जब से खबरिया चैनलों का ‘रिपब्लिक’ हुआ है, तब से पब्लिक का ज्ञान, देश की ‘जीडीपी’ जैसा हो गया है। ‘व्हाट्सप्प’ यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कालरों ने, ‘जी’तोड़ मेहनत कर के सालों में दो जिम्मेदारों को ढूंढ निकाला है। एक हैं पूर्व प्रधानमंत्री, श्री जवाहरलाल नेहरू, और दूसरे हैं देश में कार्यरत पाकिस्तानी आतंकवादी। बस दोनों में एक ही फर्क है कि आतंकवादी, खुद सामने आकर किसी भी हमले, आतंकी घटना की, चुनाव के समय किसी नेता विशेष को मारने की धमकी देने की (मारने की नहीं) ज़िम्मेदारी ले लेते हैं। लेकिन बाकी कांग्रेसियों की तरह यहाँ भी नेहरू जी, खुद आकर ज़िम्मेदारी नहीं ले रहे। नेहरू जी ने ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ लिखी, तो मरणोपरांत, इण्डिया के देशभक्त लोगों ने ये डिस्कवरी किया है कि, देश की हर समस्या के लिए केवल और केवल नेहरू जी ही, जिम्मेदार हैं।
सात सालों से रोज-रोज व्हाट्सप्प ज्ञान में डुबकी लगाकर, आज का बच्चा-बच्चा जान गया है कि, नेहरू जी ही देश की हर समस्या के लिए जिम्मेदार व्यक्ति रहे हैं। आज अगर सरकारी कंपनिया बिक रही हैं, तो इसका जिम्मेदार कौन? अरे वही नेहरू जी, जिन्होने ये कंपनियाँ बनाई। न वो बनाते, न बेचारे मोदी जी को कलेजे पर पत्थर रखकर इन्हें, बेचना पड़ता। आपको क्या पता, बेंचने में कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। नेहरू जी को क्या, वो तो कंपनियाँ बनाकर, देश को लूटकर चले गए। अब उसे बेंचकर, पैसे कमाते, तो उनको पता चलता, कि कैसे 25-25 घंटे काम करना पड़ता है, एक-एक कंपनी को बेंचने के लिए। बड़े-बड़े साहूकारों के आगे कैसे कैसे हाथ फैलाना पड़ता है, कंपनियों को खरीदने के लिए राजी करने में। दिल पर पत्थर रखकर कैसे-कैसे कड़े फैसले लेने पड़ते हैं, कर्मचारियों को बाहर निकालकर आत्मनिर्भर बनाने में और कंपनियों को बेंचने लायक बनाने में।
आज अगर एयरपोर्ट बेंचे जा रहे हैं तो कौन है उसका कारण? बैंकों को प्राइवेट किया जा रहा है तो कौन है इसका जिम्मेदार? किसने उनका राष्ट्रीकरण किया था? आप कहेंगे कि इन्दिरा जी ने। लेकिन बात घूम-फिर कर वहीं पहुँच जाती है कि अगर नेहरू जी नहीं होते तो इन्दिरा या राजीव या राहुल कैसे आते? तो लब्बोलुआब यही है कि देश में जो भी कुछ बन-बिगड़ रहा है, उन सबके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ नेहरू जी हैं। हमारे प्रधान सेवक जी तो फकीर आदमी हैं, दिन-रात काम करके इतने सालों से सिर्फ यही पता लगा रहे हैं कि नेहरू और कांग्रेस ने सत्तर सालों में क्या-क्या गड़बड़ किया था ?
उदाहरण के लिए, नोटबंदी के कारण जो सैकड़ों लोग लाइनों में मरे और छोटे उद्योग बर्बाद हुये, तो इसका जिम्मेदार कौन है ? बैंकनोटों की छपाई और संचालन कौन करता है? रिजर्व बैंक। और 1935 में बने रिजर्व बैंक को, जो कि पहले प्राइवेट (निजी) बैंक था, 1949 में राष्ट्रीकरण करके उसे भारत सरकार का उपक्रम किसने बनाया था? नेहरू जी ने ही ना? तो फिर नोटबंदी का जिम्मेदार सीधे-सीधे नेहरू जी ही हुये।
वैसे ये बात नहीं है कि, सभी बातों के जिम्मेदार सिर्फ नेहरू जी ही हैं। और भी बहुत सी बातें हैं, जो समय-समय पर ज़िम्मेदारी के लिए हाजिर होती रहती हैं, सरकारों के स्वादानुसार। जैसे कांग्रेस के राज में, बम फूटे तो उसका जिम्मेदार भगवा आतंकवाद। महंगाई बढ़े तो उसका जिम्मेदार, जनता का अधिक खाना खाना होता था। रेल दुर्घटना या आतंकवादी घटना के लिए मंत्री जिम्मेदार होता था। आजकल के नए भारत में, यदि कोई रेल दुर्घटना हो, तो पाकिस्तानी, आईएसआई जिम्मेदार होता है। किसानों के आंदोलन, छात्रों के आंदोलन के लिए वामपंथियों की साजिश, जिम्मेदार होती है। हर हिंसा, दंगे, विरोध, जुलूस के लिए पीएफ़आई (PFI), विदेशी साजिश जिम्मेदार होती है। आक्सीजन की कमी से बच्चे मरें तो अगस्त महीना जिम्मेदार होता है।
जिम्मेदार ढूँढने की सारी ज़िम्मेदारी आजकल हमारे खबरिया चैनलों ने अपने मजबूत कंधों पर ले लिया है। अब किसी भी घटना के लिए जिम्मेदार कोई भी व्यक्ति इनके पैने कैमरे से बच नहीं सकता। सुशांत सिंह की आत्महत्या का जिम्मेदार कौन है, इसका पता लगाने में बेचारे चैनलों के मुंह से फेन निकल गया।
वैसे तो हमारे महान देश की परम्परा ही रही है जिम्मेदारी दूसरों पर डालकर खुद को जिम्मेदारी से मुक्त करना। यहाँ तक कि माँ-बाप तक अपनी जिम्मेदारी बच्चों पर डालने को हमेशा तत्पर रहते हैं। अक्सर कहते सुना जा सकता है कि बेटी का कन्यादान कर, उसके हाथ पीले करके जिम्मेदारी से मुक्त हूं, तब जाकर सकून मिलेगा। या बेटे के सिर पर जिम्मेदारी सौंप कर इस मोह-माया से मुक्त हूँ तब शान्ति मिलेगी। सोचिए जिस देश में जिम्मेदारी डालने के लिए मां-बाप, अपने सगे बच्चों तक नहीं बख्शते, वहां कोई और जिम्मेदार होने से कैसे बच सकता है?
