Menu

मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

header photo

सब पुराने भरम मिटाने हैं

सब पुराने भरम मिटाने हैं 
गीत अब कुछ नए सुनाने हैं 
एक नए दौर की ये आहट है
अब नए रास्ते बनाने हैं

देखो कितनी बदल गई दुनिया
जख्म अभी वही पुराने हैं 
तुम बढ़ो हम बढें सभी मिलकर 
अब कदम से कदम मिलाने हैं 

कौन रोकेगा कारवां को अब
दांव पर लग गए दीवाने हैं 
आदमी आदमी से नफरत क्यों 
सब बराबर हमें बनाने हैं 

अपनी आदत सभी बदल लें अब 
यह नए दौर के तराने हैं 
देख कर जांच कर दवा देंगे 
मर्ज जड़ से हमें मिटाने हैं 

कुछ नया हम करें चलो मिलकर 
अब नए दांव आजमाने हैं 
दर्द की दास्तां कुछ ऐसी है 
जो न सुन पाए वही सुनाने हैं

दूर अपना रहे न अब कोई
हमसे बिछड़े हैं जो मिलाने हैं 
अपनी किस्मत खुद ही बनाएंगे 
वो जो वादे थे सब निभाने है।

– तनवीर हसन

Go Back

Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

450;460;69ba214dba0ee05d3bb3456eb511fab4d459f801450;460;1b829655f614f3477e3f1b31d4a0a0aeda9b60a7450;460;f8dbb37cec00a202ae0f7f571f35ee212e845e39450;460;946fecccc8f6992688f7ecf7f97ebcd21f308afc450;460;fe332a72b1b6977a1e793512705a1d337811f0c7450;460;6b3b0d2a9b5fdc3dc08dcf3057128cb798e69dd9450;460;7329d62233309fc3aa69876055d016685139605c450;460;427a1b1844a446301fe570378039629456569db9450;460;9cbd98aa6de746078e88d5e1f5710e9869c4f0bc450;460;dc09453adaf94a231d63b53fb595663f60a40ea6450;460;eca37ff7fb507eafa52fb286f59e7d6d6571f0d3450;460;d0002352e5af17f6e01cfc5b63b0b085d8a9e723450;460;60c0dbc42c3bec9a638f951c8b795ffc0751cdee450;460;0d7f35b92071fc21458352ab08d55de5746531f9450;460;7bdba1a6e54914e7e1367fd58ca4511352dab279450;460;f702a57987d2703f36c19337ab5d4f85ef669a6c450;460;cb4ea59cca920f73886f27e5f6175cf9099a8659

आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

400;300;02765181d08ca099f0a189308d9dd3245847f57b400;300;648f666101a94dd4057f6b9c2cc541ed97332522400;300;133bb24e79b4b81eeb95f92bf6503e9b68480b88400;300;e167fe8aece699e7f9bb586dc0d0cd5a2ab84bd9400;300;e1f4d813d5b5b2b122c6c08783ca4b8b4a49a1e4400;300;0fcac718c6f87a4300f9be0d65200aa3014f0598400;300;b6bcafa52974df5162d990b0e6640717e0790a1e400;300;7a24b22749de7da3bb9e595a1e17db4b356a99cc400;300;b158a94d9e8f801bff569c4a7a1d3b3780508c31400;300;9180d9868e8d7a988e597dcbea11eec0abb2732c400;300;76eff75110dd63ce2d071018413764ac842f3c93400;300;bbefc5f3241c3f4c0d7a468c054be9bcc459e09d400;300;08d655d00a587a537d54bb0a9e2098d214f26bec400;300;40d26eaafe9937571f047278318f3d3abc98cce2400;300;52a31b38c18fc9c4867f72e99680cda0d3c90ba1400;300;24c4d8558cd94d03734545f87d500c512f329073400;300;f5c091ea51a300c0594499562b18105e6b737f54400;300;2d1ad46358ec851ac5c13263d45334f2c76923c0400;300;ba0700cddc4b8a14d184453c7732b73120a342c5400;300;6b9380849fddc342a3b6be1fc75c7ea87e70ea9f400;300;f7d05233306fc9ec810110bfd384a56e64403d8f400;300;a5615f32ff9790f710137288b2ecfa58bb81b24d400;300;aa17d6c24a648a9e67eb529ec2d6ab271861495b400;300;7b8b984761538dd807ae811b0c61e7c43c22a972400;300;0db3fec3b149a152235839f92ef26bcfdbb196b5400;300;321ade6d671a1748ed90a839b2c62a0d5ad08de6400;300;f4a4682e1e6fd79a0a4bdc32e1d04159aee78dc9400;300;dde2b52176792910e721f57b8e591681b8dd101a400;300;611444ac8359695252891aff0a15880f30674cdc400;300;3c1b21d93f57e01da4b4020cf0c75b0814dcbc6d400;300;497979c34e6e587ab99385ca9cf6cc311a53cc6e400;300;dc90fda853774a1078bdf9b9cc5acb3002b00b19

हमसे संपर्क करें

visitor

897180

चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

400;300;6600ea27875c26a4e5a17b3943eefb92cabfdfc2400;300;acc334b58ce5ddbe27892e1ea5a56e2e1cf3fd7b400;300;639c67cfe256021f3b8ed1f1ce292980cd5c4dfb400;300;1c995df2006941885bfadf3498bb6672e5c16bbf400;300;f79fd0037dbf643e9418eb6109922fe322768647400;300;d94f122e139211ea9777f323929d9154ad48c8b1400;300;4020022abb2db86100d4eeadf90049249a81a2c0400;300;f9da0526e6526f55f6322b887a05734d74b18e66400;300;9af69a9bc5663ccf5665c289fc1f52ae6c1881f7400;300;e951b2db2cbcafdda64998d2d48d677073c32c28400;300;903118351f39b8f9b420f4e9efdba1cf211f99cf400;300;5c086d13c923ec8206b0950f70ab117fd631768d400;300;71dca355906561389c796eae4e8dd109c6c5df29400;300;b0db18a4f224095594a4d66be34aeaadfca9afb3400;300;dfec8cfba79fdc98dc30515e00493e623ab5ae6e400;300;31f9ea6b78bdf1642617fe95864526994533bbd2400;300;55289cdf9d7779f36c0e87492c4e0747c66f83f0400;300;d2e4b73d6d65367f0b0c76ca40b4bb7d2134c567

अन्यत्र

आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...