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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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भ्रष्टाचार की जाति.......

वैसे तो हमारे देश में जाति, वो हकीकत है जिसे हम दिखाना भी नहीं चाहते और मिटाना भी नहीं चाहते। जब जातिगत आरक्षण की बात होती है तो हम जाति को नकारते हैं, जब शादी ब्याह की बात हो तो जाति तो क्या उसके अंदर गोत्र का भी सूक्ष्मदर्शी से अवलोकन कराते हैं। किसी का नाम पुंछते हैं तो आगे क्या ? ये पुंछना नहीं भूलते। जब जातिगत जनगणना की बात होती है तो विरोध करते हैं। दूसरी जाति में शादी ब्याह करने पर बच्चों को जानवरों की तरह काट डालते हैं। जाति भारतीय समाज में एसी चीज हो गयी है कि ना तो उगलते बनता है ना निगलते। लेकिन आजकल जाति फिर से एक बार चर्चा में है, क्योंकि इस बार इसको कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भ्रष्टाचार से जोड़ा है।

लेखक आशीष नंदी ने जयपुर के एक समारोह में कहा कि ‘भ्रष्टाचार करने वाले लोगों में से ज्यादातर लोग पिछड़े, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन जातियों से आते हैं, और जब तक यह स्थिति बनी रहेगी भारतीय गणतन्त्र बरकरार रहेगा।’ आज बहुत से लोग उनके पक्ष में तरह तरह के तर्क दे रहे हैं। लेकिन उन सबसे एक साधारण सवाल है कि क्या भारतीय गणतन्त्र, दलितों और पिछड़ों के भ्रष्टाचार कि वजह से कायम है? अगर भारतीय गणतन्त्र को बरकरार रखने का इतना आसान नुस्खा हमारे पास है, तो फिर हमें चिंता किस बात की? फिर यही बुद्धिजीवी बात-बात में, भारतीय गणतन्त्र खतरे में है, क्यों चिल्लाते रहते हैं?

दरअसल, हिंदुस्तान में, जाति ही अटल सत्य है, बाकी सब मिथ्या। हम हर चीज को जाति के नजरिये से ही देखते हैं। और इसमें मीडिया की भी बहुत भूमिका है। चार फरवरी के जनसत्ता में, गार्गा चटर्जी लिखते हैं कि, ‘जयपुर के अभिजन जमावड़े और उसके सगे सहोदरों से अगर दो सबसे भ्रष्ट नेताओं का नाम पूंछा जाता तो मुख्य प्रतिस्पर्धा मधुकोड़ा, ए राजा, मायावती और लालू प्रसाद यादव के बीच होती’। गार्गा साहब जयपुर के अभिजन का नाम लिए बगैर भी यही बात कह सकते थे। क्योंकि अकेले वही नहीं, 95 प्रतिशत मीडिया वही बात कहती। क्योंकि वे सभी उच्चवर्ग से ही हैं।

 बंगारु लक्ष्मण एक लाख की घूस लेते कैमरे पर आजतक चर्चा के मुख्य विषय हैं,  जबकि उसी पार्टी के दिलीप सिंह जुदेव को नौ लाख की घूस लेते हुये कैमरे पर लोग (उच्च वर्ग लोग व मीडिया) कभी भूले से भी याद नहीं करते। अकेले 71.36 अरब का घोटाला करने वाले सत्यम कंपनी के रामलिंगम राजू की जमानत कब हो गयी इसे मीडिया ने समाचार में भी नहीं दिखाया। कनिमोझी आदि के साथ में होने के बावजूद 2 जी घोटाले में ए राजा का नाम सभी को याद है, जब कि कनिमोझी शायद ही कभी याद आयें। भ्रष्टाचार के मामलों में कोर्ट से दोष सिद्ध हो चुके सुरेश कलमाड़ी, ओम प्रकाश चौटाला, अजय चौटाला, पंडित सुखराम का नाम गार्गा साहब या मीडिया को याद नहीं आएगा। लालू तो याद रहेंगे, लेकिन जयललिता याद नहीं होंगी।   

 अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में पेट्रोल पंप घोटाला जो की कोर्ट में सिद्ध हुआ था, के बावजूद, अटल बिहारी बाजपेयी ईमानदार थे। कफ़न, ताबूत और कई घोटाले भले बाजपेयी के राज में चर्चित रहे, परंतु फिर भी बाजपेयी ईमानदार थे। 2जी घोटाला, कामन वेल्थ घोटाले, कोयला घोटाला आदि बड़े बड़े घोटालों के बाद भी मनमोहन सिंह और शीला दीक्षित बहुत ईमानदार हैं। मायावती पर केवल घोटालों के आरोप होने से वह बहुत बड़ी भ्रष्ट हो गयी। क्यों?  क्या भ्रष्टाचार भी केवल जाति के आधार पर तय होगा।

 इस मानसिकता को देखकर ही लोकपाल में आरक्षण का मुद्दा भी प्रासंगिक लगता है। जब दलित वर्गों ने लोकपाल मे आरक्षण माँगा था, तो मीडिया और अन्ना मण्डली ने कहा था की भ्रष्टाचार कोई जाति के आधार पर थोड़े ही होता है। लेकिन उन सबका नंदी साहब को मौन समर्थन, यह सिद्ध करता है कि भ्रष्टाचार कि जाति होती है......   

मनोज जानी

05.02.2013 

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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