आप सभी को नए साल की बहुत बहुत बधाई। आखिर आपने साल भर कड़ी मेहनत मशक्कत करके देश को भ्रष्टाचार के ऊपरी पायदानों पर रोके रखा। इतने सारे उतार चढ़ावों के बावजूद किसी भी तरह के भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आने दिया। कालाधन - कालाधन करने वालों का मुँह काला कर दिया। हम सभी ने इसके लिए जान लगा दिया। अब हम लोग करें भी तो क्या करें, हम लोगों को नंबर वन का चस्का जो लग गया है। चाहे भ्रष्टाचार हो या कुपोषण, बेरोजगारी हो या महँगाई, अमीरी हो या गरीबी, प्रवचन हो या लफ्फाजी, मन की बात हो या बेमन की, सब में नम्बर वन। हम कभी नम्बर दो के लिए बने ही नहीं। चाहे ऊपर से हो या नीचे से, रहेंगे नम्बर वन ही।
दुनिया के नम्बर वन अमीरों में हमारे देश के अमीर, दुनिया के नम्बर वन गरीबों-भूखों में भी हमारे ही देश के गरीब। सबसे ज्यादा जनता को लूटने में नम्बर वन। सबसे ज्यादा जनता को फ्री, टीवी, लैपटाप, गेंहू,चना, चावल बाँटने में भी नम्बर वन। जियो हमारे देश के लोगों, जिन्होने फ्री जियो की नम्बर वन लाइन लगाकर जिओ को ही नंबर वन बना दिया। वैसे लाइन लगाने में तो अब एक्सपर्ट हो गए हैं। अपनी कमाई को वापस पाने के लिए भी महीनों बैंकों के सामने दुनिया की नम्बर वन लाइन लगा चुके हैं। हमारे सारे प्रदेश, चार साल तक भ्रष्टाचार, चोरी, डकैती, हत्या –बलात्कार में नम्बर वन रहने के बाद, अचानक पाँचवे साल में, विकास में नम्बर वन बन जाते हैं, सरकारी विज्ञापनों में।
ये सरकारी विज्ञापन भी गज़ब के तिलिस्म होते हैं। पब्लिक को जब तेल के दाम बदहजमी करते हैं, गैस (के दामों) से पेट खराब हो, सब्जियों के दाम प्याज के आंसू रुला रहे हों या आलू-बैगन के दाम आम आदमी का भुरता बना रहा होता हो उस समय सरकारी विज्ञापनों में महँगाई पाताल लोक पहुँच चुकी होती है। समाज में हत्या बलात्कार बढ़ते रहते हैं, और सरकारी विज्ञापनों में प्रदेश क्राइम फ्री हो चुका होता है। लोगों की नौकरियां भले छूटती रही हों, लेकिन सरकारी विज्ञापनों में जनता रोजगार के भार से खुशहाल दिखती है। रोड पर चलने पर आप भले गड्ढों में गिरकर अपना हाथ-पैर तुड़वाते रहें, सरकारी विज्ञापनों में दूसरे देशों-प्रदेशों के चमकदार एक्सप्रेस हाइवेज की फोटो अपने प्रदेश का बताकर, आपको सुबह-शाम अखबारों-टीवी में चिढ़ाते दिख जाएंगे। हर सरकारी विज्ञापन में प्रदेश, नंबर वन की तरफ दशमलव फलां प्रतिशत बढ़ता रहता है।
ये सरकारी दशमलव की माया भी बहुत मायावी है। जनता भात-भात करके मर जाए, फ्री आटा-चावल के लिए लाइन लगाए, लेकिन सरकारी आँकड़ो में दशमलव फलां प्रतिशत गरीबी घटती रहती है। अपराध आए दिन बढ़ते रहते हैं और सरकारी आँकड़ों में दशमलव फलां प्रतिशत क्राइम घटता रहता है। लोग पकौड़ों की दुकान लगाने के लिए लोन लेने बैंकों के आगे गिड़गिड़ाते रहते हैं और सरकारी आँकड़ों में रोजगार दशमलव फलां प्रतिशत बढ़ता रहता है। ये सरकारी दशमलव भी बहुत कमाल की चीज है। अब समझ में आया कि दशमलव का आविष्कार भारतीयों ने क्यों किया था। जरूर सरकारी दबाव में हमारे गणितज्ञों ने दशमलव जैसे चमत्कारी चीज का आविष्कार किया होगा।
