Menu

मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

header photo

Blog posts : "ब्यंग्य "

जालिम किसान और मासूम सरकार !!

ये जालिम किसान! दिनरात सरकार को करते रहते हैं परेशान। ये जालिम किसान! जो सरकार की शान पर बट्टा लगा देते हैं। रोज सरकार की कनपट्टी पर नई नई मांगों का कट्टा लगा देते हैं। बेचारी मासूम सरकार दो चार साल आराम से राज भी नहीं कर सकती इनके मारे। दो चार कानून भी नहीं बना सकती अपनी पसंद से। कोई मंत्री आजादी स…

Read more

अबकी बार ! बस कर यार !

जब से घोषित हुआ है चुनाव। वोटरों के बढ़ गए हैं भाव। वोटरों के लिए हर दिन त्योहार है। चारों ओर नारों की बौछार है। अबकी बार, फलां सरकार। अबकी बार, फलां सौ पार। बहुत हुआ बेरोजगारी की मार, अबकी  बार फलाने की सरकार। बहुत हुआ महंगाई की मार, अबकी बार फला पार्टी की सरकार। ये सब सुन-सुन कर मैं हो गया था लाचार…

Read more

बुरा न मानो...

होली में, बुरा न मानने की बोली, दिल में गोली की तरह लगती है। 'बुरा न मानो', हमारे देश में सदियों से चली आ रही बड़ी प्यारी धमकी है कि 'भइया, हम तो तुम्हारे साथ बुरा करेंगे, लेकिन तुम बुरा मत मानना’। यानी, मारेंगे भी और रोने भी नहीं देंगे। आजकल तो यह हालत हो गयी है कि अगर सरकार की किसी भी बात का बुरा …

Read more

गांधी के तीन बंदर !!

वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्यों के पूर्वज बंदर थे। लेकिन बहुत से मनुष्यों की हरकतें देखकर लगता है कि आदमी ही बंदरों का पूर्वज रहा होगा। हालांकि बंदरों का राजनीति, समाज और साहित्य में बहुत ही महत्व रहा है। बंदरों के ऊपर बने मुहावरे इसका प्रमाण हैं। बन्दर के हाथ में उस्तरा। बन्दर क्या जाने अदरक का…

Read more

गांधीछाप की आशा ! सब मिल करें तमाशा !!

गांधी जयंती का वार्षिक तमाशा, एक ऐसा दिन है जब भारत सामूहिक रूप से महात्मा गांधी के सिद्धांतों, शांति, सादगी और अहिंसा का सम्मान करने का दिखावा करता है. जबकि शेष वर्ष में उनका दैनिक जीवन गांधी जी के सिद्धांतों के उलट ही रहता है. वास्तव में यह पाखंड और प्रतीकात्मकता का एक उल्लेखनीय दिन है, क्योंकि रा…

Read more

जोगिरा सा रा रा रा रा … (होली विशेष- व्यंग्य)

निकल रही है महंगाई से, फाग में मुंह से झाग  
डीजल गैस के दाम ने देखो, पकड़ लिया है आग
जोगिरा सा रा रा रा रा …

बेगारी सुरसा के मुंह सी, दिन …

Read more

ठंडा मतलब.....

हमारे देश के लोग बहुत ही मतलबी होते हैं। अरे आप गलत मतलब निकाल रहे हैं, मतलबी का मतलब है, मतलब निकालने वाले ! यानि किसी बात का अर्थ समझने वाले। हमारे देश वासी, हर बात, हर घटना, हर चीज का अपना-अपना मतलब निकाल लेते हैं। केवल जनता ही नहीं, हमारे नेता, पत्रकार, बाबा, गुरु हो या गुरु घंटाल, सब अपना अपना …

Read more

. . . हैप्पी न्यू ईयर !! 2022

आप सभी को नए साल की बहुत बहुत बधाई। आखिर आपने साल भर कड़ी मेहनत मशक्कत करके  देश को भ्रष्टाचार के ऊपरी पायदानों पर रोके रखा। इतने सारे उतार चढ़ावों के बावजूद किसी भी तरह के भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आने दिया। कालाधन - कालाधन करने वालों का मुँह काला कर दिया। हम  सभी ने इसके लिए जान लगा दिया। अब हम लो…

