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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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हाथों में क्या है? (व्यंग्य)

हाथ हमारे शरीर का सबसे उपयोगी और सबसे उपेक्षित अंग है। जैसे भारत में दलितों की हालत है, वैसे ही शरीर में हाथ की हालत होती है। पैदा होने से लेकर मरने तक हर जगह हाथ का काम होता है, लेकिन आदमी आता भी खाली हाथ है और जाता भी खाली हाथ है। आदमी जीवन में हाथों का तरह तरह के उपयोग करके, उम्र बिता देता है, फिर वही गीता का ज्ञान, खाली हाथ लेकर आए थे.... आजकल अगर किसी को भरी जवानी में यह मजबूरी वाला ज्ञान प्राप्त हुआ कि उसके हाथों में कुछ नहीं है, तो वो है हमारी मजबूत सरकार। सरकार के एक मजबूत मंत्री ने अपने हाथ खड़े करते हुये ये मजबूरी उवाचा कि पेट्रोल के दाम कम करना सरकार के हाथ में नहीं है। बेचारा फिर वही हाथ...

बच्चे बचपन में माँ-बाप के हाथ की उंगली पकड़कर चलना सीखतें है। ये अलग बात है कि जवानी में कुछ लोग माल्या जैसे भी होते हैं, जो किसी मंत्री या सरकार का हाथ पकड़कर देश से ही फरार हो जाते हैं। बिना हाथ के कुछ नहीं होता। लड़का जवान होता है तो उसके लिए किसी कन्या का हाथ माँगते हैं। लड़की जवान होती है तो उसके हाथ पीले कर देते हैं। फिर दोनों हाथ में हाथ डालकर गाना गाते हैं। हाथों में लिख के मेहँदी से सजना का नाम..। फिर हाथों में पिन्हा के चूड़ियाँ, मौज बंजारा ले जाता है। बेचारा हाथ, हाथ ही मलता रह जाता है।

भारत देश में एक नेता अवतरित हुये। चुनावी रैलियों में जोशीले भाषण दिये। बोले देश के खजाने पर मैं कांग्रेस का हाथ नहीं पड़ने दूंगा। कांग्रेस का पंजा नहीं पड़ने दूंगा। जनता ने उन्हें देश के खजाने की चौकीदारी में लगा दिया। चौकीदार ने इतनी चौकसी से चौकीदारी किया कि नीरव, माल्या और चौकसी, पूरे खजाने पर ही हाथ साफ कर गए। बैंकों का हाथ खाली हो गया। जनता के हाथों के तोते उड़ गए। बैंक हाथ मलते रह गए। सरकार दिखाने के लिए हाथ पांव मार रही है। पुराने चौकीदार ने इस खबर को हाथों हाथ लिया। नए चौकीदार को आड़े हाथों ले रहे हैं कि उनको भगाने में सरकार का हाथ है। भगोड़ों के दोनों हाथों में लड्डू है। दूसरे देश के सम्मानित नागरिक भी बन गए और फ्री का माल भी आ गया।

जो लोग नेताओं, मंत्रियों या सरकारों के दाहिने हाथ होते हैं, उनके लिए मौज़ा ही मौज़ा। जो लोग हाथ पे हाथ धरकर बैठी सरकारों पे सवाल उठाते हैं या सरकार पर हाथ डाल देते हैं। सरकार फिर हाथ धोकर उनके पीछे पड़ जाती है। वो अंत में खाली हाथ रह जाते हैं। बाकी लोग एसे सरकार द्रोहीयों से हाथ खींच लेते हैं। फिर एसे सरकार द्रोही, हाथ मलते रह जाते हैं, बहुतों को तो जान से भी हाथ धोना पड़ जाता है। बेचारा हाथ हर जगह मौजूद है। हाथों के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता।

हाथों के बिना इस नश्वर दुनिया में सिर्फ एक, शोले वाले ठाकुर बलदेव सिंह ही प्रसिद्ध हुये हैं और उनके हाथ माँगते हुये सन्त श्री गब्बर जी। वैसे हाथ तो लोग जवानी में माँगते थे, वो भी सुंदरियों के। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 ख़त्म करके, पुरानी धारा के विपरीत, सिर्फ सुंदरियों के वर्चस्व को तोड़ दिया है। लेकिन अभी भी हाथ मांगने का ही रिवाज है, पाँव माँगना अभी शुरू नहीं हुआ है।

खैर, हाथों के इतने महत्व को देखने के बाद भी, जब मंत्री जी कहते हैं कि पेट्रोल के दाम कम करना उनके हाथ में नहीं है, तो सच बताऊँ, मेरा हाथ उठाने का मन करता है, उनकी जय-जयकार करने के लिए। चुनाव के पहले, यही मंत्री जी हाथ लहरा लहराकर पेट्रोल के दाम बढ़ाने में पुराने चौकीदार के हाथ का दावा करते थे। चुनाव में दोनों हाथ जोड़कर वादा करते थे कि चुनाव जीतने पर डालर 35 का और पेट्रोल 45 का होगा। बस इतना बताना छोड़ दिया कि ....आधा। यानि आधा डालर 35 का और आधा लीटर पेट्रोल 45 का। वैसे ही जैसे ‘अश्वत्थामा मारा गया... किन्तु....हाथी...।

अब जब वो मंत्री बन गए और जनता पेट्रोल के दाम कम करने के लिए हाथ जोड़ रही है, बंद-जुलूस निकाल कर सरकार से दाम कम करवाने के लिए हाथ पांव मार रही है, तो वो हाथ खड़े कर रहे हैं और कह रहे हैं कि सरकार के हाथ में कुछ नहीं है। चार साल में 12 बार ‘उत्पाद कर’ बढ़ाकर जनता कि जेब से 11 लाख करोड़, बटोर लिए, अब उत्पाद कर घटाना भी उनके हाथ में नहीं बल्कि इमरान खान के हाथ में है। अब हाथ कंगन को आरसी क्या? पढ़े लिखे को फारसी क्या?  

अब देखना है कि जनता कब तक हाथ पे हाथ रखकर बैठती है। उसके हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा। अगले चुनावों में उसका हाथ, किसके साथ होता है? नेता, चुनाव जीतने के लिए क्या नया हथकंडा अपनाते हैं? जो भी हो, अब आप अपने कलेजे पर हाथ रखकर, लगे हाथ, ये भी बता दीजिये कि इतना ‘हाथ पुराण’ पढ़कर आपके हाथ क्या लगा...?

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...