वैसे आविष्कार में हम भारतीयों का कोई मुक़ाबला नहीं है। हम वास्तव में आविष्कार में विश्व गुरु थे और भविष्य में भी अवश्य ही बने रहेंगे। हरी चटनी से कृपा बरसाने और समोसे से भाग्य बदलने का आविष्कार हमारे पूज्यनीयों ने ही किया है। पुत्र रत्न के लिए ‘आशीर्वाद’ देकर जेल जाने का आविष्कार भी हमी लोगों ने किया है। गाय से आक्सीजन छोड़वाने और बत्तख तैरने से आक्सीजन निकलवाने जैसे आविष्कार भला हमारे अलावा कौन कर सकता है। अंगुली की अंगूठी के रिमोट से सारे ग्रहों – नक्षत्रों को कंट्रोल करने का आविष्कार हमी लोगों ने किया है, जो कि नववर्ष में और फलने फूलने वाला है, जिसकी अग्रिम बधाई।
नोटबंदी की कतार से जिंदा बचे हमारे देश वासियों को बधाई, जिन्होने नोटबंदी सफल बनाकर कालेधन, आतंकवाद, नकली नोटों से मुक्ति पा ली है। बधाई तो अपने रोजगार और असली नोटों से मुक्ति पाने वालों को भी। कुछ देशवासियों को लाइन में लगकर जीवन से मुक्ति मिली तो कुछ को सरकारी क़ानूनों के विरोध में धरने प्रदर्शन करने पर जीवन से मुक्ति मिली। हाँ, किसानों को कृषक क़ानूनों से मुक्ति मिलने की बधाई। संसद को कानून बनाने के लिए बहस -परिचर्चा से मुक्ति मिलने की बधाई। सरकार को भी बधाई, जिसने जनता को कैशलेस करके नया कीर्तिमान बनाया। बड़े बड़े उद्योगपतियों को बधाई, जिनके ऋण, बैंको ने माफ़ कर दिया।
बधाई उन खोमचे-पटरी वालों को भी, जिन्हें अपनी दुकानदारी से मुक्ति मिली और अब नए साल को एंजॉय करने के लिए उनके पास समय ही समय है। नया साल उन मजदूरों को मुबारक, जिनका काम-धंधा छूट गया और अब वो कैशलेस होकर सरकार के कैशलेस अभियान के ब्राण्ड अंबेसडर बनकर, नया साल एंजॉय कर रहे हैं। उन मजदूरों को भी बधाई, जिनके काम-धंधे को लेकर सरकार इतनी चिंतित है कि उनके काम के घण्टे बढ़ा रही है। जनता को भी बधाई जिन्होने लाइन में खड़े होकर अपनी देशभक्ति सिद्ध की। हमारे भाग्यविधाताओं को भी बधाई, जो अपने विरोधियों को देशद्रोही सिद्ध कर सके। जनता को सपने दिखाने के लिए बधाई और जनता को सपने देखने के लिए बधाई। सभी को नए साल की बधाई।
नए साल में कुछ नया हो या ना हो, कुछ बदले या ना बदले, हम भारत के लोग कसम खाते हैं कि घर का कैलेंडर जरूर बदल देंगे। हमारे लिए तो यही बदलाव “आम आदमी पार्टी” के 'लोकपाल' वाले बदलाव से भी बड़ा है। वैसे आम आदमी के लिए कैलेण्डर बदलना, देश बदलने से कठिन काम है। आजकल वो हालत हो गयी है कि लोग 'आम आदमी' भी नहीं रहे। अब तो आम आदमी बनने के लिए टोपी पहननी भी पड़ती है और दूसरों को टोपी पहनानी भी पड़ती है। वैसे टोपी चाहे आम आदमी वाली हो या लाल, केसरिया, हरा, नीला -सफ़ेद। पहनने वाला आम जनता को टोपी पहनाने मे माहिर ही होता है।