Read more

आहत है, तो राहत है .... !! (व्यंग्य)

आदमी एक भावना प्रधान जीव होता है। उसमें भर भरके भावनाएं पायी जाती हैं, और ये भावनाएं भी बड़ी नाजुक, बड़ी भावुक, बड़ी कमजोर होती हैं। कब किस बात पर आहत हो जाएँ, पता ही नहीं चलता। बिल्कुल सावधानी हटी दुर्घटना घटी टाईप की ! भावनाएं आजकल ऐसी छुई मुई सी, नाजुक हो चली हैं कि आपने कुछ कहा नहीं कि ये आहत हुई !…

Read more

दम मारो दम.. .. मिट जाए गम ..

एक चुटकी गाँजे की कीमत आप क्या जानो, पाठक बाबू! एक चुटकी गाँजा, पीने वाले को जेल की सजा दिला सकता है, तो रोकने वाले अधिकारी को विदेश घूमने का मजा भी दिला सकता है। अगर सिस्टम ने एक चुटकी गांजे का दम मार लिया हो, तो तीन हजार किलो हाथ आए ड्रग को छोड़कर, 3 ग्राम गांजे की तलाश में दर-दर भटकने लगता है।…

Read more

प्रचार और प्रोपोगंडा, पॉजिटिविटी का फंडा।

       हिन्दी में दो मशहूर कहवाते हैं, पहली, पेट भारी, तो बात भारी। और दूसरी, पेट भारी, तो मात भारी। दोनों कहवातें आजकल सोलह आने सच हो रही हैं। पहली का अर्थ है की अगर पेट भरा हो, खाये अघाए हो तो, बड़ी -बड़ी बातें निकलती हैं। दूसरी कहावत का मतलब है कि ज्यादा खाए-अघाए होने से पेट ख़राब होने से बीमारी पै…

Read more

लोकतन्त्र का 'लीक'तंत्र !!

हमारा देश लोकतन्त्र की एबी'सीडी' सीखते हुये 'एमएमएस' काण्ड से आगे बढ़कर 'लीक'तंत्र तक पहुँच गया है। हमारा 'गण'तन्त्र तो पहले ही तांत्रिक नेताओं के चमत्कार से 'गन'तंत्र हो चुका है । 'लोक'तंत्र के शैशवकाल में नेताओं के सीडी लीक्स से ही काम चल जाता था, सीएजी रिपोर्ट लीक से ही सरकारें हिल जाया करती थी, क…

Read more

न्याय ही न्याय !

पिछले दशकों में जब से बाजार ने फला ही फला वाला विज्ञापन शुरू किया है, सब तरफ फला ही फला छाया हुआ है. बाजार में किधर से भी गुजर जाइये, रजाई ही रजाई, गद्दे ही गद्दे, तकिया ही तकिया, चद्दर ही चद्दर आदि फलाने ही फलाने के पोस्टर छाये रहते हैं. आजकल तो वैवाहिक साइटों पर, दूल्हे ही दूल्हे के विज्ञापन भी खू…

Read more

चलो गप्प लड़ायें, चलो गप्प लड़ायें….

गप्प लड़ाना हमारी महान सनातनी परम्परा रही है। आदिकाल से हमलोगों का गप्प लड़ाने में कोई सानी नहीं रहा है। अमीर हो या गरीब, कमजोर हो या पहलवान, गप्प लड़ाने में सब एक से बढ़कर एक। कहा जाए तो गप्प की एक संवृद्ध परंपरा हमारे देश में रही है, जो आजकल विदेशों तक फैल रही है। सास हो या पतोहू, ससुर हो या दामाद, जी…

Read more

जब तक कमाई नहीं, तब ढिलाई नहीं।

इस कोरोना ने, भारतीय बिजनेस-मैनो और सत्ताधारी नेताओं के लिए, आपदा में अवसर बना दिया है। व्यापारी हों या सत्ताधारी, सबको आपदा में अवसर दे रही है कोरोना महामारी। लोगों की नौकरियां खाकर, काम-धंधा छुडवाकर, कर्मचारियों की छटनी करवाकर, वर्क फ्रॉम होम के नाम पर काम के घंटे बढ़वाकर, दफ्तरों को मेंटेन करने के…

Read more

किसान कौन?

