आखिरकार एक और साल ने भी जनता से विदा ले ही लिया। नए साल में कुछ नया हो या ना हो, कुछ बदले या ना बदले, हम भारत के लोग कसम खाते हैं कि कैलेंडर जरूर बदल देंगे। हमारे लिए तो यही बदलाव “आप” के बदलाव से, लोकपाल के बदलाव से, बड़ा है। वैसे कैलेण्डर बदलना, देश बदलने से कठिन काम है। इस चिलचिलाती ठण्ड में कटरीना कैफ की फोटो वाला कैलेण्डर लगेगा, कि बीबी कि पसन्द सलमान खान वाला कैलेण्डर लगेगा, हमें तो घर में इसी पर आमराय बनाने में, लोकपाल बनाने से ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है। आखिर आम आदमी जो ठहरे। अपने मन से एक मच्छर भी नहीं मार सकते।
अब तो अपनी वो हालत हो गयी है कि आम आदमी भी नहीं रहे। अब तो आम आदमी बनने के लिए भी टोपी पहननी पड़ती है। इतना ही नहीं, उसपे आम आदमी लिखवाना भी पड़ता है, तब जाकर पता चलता है कि आम आदमी है कि नहीं। आज कल आम आदमी बनना भी बहुत मुश्किल है। अब तो लोग टोपी पहनकर आम आदमी को टोपी पहना रहे हैं। अगर नरेन्द्र मोदी जी ने टोपी पहनने का यह फायदा पहले जान लिया होता, तो क्या वो टोपी पहनने से मना कर पाते? इस साल में टोपी कि इज्जत का सूचकांक, शेयर बाजार के सूचकांक से भी ज्यादा उछला है।
हाँ तो बात हो रही थी नए साल की। अब नए साल में बीबी से लेकर पड़ोसन तक, नया क्या होता है, आजतक शोध का विषय है। लेकिन फिर भी नए साल की बधाई तो देनी पड़ती है ना। अपने को पिछड़ा कौन कहलाए। आखिर कापी-पेस्ट तो सभी को आता ही है। तो एक न्यू ईयर की शायरी या संदेश, कापी करके पेस्ट करने में क्या जाता है? बैठे बिठाये बन गए माडर्न। जै हो कापी-पेस्टिया बाबा की। लेकिन इसमें समस्या तब आती है, जब ब्वायफ्रेंड को गर्लफ्रेन्ड की ओर से कोई अच्छा संदेश मिलता है। वह यह सोच-सोच कर हलकान हो जाता है की यह सन्देश ‘उसे’ किसने भेजा होगा? क्यों की उसे भी कापी-पेस्टिया बाबा पर पूरा यकीन होता है।
वैसे संदेश ही नहीं, यह त्योहार भी तो कापी-पेस्ट ही है। नहीं तो कितने लोग ठीक-ठीक जानते हैं की हमारा नया साल कब आता है? खैर हम इस चिरकुटगीरी में नहीं पड़ते। नहीं तो बाबा मुलायम नाराज हो जाएंगे। उनकी निगाह में, इस कंपकंपाती ठण्ड में सैफई महोत्सव में रम्भा, उर्वशी समान नर्तकियों के ठुमका समाजवाद को छोड़कर मुजफ्फर नगर के दंगा पीड़ितों की बात करना चिरकुटगीरी है।
यद्यपि हमारा देश, हैप्पी न्यू ईयर मनाने में, बड़े-बड़े देशों को पीछे छोड़ चुका है, लेकिन अभी भी देश में कुछ ऐसे देशद्रोही बसते हैं, जिनको हमेशा रोटी-दाल, पानी-बिजली की ही फिक्र रहती है। कुछ तो ऐसे भी हैं, जो न्यू ईयर पर बीयर पीने की बजाय ठंड से मर जाते हैं। और देश के नाम पर बट्टा लगा जाते हैं। कुछ नामुराद तो ऐसे भी हैं, जो कर्ज के बोझ से आत्महत्या कर लेते हैं। अभी भी कुछ ऐसे भी अनपढ़ गंवार हैं, जिनको पता ही नहीं की हैप्पी न्यू ईयर क्या होता है? ऐसे निकृष्ट लोग हैप्पी न्यू ईयर या सेम टू यू कहने की बजाय देश को ही शेम- शेम करवाने पर तुले हुये हैं।
कुछ अज्ञानी तो यह भी पूछते हैं कि न्यू ईयर आने पर क्या सब कुछ हैप्पी हो जाएगा? क्या न्यू ईयर में देश की गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी सब खत्म हो जाएगी? इन धृष्ट लोगों को यह भी नहीं मालूम है कि हैप्पी न्यू ईयर जैसे पावन-मनभावन मौके पर ऐसे बेहूदा सवाल नहीं पूछे जाते। इनको यह भी नहीं पता की इन समस्याओं से भी बड़ी समस्यायेँ हैं। और वो हैं –न्यू ईयर कैलेण्डर सेलेक्ट करने की समस्या, एमएमएस करने की समस्या, ग्रीटिंग कार्ड सेलेक्ट करने कि समस्या, बीयर का ब्राण्ड सेलेक्ट करने कि समस्या, न्यू ईयर मनाने के लिए मेनू और वेनू सेलेक्ट करने जैसी समस्याएं। जो कि गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि से बहुत बड़ी हैं। तो आइये, न्यू ईयर पर फोकस करते हैं। हैप्पी न्यू ईयर!!