तो बात कैलेण्डर बदलने की हो रही थी। अब कैलेण्डर ठहरा निरा निर्जीव। खुद बदलता ही नहीं। और इस कैलेंडर परिवर्तन के पुनीत कार्य में, बीवी से अधिक सहयोग कौन कर सकता है? क्योंकि बदलने के सभी अनुष्ठान वह बहुत ही लगन से कर सकती है। चाहे अपने कपड़े बदलना हों या गहने, अच्छे भले पर्दे बदलना हो या सजावट, पूरे घर को बदलने में वही माहिर होती है। वैसे बदलने के काम में हमारे नेता हमेशा अव्वल रहते हैं। चाहे अपने वादे से बदलना हो या अपनी बात बदलनी हो। हमेशा समय और जगह के हिसाब से बदलते रहते हैं। विपक्ष में रहने पर जो काम करने की कसमें खाते हैं, सरकार में जाते ही, सारे वादे बदल जाते हैं। कभी पार्टी बदल दी, कभी चुनाव क्षेत्र बदल दिया। बारहमासी बदलने वाले जीव होते हैं।
हैप्पी न्यू ईयर सीबीआई को भी, जिसको आजकल किसी भी घोटाले का सबूत ही नहीं मिलता, और मिलता भी है तो तभी जब सरकार चाहती है, नहीं तो सबूत भी अपने को सबूत नहीं सिद्ध कर सकता है। माननीय जजों को भी हैप्पी न्यू-ईयर, जिनके लिए अब रिटायरमेंट के बाद संसद और बहुत से आयोगों में जाने के अवसर भी खुल गए। डाक्टरों और अस्पतालों को बड़ा वाला हैप्पी न्यू-ईयर। कोविड-19 ने इनके हैप्पीनेस को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। स्टेशन पर खड़े रेल इंजन को कबाड़ी को बेंच देने वाले इंजीनियरों को भी हैप्पी न्यू-ईयर। गोरक्षा के नाम पर मलाई काटने और आतंक फैलाने वालों को फुल ईयर का हैप्पी। लव-जिहाद और मंदिर-मस्जिद के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं को खास तौर से हैप्पी न्यू ईयर।
नये साल में बीबी से लेकर पड़ोसन तक, कुछ भी नया ना होने पर भी, सबको हैप्पी न्यू ईयर। हमारा देश अब हैप्पी न्यू ईयर मनाने में, बड़े-बड़े देशों को पीछे छोड़ चुका है, लेकिन अभी भी देश में कुछ ऐसे देशद्रोही बसते हैं, जिनको हमेशा रोटी-दाल, पानी-बिजली, परिवार-रोजगार की ही फिक्र रहती है। कुछ तो ऐसे भी हैं, जो न्यू ईयर पर ठंडी बीयर पीने की बजाय ठंड से मर जाते हैं। और देश के नाम पर बट्टा लगा जाते हैं। कुछ नामुराद तो ऐसे भी हैं, जो कर्ज के बोझ से आत्महत्या कर लेते हैं। देश में बहुत से पढ़े-लिखे गँवार एसे भी हैं जो गौरक्षक दल या हिन्दू-युवा-वाहिनी में भर्ती होने के बजाय तनख्वाह वाला रोजगार माँग कर देश-द्रोह करने पर उतारू रहते हैं। कुछ ऐसे भी अनपढ़ गंवार हैं, जिनको पता ही नहीं की हैप्पी न्यू ईयर क्या होता है? ऐसे निकृष्ट लोग हैप्पी न्यू ईयर या सेम टू यू कहने की बजाय देश को ही शेम- शेम करवाने पर तुले हुये हैं।
कुछ अज्ञानी तो यह भी पूछते हैं कि न्यू ईयर आने पर क्या सब कुछ हैप्पी हो जाएगा? क्या न्यू ईयर में देश की गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी सब खत्म हो जाएगी? इन धृष्ट लोगों को यह भी नहीं मालूम है कि हैप्पी न्यू ईयर जैसे पावन-मनभावन मौके पर ऐसे बेहूदा सवाल नहीं पूछे जाते। इनको यह भी नहीं पता की इन समस्याओं से भी बड़ी समस्यायेँ हैं। और वो हैं –न्यू ईयर कैलेण्डर सेलेक्ट करने की समस्या, एमएमएस करने की समस्या, ग्रीटिंग कार्ड सेलेक्ट करने कि समस्या, बीयर का ब्राण्ड सेलेक्ट करने कि समस्या, न्यू ईयर मनाने के लिए मेनू और वेनू सेलेक्ट करने जैसी समस्याएं। जो कि गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि से बहुत बड़ी हैं। तो आइये, न्यू ईयर पर फोकस करते हैं। हैप्पी न्यू ईयर!!