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मनोज जानी

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गांधीछाप की आशा ! सब मिल करें तमाशा !!

गांधी जयंती का वार्षिक तमाशा, एक ऐसा दिन है जब भारत सामूहिक रूप से महात्मा गांधी के सिद्धांतों, शांति, सादगी और अहिंसा का सम्मान करने का दिखावा करता है. जबकि शेष वर्ष में उनका दैनिक जीवन गांधी जी के सिद्धांतों के उलट ही रहता है. वास्तव में यह पाखंड और प्रतीकात्मकता का एक उल्लेखनीय दिन है, क्योंकि राष्ट्र, चयनात्मक भूलने की बीमारी के भव्य प्रदर्शन में एकजुट होता है. जैसे ही 2 अक्टूबर को सूरज उगता है, लाखों भारतीय अपनी नींद से जागते हैं, अपने प्राचीन सफेद- खादी कपड़े पहनते हैं. यह रंग पवित्रता का पर्याय है, हालांकि पहनने वालों के कार्य, पवित्र होने के अलावा कुछ और कुछ भी हैं.

लोग विभिन्न सरकारी कार्यालयों, स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर इकट्ठा होते हैं, हाथों में फूलों के गुलदस्ते और किसी और के लिखे भाषण के साथ, वे सभी उस व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने के लिए तैयार होते हैं, जिसने सत्य, अहिंसा और सरल जीवन का समर्थन किया था. सभी लोग उत्सव में भाग लेते हैं, भले ही अपने अनूठे तरीके से। वे काम से एक दिन की छुट्टी लेंगे, लेकिन केवल गांधी जयंती के लिए, जैसे कि गांधीवादी मूल्यों का पालन करने के लिए हर साल केवल 24 घंटे की आवश्यकता होती है। बाकी समय, यह आधुनिक उपभोक्तावाद के रंग में डूब जाते हैं।

ऐसे देश में जहां लोग रिश्वत लेने-देने में जरा भी संकोच नहीं करते। जहां भ्रष्टाचार, असहिष्णुता और हिंसा अक्सर सर्वोच्च होती है, वहाँ गांधी जयंती एक ऐसा दिन होता है जब औसत नागरिक विरोधाभासों का स्वामी बन जाता है। अचानक सत्य-अहिंसा और सदाचार का चैंपियन बन जाता है। ऐसा लगता है जैसे उनका मानना ​​है कि गोल चश्मा पहनने और "बापू" का नाम जपने से उन्हें अपने दैनिक दुष्कर्मों से मुक्ति मिल जाएगी।

गांधी जयंती राजनेताओं के लिए चमकने का अवसर है। हम गांधी समाधि पर राजनेताओं की वार्षिक तीर्थयात्रा के गवाह बनते हैं, जहां वे पुष्पांजलि अर्पित करते हैं, घड़ियाली आंसू बहाते हैं, और फिर तुरंत अपने कार्यालयों में लौटकर गलाकाट राजनीति और सत्ता संघर्ष में शामिल हो जाते हैं। राजनेताओं को गांधी की प्रतिमाओं पर माला चढ़ाकर, गांधी के आदर्शों के बारे में शानदार भाषण और शांति-अहिंसा का उपदेश देते देखते हैं।

वही व्यक्ति जो नियमित रूप से विरोधियों पर कीचड़ उछालने, राजनीतिक झगड़ों और भ्रष्टाचारों-घोटालों में, दंगा-फसाद कराने में लगे रहते हैं। उस दिन ईमानदारी, शांति, सद्भाव और अहिंसा के बारे में भाषण देते हैं। जिन्होंने विभाजनकारी बयानबाजी और सांप्रदायिक राजनीति पर ही अपना कैरियर बनाया है। वे इतनी संजीदगी से ऐसा करते हैं कि आपको लगेगा कि बस गांधी की मूर्ति के बगल में खड़े होने भर से उनकी कलंकित प्रतिष्ठा जादुई रूप से साफ हो गई। हमें गांधी जी के प्रति दिखावा करने की देश की उल्लेखनीय क्षमता की सराहना करनी चाहिए।

गांधीछाप पसंद करने वाले, गांधी जयंती पर क्या क्या तमाशे करते हैं, आइए इसे भी देखते हैं। सबसे पहले बात करते हैं आज के फैशन उद्योग की। जो गांधी-प्रेरित कपड़ों की श्रृंखला, गांधी चश्मा, गांधी धोती- गांधी टोपी और चरखा-मुद्रित सामान के साथ तैयार रहता है। गांधी जयंती पर, आप लोगों को खादी के कपड़े पहने, चरखे के साथ सेल्फ़ी लेने और गांधी के प्रतिष्ठित गोल चश्मे से खुद को सजाते हुए देखेंगे, जबकि उनके हाथ में नवीनतम स्मार्टफोन होंगे, ब्रांडेड जूते, खादी से लेकर चश्मा तक ब्रांडेड होते हैं। बिल्कुल विरोधाभासी। ये लोग गांधीवादी पोशाक के बावजूद, सादगी अपनाने की तुलना में अपने "आध्यात्मिक" अनुभव को फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने में अधिक रुचि रखते हैं। गांधी के विचारों को रीयल में अपनाने की जगह गांधी पर रील बनाने पर सारा फोकस रहता है।