           आजकल आर्यावर्त में एक यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है कि किसान कौन है। बड़ा- बड़ा माइक उठाए, बहसोत्पादी लोग, इस सवाल का हल ढूँढने में लगे हैं कि किसान कौन है। यूं तो जिनके पास हल होता है, वही किसान प्रजाति का माना जा सकता है, लेकिन आजकल किसान के कंधों पर हल की जगह सवाल है, वो हल तो क्या ट्रैक्टर-…

Read more

जिम्मेदार की तलाश...

जब से खबरिया चैनलों का ‘रिपब्लिक’ हुआ है, तब से पब्लिक का ज्ञान, देश की ‘जीडीपी’ जैसा हो गया है। ‘व्हाट्सप्प’ यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कालरों ने, ‘जी’तोड़ मेहनत कर के सालों में दो जिम्मेदारों को ढूंढ निकाला है। एक हैं पूर्व प्रधानमंत्री, श्री जवाहरलाल नेहरू, और दूसरे हैं देश में कार्यरत पाकिस्तानी आतं…

Read more

एक चुटकी चरस .... ! (व्यंग्य)

एक चुटकी चरस की कीमत आप क्या जानो पाठक बाबू? भाषणबाजों के लिए ईश्वर का वरदान होती है एक चुटकी चरस... वोटरों को रोटी-पानी भुलवाकर, भावुक मुद्दों पे मतदान होती है एक चुटकी चरस... जनता को उसकी परेशानियाँ भुलवाकर, सम्मोहित करने वाली जादू की छड़ी होती है एक चुटकी चरस.... इज्जत से जीने की चाह रखने वालों के…

Read more

सर्वे की मारी, जनता बेचारी .......

हे कलियुगी पाठकों, इस कलयुग में अगर कुछ सत्य है, तो वो है सिर्फ और सिर्फ खबरिया सर्वे। अभी-अभी बादामगिरी खाकर दिमाग पर ज़ोर दिया तो यह दर्शन समझ में आया, कि इस क्षणभंगुर संसार में सर्वेगीरी के अलावा, सारा जगत मिथ्या है। जनता मिथ्या है, उसके मुद्दे मिथ्या हैं। समाज मिथ्या है, देश मिथ्या है, लोकतन्त्र …

Read more

निर्भरता में आत्मनिर्भर ...

मानव जब से इस पृथ्वी पर अवतरित होता है, तब से लेकर मरने तक बस आत्मनिर्भर बनने की कोशिश में लगा रहता है। क्योंकि पुरखों की जमात हमेशा से, आने वाली पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनने के मंत्र देती रही है। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए उकसाती रही है। लेकिन मनुष्य बचपन में माँ-बाप पर निर्भर रहता है, तो जवानी म…

Read more

20 blog posts

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

450;460;60c0dbc42c3bec9a638f951c8b795ffc0751cdee450;460;1b829655f614f3477e3f1b31d4a0a0aeda9b60a7450;460;7bdba1a6e54914e7e1367fd58ca4511352dab279450;460;eca37ff7fb507eafa52fb286f59e7d6d6571f0d3450;460;6b3b0d2a9b5fdc3dc08dcf3057128cb798e69dd9450;460;427a1b1844a446301fe570378039629456569db9450;460;946fecccc8f6992688f7ecf7f97ebcd21f308afc450;460;d0002352e5af17f6e01cfc5b63b0b085d8a9e723450;460;0d7f35b92071fc21458352ab08d55de5746531f9450;460;9cbd98aa6de746078e88d5e1f5710e9869c4f0bc450;460;69ba214dba0ee05d3bb3456eb511fab4d459f801450;460;dc09453adaf94a231d63b53fb595663f60a40ea6450;460;f8dbb37cec00a202ae0f7f571f35ee212e845e39450;460;fe332a72b1b6977a1e793512705a1d337811f0c7450;460;7329d62233309fc3aa69876055d016685139605c450;460;f702a57987d2703f36c19337ab5d4f85ef669a6c450;460;cb4ea59cca920f73886f27e5f6175cf9099a8659

आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

400;300;40d26eaafe9937571f047278318f3d3abc98cce2400;300;0db3fec3b149a152235839f92ef26bcfdbb196b5400;300;3c1b21d93f57e01da4b4020cf0c75b0814dcbc6d400;300;bbefc5f3241c3f4c0d7a468c054be9bcc459e09d400;300;321ade6d671a1748ed90a839b2c62a0d5ad08de6400;300;7a24b22749de7da3bb9e595a1e17db4b356a99cc400;300;e1f4d813d5b5b2b122c6c08783ca4b8b4a49a1e4400;300;648f666101a94dd4057f6b9c2cc541ed97332522400;300;ba0700cddc4b8a14d184453c7732b73120a342c5400;300;b6bcafa52974df5162d990b0e6640717e0790a1e400;300;e167fe8aece699e7f9bb586dc0d0cd5a2ab84bd9400;300;133bb24e79b4b81eeb95f92bf6503e9b68480b88400;300;a5615f32ff9790f710137288b2ecfa58bb81b24d400;300;aa17d6c24a648a9e67eb529ec2d6ab271861495b400;300;9180d9868e8d7a988e597dcbea11eec0abb2732c400;300;f5c091ea51a300c0594499562b18105e6b737f54400;300;f7d05233306fc9ec810110bfd384a56e64403d8f400;300;76eff75110dd63ce2d071018413764ac842f3c93400;300;dde2b52176792910e721f57b8e591681b8dd101a400;300;497979c34e6e587ab99385ca9cf6cc311a53cc6e400;300;611444ac8359695252891aff0a15880f30674cdc400;300;08d655d00a587a537d54bb0a9e2098d214f26bec400;300;7b8b984761538dd807ae811b0c61e7c43c22a972400;300;f4a4682e1e6fd79a0a4bdc32e1d04159aee78dc9400;300;52a31b38c18fc9c4867f72e99680cda0d3c90ba1400;300;b158a94d9e8f801bff569c4a7a1d3b3780508c31400;300;dc90fda853774a1078bdf9b9cc5acb3002b00b19400;300;6b9380849fddc342a3b6be1fc75c7ea87e70ea9f400;300;24c4d8558cd94d03734545f87d500c512f329073400;300;0fcac718c6f87a4300f9be0d65200aa3014f0598400;300;2d1ad46358ec851ac5c13263d45334f2c76923c0400;300;02765181d08ca099f0a189308d9dd3245847f57b

हमसे संपर्क करें

visitor

896001

चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

400;300;6600ea27875c26a4e5a17b3943eefb92cabfdfc2400;300;acc334b58ce5ddbe27892e1ea5a56e2e1cf3fd7b400;300;639c67cfe256021f3b8ed1f1ce292980cd5c4dfb400;300;1c995df2006941885bfadf3498bb6672e5c16bbf400;300;f79fd0037dbf643e9418eb6109922fe322768647400;300;d94f122e139211ea9777f323929d9154ad48c8b1400;300;4020022abb2db86100d4eeadf90049249a81a2c0400;300;f9da0526e6526f55f6322b887a05734d74b18e66400;300;9af69a9bc5663ccf5665c289fc1f52ae6c1881f7400;300;e951b2db2cbcafdda64998d2d48d677073c32c28400;300;903118351f39b8f9b420f4e9efdba1cf211f99cf400;300;5c086d13c923ec8206b0950f70ab117fd631768d400;300;71dca355906561389c796eae4e8dd109c6c5df29400;300;b0db18a4f224095594a4d66be34aeaadfca9afb3400;300;dfec8cfba79fdc98dc30515e00493e623ab5ae6e400;300;31f9ea6b78bdf1642617fe95864526994533bbd2400;300;55289cdf9d7779f36c0e87492c4e0747c66f83f0400;300;d2e4b73d6d65367f0b0c76ca40b4bb7d2134c567

अन्यत्र

आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...