एकाएक हमारा राष्ट्र जैसे बिलकुल अनाथ सा हो गया है। ना कोई माँ, ना बाप, ना भाई, ना बहन। ना कोई खुशी, ना गम। ना कोई काम, ना आराम। हिंदुओं- मुसलमानों- सिक्खों- ईसाइयों की भीड़ में बिलकुल अकेला। ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों से खचाखच भरे होने के बाद भी एक-एक भारतीय के लिए तरसता, बिल्कुल तनहा सा हो गया है। आजकल जैसे बातें फेसबुक पर तो खूब होती हैं, लेकिन फेस-टू-फेस कोई किसी से बात करना तो दूर, देखना भी नहीं चाहता। उसी तरह हर जाति-धर्म के लोग अपनी-अपनी राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत तो हैं, परन्तु सबका एक राष्ट्र नहीं है। सबके अपने-अपने राष्ट्र हैं, सबकी अपनी-अपनी राष्ट्रभक्ती।
लेकिन कुछ भी हो, हमारे देशवासी, राष्ट्र के अकेलेपन को दूर करने में जी-जान से लगे हैं। राष्ट्र के नाते-रिश्तेदारों और खान-पान को ढूँढने मे शिद्दत से लगे हैं। एक स्वयंभू राष्ट्रवादी ने कहा, गाय को ‘राष्ट्र-माता’ घोषित कर दिया जाए। राष्ट्र को माँ मिलते ही उसका सारा दुख दूर हो जाएगा। दूसरे राष्ट्रवादी ने कहा, खिचड़ी को ‘राष्ट्रीय भोजन’ घोषित किया जाए, इससे राष्ट्र के खाने-पीने की समस्या हल हो जाएगी।
वैसे हमारे समस्या-प्रधान देश में माँ-बाप या खाना-पीना ढूँढना कोई बड़ी समस्या नहीं है। बड़ी समस्या तो ये है कि किस समस्या को ‘राष्ट्रीय समस्या’ घोषित की जाए? इस सवाल के जबाब के लिए मुझे बुद्धू-बक्से में आशा की किरण नजर आई। मैंने टीवी खोला तो देखा सभी चैनल, चारों पहर, रानी पद्मावती को लेकर स्टूडियो में तलवारें भाँज रहे हैं। स्टूडियो में तलवारें निकल रहीं हैं। अभी मैं सोच ही रहा था कि ‘पद्मवती फिल्म’ को ही ‘राष्ट्रीय समस्या’ घोषित कर दिया जाये, जिससे देश की सभी महिलाओं का मान-सम्मान बढ़ जाए, उन पर अत्याचार कम हो जाएँ।
लेकिन इसके पहले कि मैं किसी निष्कर्ष पर पहुँचता, अगले दिन चैनलों में लव-जेहाद पर भिड़ा-भिड़ी होने लगी। तब समझ में आया कि देश की सभी समस्याओं की जड़ तो हिन्दू-मुस्लिम विवाह है, अगर लड़की हिन्दू हो तो। जब सुप्रीम कोर्ट और एनआईए लव-जेहाद को देखने लगे, तब मुझे लगा कि इससे बड़ी राष्ट्रीय समस्या तो कोई हो ही नहीं सकती। इसके पहले कि मैं ‘लव-जेहाद’ को ‘राष्ट्रीय समस्या’ घोषित करता, चैनलों ने बाबा राम-रहीम और उनकी चेली हनीप्रीत की समस्या को पानी पी-पी कर दिखाना शुरू कर दिया।
बेचारे रिपोर्टर भूंखे-प्यासे हनीप्रीत को खोजने के लिए दर-दर भटक रहे थे। हर चैनल ने, बाबा की गुफा के रहस्य बताने में अपने को झोंक रखा था। ना किसी को गैस सिलेण्डर के दाम दुगने होने की चिंता, ना टमाटर के दाम बढ़ने की फिकर। सब बस हनीप्रीत और बाबा राम-रहीम की चिंता में दुबले हुये जा रहे थे। अभी मैं निश्चय कर ही रहा था कि हो ना हो ‘राष्ट्रीय समस्या’ तो ‘राम-रहीम’ ही हैं, कि तभी चैनलों ने ‘सेक्स-सीडी’ की अखिल-पार्टी-ब्यापी समस्या पर चर्चा शुरू कर दी। कभी मंत्री की सीडी, कभी नए-नए नेता की सीडी। शिक्षा के एबीसीडी का तो किसी को ध्यान ही नहीं रहा, सब तो नेताओं की ‘सेक्स-सीडी’ में ही मस्त हो गए। चूंकि ‘सेक्स-सीडी’ की समस्या अमूनन सभी पार्टियों में पायी जाती है, इसलिए सर्वसम्मति से ‘सेक्स-सीडी’ की समस्या को ‘राष्ट्रीय समस्या’ घोषित करने का प्रस्ताव मैंने राजनीतिक पार्टियों के समक्ष रखा।
लेकिन यह क्या, कांग्रेस बोलने लगी, संसद का शीत-कालीन सत्र ना बुलाना राष्ट्रीय समस्या है। तो बीजेपी ने कहा की कांग्रेस ही राष्ट्रीय समस्या है। सपा-बसपा ने चुनाव हारने के बाद कहा कि ईवीएम राष्ट्रीय समस्या है। किसी को ‘शहजादा’ तो किसी को ‘शाह-जादा’ राष्ट्रीय समस्या लगता है। अंत में सभी पार्टियाँ इस बात पर एकमत हुईं कि ‘चुनाव’ ही ‘राष्ट्रीय समस्या’ है, लेकिन जनता अभी भी चिल्ला रही है कि ‘महँगाई’, ‘बेरोजगारी’, ‘शिक्षा’, ‘स्वास्थ्य’... ‘राष्ट्रीय समस्या’ हैं। मेरे लिए तो ‘राष्ट्रीय समस्या’ घोषित करना ही बड़ी समस्या हो गयी है।