हमारे देश के लोग बहुत ही मतलबी होते हैं। अरे आप गलत मतलब निकाल रहे हैं, मतलबी का मतलब है, मतलब निकालने वाले ! यानि किसी बात का अर्थ समझने वाले। हमारे देश वासी, हर बात, हर घटना, हर चीज का अपना-अपना मतलब निकाल लेते हैं। केवल जनता ही नहीं, हमारे नेता, पत्रकार, बाबा, गुरु हो या गुरु घंटाल, सब अपना अपना अर्थ-अनर्थ निकालने, मतलब निकालने में माहिर होते हैं।
जब सरकार कहती है कि, ‘सीमा पर सैनिक अपनी जान कुर्बान कर रहे हैं ....’ तो जनता फौरन ये मतलब निकाल लेती है कि अब उसे भी कुर्बानी देने के लिए तैयार होना है। पेट्रोल-तेल-गैस के दाम बढ़ेंगे, या आटा- चावल- दाल से प्याज के आँसू रोने के लिए तैयार होना है। नेता जैसे ही बोलते हैं कि ‘अच्छे दिन आने वाले हैं…’ डेढ़ सयानी जनता तुरंत मतलब निकाल लेती है कि उनके अच्छे दिन आने वाले हैं, जबकि नेता, अपने लिए, अच्छे दिन आने वाले हैं, बोल रहे होते हैं। पर जनता तो नंबर एक मतलबी निकली, तुरंत अपना मतलब निकाल लेती है। वैसे ही जब एक स्वयंभू परम ईमानदार नेता ने कहा कि मेरे सत्ता में आने पर सारे मंत्री जेल में होंगें। जनता ने ये मतलब निकाला कि उनके सत्ता में आने पर विपक्षी भ्रष्ट मंत्री जेल में जाएंगे। लेकिन जब उनके ही दो मंत्री जेल गए, तब मतलब समझ आया कि वो अपने ही मंत्रियों की बात कर रहे थे।
वैसे जनता अब बहुत ज्यादा मतलबी... आई मीन, मतलब निकालने वाली हो गई है। जब अदालतें किसी मामले की सुनवाई के समय आरोपी के लिए भयानक भयानक टिप्पणियाँ करने लगे, तो जनता तुरंत समझ जाती है कि आरोपी बरी होने वाला है। आरोपी की राहत के लिए फैसला, और बाकियों के लिए टिप्पणियाँ ..… । आप अपने मतलब के हिसाब से देख लीजिए। अदालती टिप्पनियों से आपका मतलब पूरा होता है कि अदालती फैसले से। अदालतों में सरकारों द्वारा बंद लिफ़ाफ़ों की....... आई मीन, बंद लिफ़ाफ़े में सौंपी गई सरकारी जानकारियों की सुनवाई का मतलब तो लोग खुद ही निकाल लेते हैं।
आजकल बाबा और प्रवचन करने वाले भी बहुत मतलबी… आई मीन, मतलब बताने वाले हो गए हैं। एक मंत्री ने बाबा तुलसी की चौपाई, ढोल गंवार सूद्र पशु नारी... को, नारी और सूद्रों के लिए अपमान जनक बताया, तो बाबाओं और टीवी एंकरों की फौज मैदान मे कूद पड़ी, ताड़ना का अर्थ बताने के लिए। और ताड़ना का मतलब, शिक्षा देना होता है, ये बताने लगे। तो दूसरी तरफ के मतलबियों ने फिर पूँछा कि ढ़ोल को स्नातक की शिक्षा दी जाती है या परास्नातक की? उन्होंने इसका ये भी मतलब निकाला कि अब स्कूलों को ताड़नालय तथा शिक्षकों को ताड़क कहा जाएगा।
नेताओं-बाबाओं के इस मल्ल युद्ध... आई मीन, मतलब युद्ध में कूद पड़े इस किताब को छापने वाले प्रकाशक भी। उन्होंने इस जगह, यानि ढ़ोल गंवार … में ताड़ना का अर्थ शिक्षा देना छाप भी दिया। लेकिन दूसरे वाले भी कम मतलबी.....आई मीन, कम मतलब निकालने वाले थोड़े थे। उन्होंने प्रकाशक को दिखा दिया कि ‘‘सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता’’ मे तो ताड़त का मतलब दण्ड देना ही छपा है, तो फिर इसका क्या मतलब निकाला जाए? समय समय पर मतलब निकालना, हमलोगों की एक सनातनी प्रक्रिया है, जब भी लोगों में तनातनी होती है, सब अपना अपना मतलब निकालने लगते हैं।
आजकल बहुत से नए नए मतलब मार्केट में घूम रहे हैं। जैसे आजकल डायन का मतलब सुंदरी हो गया है। इसलिए अब महंगाई डायन नहीं बल्कि प्रेमिका हो गई है। आजकल भ्रष्टाचार का मतलब देश सेवा हो गया है। जो अधिकारी कर्मचारी या नेता अभिनेता, बिजनेस मैन या कामन मैन, जितना ज्यादा भ्रष्टाचारी होता है उतना ही वो देशभक्ति की चाशनी में लपेटकर अपने को दिखाता है। हिंडनबर्ग ने अड़ानी जी की संपत्ति के एकाएक बढ़ने का मतलब भ्रष्टाचार निकाला, तो अडानी जी ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का मतलब, देश पर हमला निकाला।
वैसे भी धर्म और देश कोई भी हो, सदाबहार खतरे में ही रहते हैं, एसा परम मतलबियों ने बताया है। कहीं लड़की के जींस पहनने का मतलब धर्म पर खतरा निकाला जाता है, तो कहीं दूसरे धर्म में शादी ब्याह का मतलब धर्म पर खतरा निकाला जाता है। आजकल सरकारों से सवाल पूंछने का मतलब देश-द्रोह या देश पर खतरा बताया जाता है। संसद में विपक्ष द्वारा सवाल पूंछने का मतलब होता है कि नेहरू की बातें खोद-खोद कर, उनको याद करना। लोग आजकल अपने ऊपर सवाल उठाने का मतलब, धर्म और देश को खतरे में डालना समझने लगे हैं। अब तक आप लोगों ने यह व्यंग्य पढ़ा, इसका मतलब आप भी ठंडा मतलब .... कोकाकोला ... समझने वाले मतलबी.... आई मीन, मतलब निकालने वाले समझदार व्यक्ति हैं।
मनोज जानी