आजकल हमारा देश महान हो गया है। चार साल पहले तक महान नहीं था, नहीं तो मेरे जैसे फालतू लोग, अदने लोग कैसे पैदा हो पाते? यह बात तो हमारे प्रधान सेवक भी विदेशों में जाकर कन्फ़र्म कर चुके हैं कि उनके प्रधानसेवक बनने से पहले, देशवासियों को, खुद को भारतीय कहने में शर्म महसूस होती थी। लेकिन आजकल मेरा भारत महान हो गया है। यहाँ की हर चीज महान हो गयी है। यहाँ के बत्तख तैरने से आक्सीजन निकालने वाले नेता महान, सबरीमाला में महिलाओं के जाने से बाढ़ आने का ज्ञान देने वाले अफसर महान, राम-रहीम और आशाराम जैसे बलात्कारी बाबा महान, पत्थरो की मूर्तियों को सुई लगाने वाले डाक्टर महान, नोटों में चिप ढूँढने वाले पत्तलकार सब महान हो गए हैं।
लाला की दुकान से लेकर शिक्षा की दुकान तक महान। पर्वत महान, सागर महान, नदियां महान और नदियों में गंदगी फैलाने वाले महान। नदियों को साफ करने के नाम पर सरकारी खजाना साफ करने वाले मंत्री-नेता महान। यहाँ के नाले महान। नालों से निकलने वाली उज्ज्वला गैस महान। गैस के आविष्कारक महान। गौरक्षक महान और लिंचिंग भी महान। मीडिया महान, उसके मालिक भी महान। इस देश का जनतंत्र महान और इन सब को अपनी पीठ पर ढोने वाली जनता भी महान।
तो अब, जब देश और उसकी तमाम सजीव-निर्जीव चीजें महान हो गयी हैं, तो फिर अब हम अदने कहाँ रह गए? वैसे भी महान होना तो हम भारतीयों का जन्मसिद्ध अधिकार है। कहा जाता है की दुनिया में तीन तरह के महान होते हैं। पहला अव्वल दर्जे के महान। ये पैदा ही महान होते हैं। इनको महान बनने के लिए कुछ करने की जरूरत ही नहीं होती। ये जेनेटिकली महान होते हैं। ये मुँह में महानता का चम्मच लेकर पैदा होते हैं। और इनका जीवन ही महान-महान पदों पर आसीन होने के लिए होता है।
किसी भी घटिया काम से इनकी महानता में कोई बट्टा नहीं लगता। इस श्रेणी के महान लोग, अगर नेता बन जाएँ तो उनकी महानता के लिए महानता भी कम पड़ जाती है। फिर चाहे ये देश में समस्यायें पैदा करें, इमरजेंसी लगाएँ, घपले-घोटाले से तहलका करें या हिन्दू-मुस्लिम दंगे कराएं। इनकी महानता में रत्ती भर भी कमी नहीं आती। क्योंकि ये अव्वल दर्जे के जन्मजात महान होते हैं।
दोयम दर्जे के महान वो होते हैं जो कुछ करके महान बन जाते हैं। दोयम दर्जे के इसलिए क्योंकि अगर महान बनने के लिए कुछ करना पड़े तो यह महानता का अपमान नहीं तो और क्या है। एसे महान, समाज और देश के लिए दिन रात काम करते रहते हैं, तब जाकर लोग उन्हें महान मानते हैं।
सोयम यानी तीसरे दर्जे के महान वो होते हैं, जो न महान पैदा होते हैं, और न ही महानता का कोई काम करने की कोशिश ही करते हैं। बल्कि मरने के बाद उनके चेले-चपाटे उनको महान घोषित कर देते हैं। इतने तरह के महानों में अगर किसी ने गलती से पूंछ लिया कि भई फलां सज्जन ने एसा क्या काम किया था कि वो महान हो गए हैं। तो तुरन्त ही उनके समर्थक बतायेंगे कि वह महान हैं, बस! कुछ करने से ही आदमी महान बन जाता तो हर गली मोहल्ले में महानों की लाइन लग जाती।
अब इतनी तरह की महानताओं के बाद भी कोई गया-गुजरा बच जाता है, तो हमारे महान लोग उनको लौह पुरुष घोषित कर देते हैं। वैसे पाषाण युग से लेकर भारतीय शर्म युग तक, (आजकल गर्व युग चल रहा है।) भले ही लोहे की बहुत उपयोगिता थी, लोगों के जीवन के लिए लोहा आवश्यक था, उसकी अहमियत होती थी। तब लोगों ने महापुरुषों के समकक्ष लौह पुरुषों को माना था। लेकिन आज के जियो युग में आउटडेटेड लोहे को कौन पूंछता है। आजकल लोहे तो कोनों में पड़े मार्गदर्शक बने जंग खा रहे हैं। अब तो टाइटेनियम-पुरुष और टंगस्टन-पुरुष जैसे मजबूत धातु-पुरुषों का जमाना है। जो अपने साथ-साथ देश को भी महान बनाते हैं।
अगर हम अब भी वही पुराने घिसे-पिटे लौह-युग में पड़े रहे तो फिर कम-से-कम मुझसे यह मत कहना कि हम चीन से क्यों पिछड़ते जा रहे हैं। अब तो हमने चीन का भी लोहा खतम करवा दिया, उनसे लोहे की मूर्तियाँ बनवाकर। विश्वगुरु बनना है तो हम लोगों को लोहे के पिछड़ेपन से बाहर निकलना पड़ेगा। रजत-पुरुष, स्वर्ण-पुरुष, टाइटेनियम-पुरुष और टंगस्टन-पुरुष जैसी कीमती और मजबूत धातुओं तक जाना पड़ेगा। बल्कि इसके और आगे जाना पड़ेगा। इसमें महिलाओं को भी शामिल करना पड़ेगा। नहीं तो मनुवादी होने का ठप्पा लग जाएगा। लेकिन उनको सिर्फ रजत-महिला, स्वर्ण-महिला या डायमंड-महिला ही कहा जाए, क्योंकि उनको ये धातुएं ही पसन्द हैं।
तो इस महानता के दौर में अब आप भी महान पाठक बनकर, इस महान व्यंग्य को पढ़कर, महानता का अनुभव कीजिये। क्योंकि महानता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।