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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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टेक्निकल लोचा....... (व्यंग्य)

हमारे देश में तरह तरह के लोचे होते रहते हैं। कभी केमिकल लोचा हो जाता है तो कभी टेक्निकल लोचा। राजनीतिक और धार्मिक लोचे तो आए दिन होते ही रहते हैं। वैसे लोचा करने को लुच्चई कहते हैं कि नहीं ये नहीं पता। लेकिन इतना जरूर पता है कि लोचा और लुच्चई एक दूसरे के सगे-सम्बन्धी जरूर हैं और दोनों हमारे देश में बहुतायत में पाये जाते हैं। राजनीतिक और धार्मिक लोचे, लोगों के दिमाग में ही केमिकल लोचा पैदा कर देते हैं, और फिर लोग, लुच्चई पर उतर आते हैं।

इधर हमारे देश कि जीडीपी गिर गई। हार्वर्ड वालों को लगा कि यह राजनीतिक और अर्थशास्त्रीय कारण से गिरा है। तभी हार्ड-वर्क वाले मुनिश्रेष्ठ अवतरित हुये और उवाचे कि जीडीपी सरकार की नीतियों के कारण नहीं टेक्निकल कारण से गिरी है। वैसे हमारे देश में बहुत सी चीजें गिरने में अव्वल हैं। रुपये की कीमत बहुत दिनों से गिरी हुई है। बहुमत में होती हुई भी, सरकारें सिर्फ टेक्निकल लोचे की वजह से गिर जाती हैं। और टेक्निकल लोचे की वजह से ही, एक दिन में ही दूसरी बहुमत की सरकारें बन भी जाती हैं।

इस असार संसार में अगर कुछ भी सत्य है, तो वो है टेक्निकल लोचा। सर्व-व्यापी, सर्व-शक्तिमान। आइये आपके ज्ञान चक्षु खोलते हैं। आजकल अस्पतालों में जो बच्चे मर रहे हैं, उसका कारण सिर्फ और सिर्फ टेक्निकल लोचा है। विज्ञान में आक्सीजन नाम की एक गैस होती है, जिसे गाय नामक प्राणी छोड़ती थी, एसा हमारे स्वयंभू वैज्ञानिक उवाचते थे। लेकिन कुछ देशद्रोही मैकाले शिक्षित अपने को डाक्टर बोलने वाले नामुराद लोग, इस आक्सीजन को फैक्टरी में बनाने लगे। टेक्नलोजी के द्वारा। इस तरह आक्सीजन ना मिलना, पूरा टेक्निकल कारण हो गया, जिसके कारण लोग अस्पतालों में मर रहे हैं। अगर गायों से सीधे आक्सीजन दी जाती तो कोई नहीं मरता।

लोग ट्रेन दुर्घटनाओं में मर रहे हैं तो इसका भी कारण सिर्फ टेक्निकल है। आप को तो पता ही है कि रेल की टूटी पटरियों पर ट्रेन चलाना टेक्निकल गलती होती है, और इसलिए ट्रेन दुर्घटनाओं में लोगों का मरना, पूरी तरह टेक्निकल कारण की वजह से होता है। इसमे सरकार या रेलवे विभाग की कोई गलती नहीं होती। अब यह मत पूंछना कि पटरियाँ टूटने का क्या कारण है?

अब लोग गाय के नाम पर सरे-राह, या भीड़-भरी ट्रेन में किसी को भले मार दें, लेकिन मौत तो सिर्फ टेक्निकल रीज़न से ही होती है। पीड़ित का हृदय धड़कना बंद कर देना, गुर्दे, लीवर, मस्तिष्क आदि काम करना बंद कर देते हैं, और इस टेक्निकल रीज़न से पीड़ित मर जाता है। विश्वास न हो तो देख लीजिए, पहलू-खान के सभी आरोपियों को सीआईडी ने क्लीन-चिट दे दी। अब तो मानेंगे ना, कि कत्ल भी सिर्फ टेक्निकल लोचे होते हैं, कोई भी इसका दोषी नहीं होता। इसलिए सामूहिक हत्याओं और दंगे में मरने वालों का कभी कोई कातिल नहीं निकलता।

 देश में महंगाई का बढ़ना भी सिर्फ टेक्निकल कारण से होता है, क्योंकि प्राइस इंडेक्स के कैलकुलेशन में टेकनीक होती है। इसलिए महँगाई बढ़ना एक टेक्निकल लोचा है। पेट्रोल की कीमत बढ़ाने में सरकार के टैक्स वसूलने की टेकनीक होती है। इसलिए ये पेट्रोल का दाम बढ़ना भी पूरी तरह टेक्निकल लोचा है।

इस चराचर संसार में जो भी जीव-निर्जीव के साथ होता है, घटता है, सब कुछ ना कुछ टेक्निकल कारण से ही होता है। महंगाई बढ़ना, ट्रेन दुर्घटना में मौत, अस्पताल में मौतें, दंगों में मौतें, सब टेक्निकल लोचे की वजहों से ही होती हैं। जीडीपी गिरने में भी टेक्निकल लोचा हो सकता है, लेकिन सिर्फ ईवीएम में टेक्निकल लोचा नहीं हो सकता, मुनिवर उवाच! शायद जनता के दिमाग में ही केमिकल लोचा हो गया है।

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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