हलकान मीडिया सुशांत सिंह की मौत का जिम्मेदार ढूंढते - ढूंढते, बेचारे सुशांत को ही चरसी साबित कर चुकी है। चरस की बात आते ही, चरस के जिम्मेदार ढूंढने लगी और हफ्तों-महीनों की कैमरातोड़ मेहनत के बाद पहले रिया चक्रवर्ती को जिम्मेदार ठहराया। फिर ठहरकर, दीपिका आदि को जिम्मेदार ठहराते-ठहराते, सुशांत की मौत का जिम्मेदार भूल ही गई। बेचारी मासूम मीडिया अब लोगों को चरसी बनाने वाले जिम्मेदारों को ढूंढने में लगी है।
जिम्मेदार ढूँढने में मीडिया ही नहीं, हर जम्बू-द्वीप वासी बहुत ही निपुण हैं। हर अच्छी बात की ज़िम्मेदारी बार-बार लेने के लिए मरने मिटने को तैयार रहते हैं और हर बुरी चीज के लिए एक नहीं कईयों जिम्मेदार ढूंढ लेते हैं। कोई भी अप्रिय घटना हो, उसके जिम्मेदार को गर्दन से अच्छी तरह पकड़ लेते हैं। यहाँ तक कि अगर आप चाहें तो खिलाड़ी, खेल शुरू होने से पहले ही, आपको बता देंगे कि हारने का जिम्मेदार कौन-कौन खिलाड़ी या कारण हैं।
देशवासियों में जिम्मेदार ढूँढने की किस उच्चकोटि की क्षमता है, इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि कुछ साल पहले जब किसानों की आत्म-हत्या का मुद्दा उठा तो नेताओं ने किसानों की इन आत्महत्याओं के लिए किस-किस को जिम्मेदार ठहराया। उत्तर मुंबई का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद शेट्टी ने इसके लिए फैशन को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि, सब किसानों की आत्महत्या, बेरोजगारी और भुखमरी के कारण नहीं होती। एक फैशन सा चल निकला है। यह एक चलन हो गया है। तो एक दूसरे नेता श्री अनिल विज ने कहा कि राहुल गांधी के भड़काऊ भाषणों के कारण ही किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को तो गेंहू व चावल की फसल का फर्क ही नहीं पता।
एक तीसरे नेताश्री, मध्य प्रदेश के बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा ने कहा, ''... कुछ लोग जिन्होंने नंबर दो पैसे बनाए, कर्ज उठाया और दारू पी, इन्होंने किसानी को बदनाम किया। मरते वो किसान हैं, जो काम कम और सब्सिडी चाटने का कारोबार ज्यादा करते हैं।'' तो चौथे नेताश्री भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता और रायपुर उत्तर विधानसभा के विधायक श्रीचंद सुंदरानी ने कहा कि मानसिक असंतुलन के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं। पांचवे नेताश्री सांगोद से भाजपा के विधायक हीरालाल नागर ने कहा कि राजस्थान में किसान मुआवजे के लिए आत्महत्या करते हैं। इससे भी बड़ी बात तो केद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कही कि देश में ज्यादातर किसानों की मौत प्रेम-प्रसंग, दहेज और नपुंसकता के चलते हो रही है।
तो आप देखेंगे कि एक ढूंढो, हजार जिम्मेदार मिलते हैं। बस ये मत पूंछना कि मुसलमानों की लिंचिंग का जिम्मेदार, दलितों के उत्पीड़न का जिम्मेदार, बेरोजगारी बढ़ने का जिम्मेदार, नौकरी छूटने का जिम्मेदार, महंगाई बढ़ने का जिम्मेदार, रुपया-जीडीपी गिरने का जिम्मेदार, दहेज हत्या - भ्रूण हत्या का जिम्मेदार, समाज में बढ़ते अपराध का जिम्मेदार, पुलवामा ब्लास्ट का जिम्मेदार कौन है? सुशान्त सिंह की आत्महत्या का जिम्मेदार ढूँढने के लिए, दिन-रात एक करने वालों ने आजतक रोहित बेमुला की हत्या का एक भी जिम्मेदार नहीं ढूंढा।