चन्द चेहरे जो, तमतमाए हैं।
आइने शाह को, दिखाये हैं। (1)
साजिशें देखना, हवाओं की,
आंधियों में, दिये जलाए हैं। (2)
संग हैं वो, सदा हुकूमत के,
वक्त को खूब, जो भुनाये हैं। (3)
सिर्फ नारों में, वो चुनावों में,
चाँद तारे भी, तोड़ लाये हैं। (4)
ओढ़कर देशभक्ति, की चादर,
स्याह करतूत ही, छुपाये हैं। (5)
शोषितों के लिए, जुबां खोले,
नक्सली बस उन्हें, बताए हैं। (6)
गैर से, क्या गिला, करे कोई,
ज़ख्म अपनों ने ही, लगाए हैं। (7)
रो रहे हैं सभी, अपनी-अपनी,
किस्मतों के सभी, सताये हैं। (8)
आशियाँने बचा ले, सब अपने,
बादशा ने दिये, जलाए हैं। (9)
दोस्त-दुश्मन, सभी समझते हैं,
बाल क्या धूप में, पकाए हैं। (10)
बेगुनाही हुई, खता ‘जानी’,
कायदे ये नए, बनाए हैं। (11)