अब थोड़ा गांधी जयंती उत्सव की बात कर लेते हैं। बॉलीवुड सितारे, बड़े-बड़े पूंजीपति, प्रसिद्ध सेलिब्रेटी, प्रतिष्ठित हस्तियां और कॉर्पोरेट दिग्गज, जो आलीशान कोठियों में रहते हैं, शानदार जिंदगी जीते हैं, बड़ी-बड़ी वातानुकूलित कारों में चलते हैं, महंगे-महंगे गजेट्स प्रयोग करते हैं, डिजायनर कपड़े पहनते हैं, जो उस मितव्ययी जीवन शैली के बिल्कुल विपरीत हैं, जिसकी गांधी ने वकालत की थी। वे भौतिकवाद के साक्षात अवतार, डिजाइनर पोशाक पहने, वातानुकूलित एसयूवी गाड़ियों से निकलकर, अचानक फोटो-ऑप के लिए आते हैं, और एक दिन के लिए गांधीवादी मूल्यों के चैंपियन बन जाते हैं। चरखे के साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं और गांधीवादी मूल्यों के बारे में कविता करते हैं। हमेशा हिंसा और उपभोक्तावाद का महिमामंडन करने वाली फिल्मों का प्रचार करने वाले, गुटका और शराब तक बेंचने वाले सितारे, अचानक शांति-अहिंसा और सादगी की प्रतिमूर्ति बन जाते हैं।

आइए अब उन कॉर्पोरेट कंपनियों की बात करते हैं, जो गांधी जयंती का फायदा उठाकर अपने माल की बिक्री बढ़ाती हैं। लक्जरी कारों से लेकर लेटेस्ट मोबाइल फोन तक सब कुछ बेचने और प्रचारित करने के लिए गांधी की छवि का इस्तेमाल करती हैं। बड़े-बड़े मॉल में, आनलाइन स्टोर्स पर, "गांधी सेल्स" और "फ्रीडम डिस्काउंट्स" देखेंगे, जिसमें व्यवसायी उस दिन अधिकतम लाभ कमाने की कोशिश करते हैं। एसा लगता है कि जो व्यक्ति तपस्या और सादगी का जीवन जीता था, उसने उपभोक्तावाद का ही समर्थन किया होगा। एसा लगता है कि रियायती इलेक्ट्रॉनिक्स और डिजाइनर कपड़े बेचना ही गांधीजी का सम्मान करने का सबसे अच्छा तरीका है। इन सेल्स में महंगे गैजेट और ब्रांडेड कपड़े, लक्जरी कारों को खरीदना ही जैसे सबसे बड़ा "शांतिपूर्ण प्रतिरोध" और “गाँधीवादी मूल्य” हों।

गांधी जयंती पर स्वच्छता के दौरे पड़ने की विडंबना को कैसे भूल सकते हैं। हमलोग गांधी प्रतिमा का सम्मान करते हैं, उसे खूब लग्न से साफ करते हैं और उस पर फूलों की माला चढ़ाते हैं। दूसरी तरफ हम गंदगी फैलाने, सड़कों पर कूड़ा फैलाने, इधर-उधर थूकने में तनिक संकोच नहीं करते। जैसे कि स्वच्छता केवल गांधी की मूर्तियों के लिए और सिर्फ गांधी जयंती के लिए आरक्षित हो। घर में खुद से बेडशीट भी न बदलने वाले लोग, गांधी जयंती की भावना में बहकर, सफाई अभियान चलाते हैं। सड़कों पर पहले कूड़ा-कचरा डालेंगे, फिर फ़ोटो-विडिओ बनाते हुए साफ करेंगे।

उधर सोशल मीडिया योद्धाओं का कहना ही क्या? प्रोफ़ाइल में गांधीजी की फ़ोटो लगाकर, फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर गांधीजी के प्रेरणादायक उद्धरण शेयर कर-करके क्रांति किए रहते हैं। भले ही उन उद्धरणों का न उन्हे मतलब पता होता है, न ही उनके दैनिक जीवन में उसका कोई वास्ता होता है। मीडिया सर्कस तो अलग ही लेवल का होता है। समाचार चैनल गांधीजी के जीवन पर विशेष कार्यक्रम प्रसारित करते हैं, जिसमें स्वतंत्रता, न्याय, सत्य, अहिंसा और बंधुता के लिए उनके संघर्ष पर प्रकाश डालते हैं। यही समाचार आउटलेट साल के अन्य 364 दिनों में अक्सर सनसनीखेज और फर्जी खबरें फैलाते रहते हैं, दिन-रात हिन्दू-मुस्लिम, सांप्रदायिक बहसे करते रहते हैं।

इसलिए, जब आप भारत में गांधी जयंती के भव्य समारोहों को देखें, तो विडंबना की सराहना जरूर करें। यह एक ऐसा दिन है जब लोग गांधीजी का चश्मा तो पहनते हैं, लेकिन उनका दृष्टिकोण नहीं। लोग खादी तो अपनाते हैं लेकिन गांधी के सिद्धांत नहीं। गांधी जयंती: वर्ष में एक दिन एसा होता है, जब भारत सामूहिक रूप से जो उपदेश देता है, उसका अभ्यास करना भूल जाता है। 

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आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
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स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
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