमेशा सपने दिखाने वाली सरकार ने बाबा के सपने को सच मानकर खुदाई करना शुरू कर दी। वैसे सरकार देश कि गरीबी हटाने के लिए हर बाबा के सपने पर खुदाई कराती रही है। इसके पहले एक बाबा रामदेव थे, जिन्होने विदेशों में जमा भारतीयों के काला धन वापस लाकर देश की गरीबी मिटाने का सपना सरकार को बताया था। तब भी सरकार ने सीबीआई से बाबा की खुदाई शुरू कर दी थी। ये अलग बात है कि खुदाई में कुछ हाथ नहीं लगा ।
हाँ, तो हमारे देश में सपना देखने और दिखाने की बहुत ही सम्बृद्ध परंपरा सदियों से रही है। आजादी के बाद से यह परम्परा कुछ ज्यादा ही फल फूल गयी है। क्या जनता, क्या नेता सभी सपना देखने और दिखाने में ब्यस्त हैं। कभी किसी व्यक्ति के सपने में कोई भगवान आता है और कहता है कि एक हजार पर्चियां छपवाकर बांटो, करोड़पति बन जाओगे। अगर पर्ची फाड़ी तो समझो अपनी किस्मत फाड़ोगे।
वैसे केवल जनता या संत-महंत ही सपना नहीं देखते हैं, बल्कि सबसे ज्यादा सपने तो देश के नेता देखते हैं। आखिर उनको सोने का समय भी तो ज्यादा मिलता है, पूरे पाँच साल। पाँच साल सोते हैं और देश को सोने कि चिड़िया बनाने के सपने देखते हैं। पाँचवे साल जागते हैं और जनता को सपने दिखाने लग जाते हैं। पूर्व कांग्रेस प्रधानमंत्री ने गरीबी मिटाने का सपना दिखाया था। अब वह खुद गरीबों के सपने में आती है। कांग्रेस अध्यक्ष ने गरीबों को भरपेट खिलाने का सपना देखा, और वो महँगाई बढाई कि आम आदमी आलू-प्याज का सपना देखने को मजबूर हो गया।
भाजपा ने भय-भूंख-भ्रष्टाचार हटाने का सपना दिखाया तो आतंकवादियों को पाकिस्तान तक छोड़ के आए। संसद भवन और अक्षरधाम मंदिर पर निर्भय होकर आतंकियों ने हमले किए। इण्डिया शाइनिंग का वो सपना दिखाया कि जनता की आँखे आज तक चुंधियाई हुई है। सपा ने कांग्रेस के वंशवाद का विरोध करने का सपना देखा और उसे पूरा करने के लिए अपने पूरे कुनबे को, भाई-बेटा-पतोहू आदि सभी को लगा दिया, एमपी-एमएलए बना कर। सेकुलरिज़्म लाने के सपने को पूरा करने के लिए धार्मिक दंगो की छूट दी। बसपा प्रमुख ने मनुवाद विरोध का, सामाजिक समानता लाने का सपना दिखाते-दिखाते अपनी ही मूर्तियाँ लगवाकर पुजवाने लगी।
जब मौसम चुनावों का हो तो सपने खूब बिकते है। नए-पुराने सभी तरह के सपने। आजकल दिल्ली सहित पाँच राज्यों में चुनाव चल रहे है, इसलिए सपने नए-नए रैपरो में निकल रहे हैं। इस बार एक नया सपना भ्रष्टाचार मिटाने का भी है। आम आदमी पार्टी इसे लेकर आई है। नई पार्टी – नया सपना । भाजपा, नरेंद्र मोदी से देश की काया-कल्प करने का सपना बेंचवा रही है, तो कांग्रेस राहुल से युवाओं का भविष्य संवारने का, खाने की (किसके और क्या खाने की?) गारंटी का सपना बेंच रही है। बाकी दल भी अपने नए-पुराने सपनों के साथ मैदान में हैं।
मौसम चुनाव का है, इसलिए सपनों की फसल खूब उग रही है। नेताओं को पब्लिक के सपने आ रहे है। उम्मीदवारों को कुर्सी- मंत्री-लालबत्ती के सपने आ रहे हैं। पब्लिक को आलू-प्याज-रोटी-दाल के सपने सता रहे हैं। एसे में गर बाबाओं को सोने के सपने आ रहे हैं, तो इसमें क्या हर्ज है?